31 December 2018

WISDOM ----- नव वर्ष की सार्थकता तभी है जब समाज संवेदनशील बने

   मनुष्य  की  संवेदनहीनता  का  सबसे  बड़ा  प्रमाण   यही  है  कि  वह  अपनी  पूरक --- नारी  जाति  पर   युगों  से  अत्याचार  करता  आया  है  l  यद्दपि  नारियों  की  अवमानना  समूचे  विश्व  में  व्यापक  रूप  से  अभी  भी  विद्दमान  है  ,  किन्तु  अपने  देश  में  यह  विषबेल  की  तरह   गहराई  से  लोगों  के  संस्कारों  में  समाई  है   l  कन्या  भ्रूण हत्या ,  दहेज़ हत्या ,   छोटी - छोटी  बच्चियों  का  विभिन्न  संस्थाओं  में  उत्पीड़न,  छोटी  बच्चियों  के  साथ  दुष्कर्म  व  हत्या   ,  कार्यालयों  में  नारी  उत्पीड़न--- ये  सब  घटनाएँ  सिद्ध  करती  हैं  कि  हमने  किसी नए  वर्ष  में  कभी  प्रवेश  ही  नहीं  किया ,   संवेदना  के  अभाव  में  मनुष्य  पशु  से  भी  बदतर   राक्षस  हो  गया  है   l  चेतना  के  स्तर  पर  कोई  विकास  नहीं  हुआ  l 
   तमाम  क़ानूनी  बंदिशों ,  विभिन्न  नियम - कानूनों  के  बावजूद   बालिका - कन्याओं  का  उत्पीड़न,  हत्याएं  आज  भी   जारी  हैं  l   कन्याओं  की  निर्मम  हत्याएं   सदियों  से  मनुष्य  अपने  अहंकार  की  पूर्ति   के  लिए  करता  आया  है  l  ये  कुरीतियाँ  मनुष्य  के  स्वभाव   में   जिस स्थान  पर  जड़  जमाए  बैठी  हैं  , वहां  से  इन्हें  हटाना - मिटाना  इतना  आसान  नहीं   है  l    इस  अमानवीयता  को  समाप्त  करने  का  एक  ही  रास्ता  है ---- आत्मपरिष्कार  l  जब  लोगों  की  मानसिकता  परिष्कृत होगी  ,  लोग  समझेंगे  कि  धर्म  का  सार -- संवेदना  है  ,  तभी  मनुष्य  सच्चे  अर्थों  में  मनुष्य    होगा  l  
  महात्मा   गाँधी  ने  कहा  था ---'  भारत   की  दासता  मानसिक  है  ,  वह  कुप्रथाओं  में  बुरी  तरह  फंसा  हुआ  है  l  छुआछूत  और  नारी  अवहेलना  -- ये  दो  इतने  भारी  पातक  हैं   जो  भारतीय  समाज  को  खोखला  करते  जा  रहे  हैं  ,  इन्हें  हटाए - मिटाए  बिना  स्वाधीनता   विशेष  अर्थ  नहीं  रखती   l    

30 December 2018

WISDOM -- ----- जो अपना अहंकार छोड़कर ईश्वर की शरण में जाते हैं उनकी जिम्मेदारी भगवान स्वयं सँभालते हैं

