12 March 2022

WISDOM -----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  एक  विभूतिहीन   व्यक्ति   यदि  समाज  का  बहुत  बड़ा  हित   सम्पादित  नहीं   कर  सकता  है  तो  उससे  समाज  को   बहुत  बड़ी  हानि  होने  की  संभावना  भी  नहीं  है   l   पर  जो  विभूतिवान  हैं   वह  यदि  स्वार्थी , संकीर्ण  और  पथ - भ्रमित   हुआ  तो   समाज  को   अकल्पित  हानि  पहुंचा  सकता  है   l   इस  मान्यता  की  पुष्टि  आज  के  अधिकांश    धनपति ,  कलाकार  ,   वैज्ञानिक    और  साहित्यकार   कर  ही  रहे  हैं   l "  टालस्टाय  ने  लिखा  है  ---- " दुनिया  की  हर  बुराई  और  बेइंसाफी  की  अधिकतम   जिम्मेदारी  से  विद्वान् ,  साहित्यकार   और  कलाकार  बच  नहीं  सकते  l  "  महान  इतिहासकार   अर्नाल्ड  टायनबी  ने  लिखा  है  ---- ' आधुनिक  विज्ञानं  के  फलस्वरूप   मनुष्य  की  आत्मा  में  आध्यात्मिक  रिक्तता  उत्पन्न  हुई  है  ,  उसे  आधुनिक  मानव  कैसे  पूरी  करेगा   ?  विज्ञानं  ने  मनुष्य  को  जड़  शक्ति  और  मानव  शरीर  पर   नियंत्रण  स्थापित  करने  की  क्षमता  प्रदान  कर  दी  है   लेकिन  आत्मनियंत्रण  के  कार्य  में  वह  असफल  है  l  "      आत्मनियंत्रण  के  अभाव  में   मनुष्य  का  मन  बेलगाम  घोड़े  की  तरह  होता  है   l  कामना  , वासना  और  तृष्णा  उस  पर  हावी  हो  जाते  हैं   l   ऐसा  व्यक्ति  यदि  सामान्य  स्तर  का  है   तो  उसका   अशांत और  अनियंत्रित  मन  सीमित   क्षेत्र  में  हो  कोहराम  मचाएगा    लेकिन   यदि    पद  बड़ा  है ,  सामर्थ्य  ज्यादा  है   तो  ऐसे  व्यक्ति  का  अशांत  मन   उतने  ही  बड़े  क्षेत्र  को  अशांत  कर  देगा   l    इसलिए  विज्ञानं  के  साथ  अध्यात्म  का  समन्वय  अनिवार्य  है  l   महान  वैज्ञानिक  मैक्स प्लैंक  को   जब  शोध कार्य  के  लिए  नोबेल  पुरस्कार  मिला  ,  उस  अवसर  पर  उन्होंने  कहा  था ---- " विज्ञानं  यदि  मानवता  के  अहित   की  दिशा  में  अपने  कदम  बढ़ाता   है   तो  वह  विज्ञानं  ही  नहीं  है  l  विज्ञानं  हमेशा  लोकहितकारी  बना  रहे   इसके  लिए  उसे  आध्यात्मिक  संवेदनों  से  स्पंदित  होना  चाहिए   l  "