आज संसार में बेईमानी , भ्रष्टाचार , छल - कपट बहुत बढ़ गया है , लोग दूसरों को धोखा देकर बहुत प्रसन्न होते हैं लेकिन यह प्रसन्नता स्थायी नहीं है , कहीं न कहीं वे भी ठगे जाते हैं l प्रकृति में संतुलन कुछ इस ढंग से होता है कि यदि हमने किसी का भला किया है तो यह जरुरी नहीं कि वही व्यक्ति हमारा कुछ भला करेगा , जब हम किसी परेशानी में होते हैं तो प्रकृति में कहीं न कहीं से किसी रूप में हमें उस पुण्य का फल मिल जाता है और उस परेशानी से छुटकारा मिल जाता है l इसी तरह यदि किसी ने धोखा , छल कपट किया है तो उसे भी कभी न कभी ऐसी ही नकारात्मक परिस्थितियों का सामना अवश्य करना पड़ेगा l प्रकृति में संतुलन होता है l एक बोध कथा है ----- एक बुढ़िया सूत कातकर हाट में बेचने जाया करती थी l वजन उसका अधिक बैठे इसके लिए वह चतुरता करती कि उसमे पानी छिड़क कर ले जाती जिससे वे थोड़े भारी हो जाएँ l खरीदार बनिया भी चतुर था l उसने तराजू के बाट वाले पलड़े में वजनदार गाँठ बाँध रखी थी कि उस उपाय से अधिक माल लिया जा सके l कोई अपने में प्रसन्न हो ले कि दूसरे को ठग कर लाभ उठा लिया पर वैसा कभी कभी हो नहीं पाता l