   हमारे महाकाव्य  'महाभारत '  के  प्रसंग  हमें  प्रेरित करते  हैं  कि  अनीति  से  निपटना  है  तो  ईश्वर के शरणागत  हो   l   ऐसे  भक्त का  सम्पूर्ण  भार  भगवन  स्वयं   वहन  करते  हैं  l
   महाभारत  की  एक कथा  है  ----  इस  युद्ध  में   कौरव  पक्ष  के  अनेक  महारथी  मृत्यु  को प्राप्त हुए   ,  अंत  में  दुर्योधन  बचा  l  भीम  ने  दुर्योधन  को  गदा युद्ध  के  लिए  ललकारा   l   यह  द्वंद  युद्ध  था --- ऐसा  युद्ध  जिसमे  एक  ही  जीवित  रहेगा  l   दुर्योधन  जानता  था  कि  उसकी  माँ  पतिव्रता  हैं ,   अपने  पति  के  अंधे  होने  के  कारण  उसने  भी  संकल्प  ले  लिया  था  की  वह  भी  इन  आँखों  से  दुनिया  नहीं  देखेगी   और  आँखों  पर  पट्टी  बाँध  ली  थी   l    पतिव्रता  नारी  का  जो  बल  था ,  दुर्योधन  उसका  एक  अंश  चाहता  था   l  इस  हेतु  प्रार्थना  करने  वह  माता  गांधारी  के  पास  गया  l   पुत्र  के  प्रेम वश  गांधारी  ने  कहा ----  "  तू  निर्वस्त्र  होकर  आना  ,  मैं  आँख  की  पट्टी  खोलूंगी  ,  तू  खड़े  रहना  l '
   भगवान  श्रीकृष्ण  अन्तर्यामी  थे  ,  वे  जानते  थे  कि  यदि  ऐसा हुआ  तो  दुर्योधन  का  समूचा  शरीर  वज्र  का  हो  जायेगा  l  फिर  इसे कोई  हरा  नहीं  सकता  l   जब  दुर्योधन  वस्त्रहीन  होकर  जा रहा  था ,  उसी समय  वहां  रास्ते  में   कृष्ण जी   पहुँच  गए  l   उन्होंने  दुर्योधन   से  इसका  कारण  पूछा  दुर्योधन  को  शर्मिंदगी  महसूस  हुई   l  भगवान  ने   कहा ---- ' दुर्योधन   !  कुछ  तो   शरम   करो  l  तुम  इतने  बड़े ,  माँ के  सामने वस्त्रहीन  खड़े  होगे ,  अच्छा  लगेगा  क्या   ?   बचपन  की  बात  और  होती  है   l  कम  से कम  पत्ते लपेट  लो ,  मेरा  पीताम्बर  लपेट  लो  l  "
  दुर्योधन  को कृष्ण  की बात   समझ  में  आ  गई   l  वह  भगवान  की  लीला  समझ  न  सका  l  गांधारी  के पास  पहुंचकर  प्रणाम  किया  l   माँ  ने  पूछा --- ' जैसे मैंने  कहा , वैसे  ही  आये   हो   तो  पट्टी  खोलूं  l '
 दुर्योधन  ने  हामी  भरी  l 
गांधारी ने  वर्षों  से  आँखों  पर बंधी  पट्टी  खोली  l    दुर्योधन  को  देख  उसकी  आँखों  से  आंसू  झरने लगे   ,  वह  भगवान  की  लीला  को  समझ   गईं  l   कृष्ण  के  कहे  से  दुर्योधन  ने  जितना  शरीर  ढक लिया  था  ,  वह  वज्र का नहीं  हो  पाया   l    अनीति  का अंत  तो  होना  ही  था   l  बलराम  का  शिष्य  दुर्योधन   बहुत   वीर  था   लेकिन  बहुत   अहंकारी  था   l    समूचे  कौरव  कुल  का  नाश  हो  गया  l 
      पांडव  धर्म  और  नीति  के  मार्ग  पर  थे   l  अर्जुन  भगवान  की  शरण  में  था  ,  भगवन  कृष्ण   ने    स्वयं  उसके   रथ  की  डोर  संभाली   और  हर  कदम  पर  पांडवों  की  रक्षा  की   l   

