10 March 2013

GAYTRI   MANTR
गायत्री मन्त्र हमारी चेतना के रूपांतरण का मन्त्र है | गायत्री मन्त्र से आत्म परिष्कार होता है ,यह हमारी प्रकृती को ही बदल देता है | गायत्री मंत्र के जप से आत्म -विश्वास में वृद्धि  होती है ,बुद्धि परिमार्जित होकर मेधा ,प्रज्ञा ,विवेक एवं परम ज्ञान में रूपांतरित हो जाती है | गायत्री की 24 प्रधान शक्तियों में एक प्राणाग्नि  है | गायत्री मंत्र के जप से प्राण शक्ति में वृद्धि होती है |
आँखे खुली हों तो पूरा जीवन ही विश्व -विद्यालय है | जीवन का हर क्षण स्वयं में विश्व की कोई न कोई विद्या समेटे है और फिर जिसे सीखने की ललक है ,वह प्रत्येक व्यक्ति ,प्रत्येक घटना से सीख लेता है | महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन कहा करते थे -"हर व्यक्ति ,जिससे मैं मिलता हूं ,किसी न किसी बात में मुझसे श्रेष्ठ है | वही मैं उससे सीखने की कोशिश करता हूं | "एक बार वे किसी दूसरे देश मेंव्याख्यान माला के आयोजन में गये | एक दिन व्याख्यान समाप्त कर वे शाम को घूमने निकले | राह में उन्होंने देखा कि एक कुम्हार मिट्टी के सुंदर बरतन बना रहा है | आइन्स्टीन उसका कौशल देखते रहे और उससे कहा -"ईश्वर की खातिर मुझे भी अपना बनाया हुआ बरतन देंगे क्या ?"उनके मुख से ईश्वर का नाम सुनकर कुम्हार चौंका फिर उसने अपने बना| ये हुए बरतनों में से सबसे सुंदर बरतन उठाकर बड़े ही सुंदर ढंग से आइन्स्टीन के हाथों में थमाया बरतन हाथ में लेने के बाद उन महान वैज्ञानिक ने उसे देने के लिये पैसे निकाले ,परन्तु कुम्हार ने उन पैसों को लेने से इनकार करते हुए कहा -"महोदय !आपने तो ईश्वर की खातिर बरतन देने को कहा था ,पैसों की खातिर नहीं | "आइन्स्टीन उस घटना का जिक्र करते हुए अपनी मित्र मंडली में कहते थे -"जो मैं कभी किसी विश्व -विद्यालय में नहीं सीख सका ,वह मुझे उस कुम्हार ने सिखा दिया | मैंने उससे निष्काम ईश्वर भक्ति सीखी | "