इस संसार में भांति -भांति के लोग हैं l समस्या यह है कि उन्हें पहचाने कैसे कि कौन कैसा है ? अधिकांश लोग एक मुखौटा लगाए हैं , जो जैसा दीखता है वो वैसा है नहीं l लेकिन फिर भी यदि हम किसी के आचरण का गहराई से अध्ययन करें तो हम किसी की भी सच्चाई को समझ सकते हैं और यदि किसी का सच समझ में आ जाये तो धोखा , विश्वासघात की संभावना नहीं रहती l आज के कठिन समय में पुस्तकीय ज्ञान के साथ जीवन जीने की शिक्षा भी जरुरी है l ऋषियों का कहना है --- संसार का प्रत्येक प्राणी अपने -अपने भाव के अनुसार क्रिया प्रकट करता है l l जिसके भीतर जो है , वही उसकी क्रिया में प्रकट होता है जैसे --- बगीचा एक है , मक्खी बाग़ में घुसते ही गंदगी ढूँढने लगती है और कहीं न कहीं से गंदगी को ढूंढकर उसका स्वाद लेती हुई प्रसन्न होती है l लेकिन जब कोई मधुमक्खी उस बाग़ में जाती है तो वह गंदगी की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखती और सुन्दर पुष्पों में से मधुर पराग इकट्ठा करती है l कोयल उस बाग़ में प्रवेश कर बहुत प्रसन्न होती है , कुहू -कुहू कूकती है , अपनी सुरीली आवाज से सबको प्रसन्न करती है l दूसरी ओर चमगादड़ है जो अंधकार का , नकारात्मकता का प्रतीक है , वह उस बाग़ में घुसता है तो उसके उत्तम फल -फूलों को कुतर -कुतर कर जमीन पर ढेर लगाता है और उस बगीचे को कुरूप बनाता है l बाग़ एक ही है लेकिन चारों प्राणी अपने अपने भाव के अनुसार क्रिया करते हैं l इसी तरह यह संसार ईश्वर का सुन्दर बगीचा है , यहाँ काम , क्रोध , लोभ , मोह ,तृष्णा , महत्वाकांक्षा , अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार जैसे मानसिक विकारों से ग्रस्त लोग रहते हैं l व्यक्ति का मास्क उसके इन विकारों को ढक नहीं पाता l आचार्य श्री कहते हैं --- सच्चाई कभी छुप नहीं सकती l मनुष्य के व्यक्तित्व में इतने छिद्र हैं कि कहीं न कहीं से सत्य बाहर आ ही जाता है l , सरल भाषा में कहें तो व्यक्ति का व्यवहार , उसके तौर -तरीके , उसकी जीवन शैली उसकी सच्चाई को बयां करते हैं l
23 September 2023
WISDOM -----
संत हरिदास अपने शिष्य तानसेन से कह रहे थे कि यदि ईश्वर को पाना है तो अपने अहंकार को मिटाना होगा l बाबा हरिदास अपनी आध्यात्मिक अनुभूति उन्हें सुनाते हुए बोले ----" सुबह मैंने ध्यान में देखा , राधारानी श्रीकृष्ण से कह रहीं हैं ---' कन्हैया ! यह बाँसुरी सदा ही तुम्हारे ओंठों से लगी रहती है , तुम्हारे ओंठों का स्पर्श इस बांस की पोंगरी को इतना अधिक मिलता है कि मुझे जलन होने लगती है l ' राधारानी की बात सुनकर श्रीकृष्ण खूब जोर से हँसे और बोले --- " राधिके ! बाँसुरी होना सबसे कठिन है , शायद उससे कठिन और कुछ भी नहीं l जो स्वयं को बिलकुल मिटा दे , वही बाँसुरी हो सकता है l यह बांसुरी बांस की पोंगली नहीं है l इसका स्वयं का कोई स्वर नहीं है --- मैं गाता हूँ तो वह गाती है , मैं मौन हूँ तो वह मौन है , मेरा जीवन ही उसका जीवन है l "