29 December 2018

WISDOM ----- आलोचनाओं के प्रति भी अपना द्रष्टिकोण सकारात्मक हो

  '  मनुष्य  को मात्र  अपने  कर्तव्य  का  पालन  करना  चाहिए   और  आलोचनाओं  पर  केवल  इतना  ध्यान  देना  चाहिए   कि  अपने  व्यक्तित्व  में  कोई  कमी  हो  तो  उसे  सुधार  लिया  जाये  l  '
      जो  अहंकारी  होते  हैं  वे  अपनी  आलोचना   तो  क्या  ,  अपने  प्रति  कहा  गया  एक  शब्द  भी  बर्दाश्त  नहीं  करते    और  अपनी  पूरी    ऊर्जा    इसी  सोच - विचार  में  गँवा  देते  हैं  कि  अपने विरुद्ध  एक  शब्द  भी  बोलने  वाले  को  कैसे  प्रताड़ित  करें  ,  उसकी  हिम्मत   कैसे  तोड़  दें  l
 एक  प्रसिद्ध  शायर  को  एक  तानाशाह  ने  उसकी  बुराई  करने  के  लिए  जेल  में  डाल  दिया  तो  उसने  बदले  में   तानाशाह  के  लिए  दो  पंक्तियाँ  लिखकर  भेंट  में  भेजी ------
     'तुमसे  पहले  जो  शख्स  यहाँ  पर  तख्तनशीं  था
     उसको  भी  अपने  खुदा  होने  पर  इतना  ही  यकीं  था  l '
    आलोचनाओं  के  प्रति  हमारा  रवैया   कैसा  हो  ,  इस संबंध  में  एक  प्रेरक  प्रसंग  है ----
 अब्राहम  लिंकन  के  एक  मित्र  ने  समाचार  पत्र  की  एक  कटिंग  उनके  सामने  रखते  हुए  कहा ---- " देखिए,  लोग  किस  तरह  आपकी  आलोचना  करने  में  लगे  हुए  हैं   और  आप  चुप्पी  ही  साधे  बैठे  हैं   l  इनका  प्रतिवाद   आप  किसी  समाचार पत्र  में  क्यों  नहीं  भिजवाते  ?
लिंकन  ने  उत्तर  दिया  ---- " मित्र  !  यदि  मैं  समाचार पत्र  की  प्रत्येक  आलोचना  को  देखूं  और  उसका  उत्तर  देने  का  प्रयत्न  करूँ    तो  राष्ट्र  के  महत्वपूर्ण  कार्य  करने  का  समय  ही  नहीं  रहेगा  l   मैं  मात्र  अच्छे  ढंग  से  राष्ट्र  की  सेवा  करने  का  प्रयत्न   करता  हूँ  l  यदि  मेरे कार्यों  के  परिणाम  देश  की  जनता  के  हित  में  निकलते  हैं  तो   आलोचकों  की  बातें  स्वत:  ही  निरर्थक  सिद्ध  हो  जाएँगी  और  यदि  इनके  परिणाम  राष्ट्र हित  में  नहीं  निकलते    तो  देवता  भी  आकर  मेरा  पक्ष  क्यों  न  लें  ,  कोई  उनकी  बात  सुनने  को  तैयार  नहीं  होगा   l  "
     मनुष्य  यदि  ईमानदारी  से  अपना  कर्तव्य पालन  करे ,  स्वयं  के  जीवन  की दिशा  सही  हो   तो  हमें  लोगों  द्वारा  अपनी  की  जाने  वाली  बुराइयों  और  आलोचनाओं  की  सफाई  देने  की  जरुरत  ही  नहीं  है ,  सही  वक्त  आने  पर  प्रकृति  स्वयं  गवाही  देती  है   l   

28 December 2018

WISDOM ----- हमारा जीवन हमारे ही कर्मों की अभिव्यक्ति है

 दुनिया  में  हम  जिसे  भी  देखते हैं  --- पिता - पुत्र , गुरु - शिष्य , संतान ,  रिश्ते - नाते ,  जो  कोई  भी  हैं  ,  वे  सब  हमारे  ही  कर्मों  का  परिणाम  है   l  अतीत  में  किए  गए   हमारे  अपने  ही   कर्म   आज  भांति - भांति  के   रूप धारण    कर    हमारे    सामने  हैं   l 
   ऋषियों  का कहना  है ---- " जैसे  हजारों  गायों  के  मध्य  बछड़ा  अपनी  माँ  को  स्वत:  ढूँढ  निकालता  है  ,  वैसे  ही हमारे अपने किये  गए  कर्म    हमको  किसी  भी  योनि  में  सहजता  से  ढूँढ  निकालते  हैं   l    हमारे  कर्म  हमारा  पीछा  नहीं  छोड़ते  ,  वे  तब  तक  समाप्त  नहीं  होते  ,  जब  तक  हम  उन्हें  भोग  नहीं  लेते  l  "
         कर्मफल  का  विधान  सबके  लिए  एक  समान  है   l 
    महाभारत   के  युद्ध    पश्चात  एक  बार  अत्यंत  व्यथित  ह्रदय  से    धृतराष्ट्र   ने   वेदव्यास  जी  से  पूछा  ---- " भगवन  !  यह  कैसी  विडम्बना  है   कि  मेरे  सौ  के  सौ  पुत्र    मारे  गए   और  मैं    अँधा   बूढ़ा  बाप   जिंदा  रह  गया  l  मैंने  इस  जन्म    इतने  पाप  तो  नहीं   किए  हैं    और   पूर्व    कुछ  पुण्य    होंगे  ,  तभी  मैं   राजा  बना  हूँ   l  किस  कारण  से  यह  घोर  दुःख  भोगना  पड़  रहा  है  ? 
 तब  वेदव्यासजी  ने  ध्यान  में  जाकर  उनके  पूर्व  जन्मों  को  जाना   l  उन्होंने  धृतराष्ट्र  से  कहा  ----  " पूर्वजन्म  में  तुम  राजा  थे    और  शिकार  करने  के  लिए  जंगल  में  गए  l  वहां  हिरन  को  देखकर  उसके  पीछे  दौड़े  ,  लेकिन  तुम  हिरन  का  शिकार  नहीं  कर  पाए  l  वह  जंगल  की  झाड़ियों  में  दिखना  बंद  हो  गया   l   क्रोध  में  आकर    तुमने  वहां  आग  लगा  दी  l  जिससे  वहां  उगी  घास  और  सूखे  पत्ते जल  गए  l  वहीँ  पास  में  एक  सांप  का  बिल  था  l  उसमे  सांप  के  बच्चे  थे  जो  अग्नि  में  जलकर  मर  गए   और  सरपिनी  अंधी  हो  गई  l  तुम्हारे  उस   कर्म  का  बदला  इस जन्म  में  मिला  l  इससे  तुम  अंधे  बने  हो  और  तुम्हारे  सौ  बेटे  मर  गए  हैं   l  "  इस  प्रकार  जन्म - जन्मांतरों  तक  हमारे  कर्म  हमारा  पीछा करते  हैं  l 
 उचित  यही  है    कि   हमें  सदा  शुभ  कर्म   निष्काम  भाव   से   करने  चाहियें   l    

27 December 2018

WISDOM ------

 रावण    सीताजी  का  अपहरण  कर  जा  रहा  था  ,  जटायु  ने   जब  यह  अत्याचार  देखा  तो   अपनी  भरपूर  शक्ति  से  रावण  पर  आक्रमण  किया  l  युद्ध  में  रावण  ने  जटायु  के  पंख  काट  दिए  ,  जिससे  वह  घायल  होकर  जमीन पर  गिर  पड़ा  l
  पंख  कटे  जटायु  को  गोद  में  लेकर    भगवान  राम  ने   स्नेह  से  उसके   सिर  पर  हाथ  फेरते  हुए  कहा ---- " तात ! तुम  जानते  थे    रावण  मह बलवान  है  ,  फिर  उससे  तुमने  युद्ध  क्यों  किया  ? "
 जटायु  ने  गर्वोन्नत  वाणी  में   कहा ---- " प्रभु  !  मुझे  मृत्यु  का  भय  नहीं  है  ,  भय  तो  तब  था  जब  अन्याय ,  अत्याचार  के  प्रतिकार  की  शक्ति  नहीं  जागती  l  "
  भगवान  राम  ने  कहा ---- " तात  !  तुम  धन्य  हो  l  तुम्हारी  जैसी  संस्कारवान   आत्माओं  से  संसार  को   कल्याण का   मार्ग दर्शन     मिलेगा     l  "

26 December 2018

WISDOM ----- अपने मनोबल को टूटने न दें

   हमारे महाकाव्य हमें  जीना  सिखाते  हैं ----
 आत्मविश्वास   टूटा  तो  सामर्थ्य  चाहे  कितनी ही  प्रचंड - अजेय  क्यों  न  हो  ,  काम  नहीं  आती   और  पराजय  का  मुंह  देखना  पड़ता  है  l 
  अपनी फूटनीति  से    महाभारत  युद्ध  में   दुर्योधन  ने  शल्य  को   कर्ण  का  सारथी बनने  के  लिए   सहमत  कर  लिया  l  कर्ण  ने  कहा  था ---- " यदि  मुझे  शल्य  जैसा  सारथी  मिल  जाये    तो  एक  अर्जुन  तो  क्या  ,  सैकड़ों  अर्जुन  जैसे  वीरों  को  मार  दूंगा  l " 
पांडवों  को मालूम  हुआ  कि  मामा  शल्य  ने  कर्ण  का  सारथी  बनना  स्वीकार  कर  लिया  है  l  शल्य  का  सारथी  बनना  पांडवों  के  लिए  खतरे  से  खाली  न  था   l  बात  कृष्ण  को  मालूम  हुई  l  नीति  निपुण  कृष्ण  ने  शल्य  से  निवेदन  किया  ---- "  कर्ण  का  सारथी    बनने  के  लिए  आप वचनबद्ध  हैं   l  युद्ध  में  कौरवों  का  साथ  दीजिए,  पर  धर्मयुद्ध  के  लिए   आप  मात्र  कर्ण  को  हतोत्साहित  करते  रहिएगा  l  "  शल्य  ने   कृष्ण    का  निवेदन   स्वीकार  कर  लिया   l  इतिहास प्रसिद्ध  है   कि  शल्य  के  हतोत्साहित  करते   रहने  के  फलस्वरूप   ही  कर्ण  का  मनोबल    टूटता  रहा ,   फलत:  वह  हारा  और  मारा  गया  l 
       इस प्रसंग  से  हमें  शिक्षा  मिलती  है   कि  हम  सबके  जीवन  में ,  हमें  उन्नति  के  पथ  पर  आगे  बढ़ने  से  रोकने  के  लिए  अनेकों  शल्य  आते  हैं ,  जो  अपने    छल - बल  से   हमें  हतोत्साहित  करने  का ,  मनोबल  को  गिराने  का  प्रयास  करते  हैं  l  हम  ईश्वर  विश्वासी  बने ,  ईश्वर  विश्वासी  ही  आत्मविश्वासी  होता  है  l  

25 December 2018

WISDOM ---- प्रतिभाशीलों को अपना जीवन बड़ी सावधानी से जीना चाहिए ---- श्रीमद्भगवद्गीता

    गीता में   भगवान  श्रीकृष्ण  कहते  हैं  --- " जैसा  आचरण  एक  श्रेष्ठ  पुरुष  का  होता  है  ,   अन्य    पुरुष  भी  वैसा  ही  आचरण  करते  हैं  l  वह  जैसा भी  कुछ   आदर्श   उपस्थित   करता  है   ,  लोग  उसी  का  अनुसरण  करते  हैं  l 
 जो  मनुष्य   विशिष्ट  श्रेणी  के  हैं  , उनका  आचरण  सारे  समाज  के  उत्थान - पतन  का  कारण बन  सकता  है  क्योंकि  अधिकांश  मनुष्य  अपनी  जीवनचर्या  के   लिए  भी  द्रष्टि   औरों  पर  डालते  हैं  l  आज  समाज  का   इतना  अधिक  नैतिक  पतन  हुआ  ही  इसलिए   है  कि  जनता  भ्रष्ट  आचरण   ही  चारों  ओर  देखती  है  ,  उसे  कहीं  कोई  मार्गदर्शक  तंत्र  दिखाई  ही  नहीं  पड़ता  है   l 
  गीता  में  भगवान  स्पष्ट  रूप से  कहते  हैं  कि  आम  जनता ,   नेता  लोग  जो  कहते  हैं   उसका  नहीं  ,  लेकिन  जो  कुछ  भी  करते  हैं  ,  उसी  का   अनुकरण  करती  है  l
 स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण   अपने  बारे  में  भी  यही  बात  कहते  हैं   कि ---   यद्दपि    संसार  में  उनके  लिए   प्राप्त  करने   को  कुछ  भी  नहीं  है  ,  उन्हें  सभी  कुछ  सुलभ  है   तो  भी  वे  अथक  रूप  से   निरंतर कार्य  करते  रहते  हैं  l  यदि  वे  प्रमाद  करेंगे    तो   अन्य   लोग  भी  उनका  अनुसरण  कर  अपना  जीवन  नष्ट  कर  बैठेंगे   l  भगवान्  कहते  हैं  कि  मैं  अवतार हूँ ,  मैं   जो   चाहूँ  वह  प्राप्त कर  सकता  हूँ  ,  फिर  भी  मैं  कर्म  करता  हूँ   l  वे  कहते  हैं  कि  यदि  मैं  सावधानीपूर्वक  हर  तरह  से  सोच - समझकर  कर्म  न  करूँ  तो   बड़ी  हानि  हो  जाएगी   क्योंकि  मनुष्य  सब  प्रकार  से  मेरे  ही  मार्ग  का  अनुसरण  करते  हैं   l     

24 December 2018

WISDOM ---- भावनाओं और संवेदनाओं के बिना विकास अधूरा है l

 विज्ञानं  की उपलब्धियां   कितनी  ही  व्यापक  और  चमत्कारिक  क्यों  न  हों  ,  पर  यही  सब  कुछ नहीं  है  l  इसके अलावा भी  कुछ    चाहिए  ,  जिसके   अभाव  में  जिन्दगी  पंगु  हो  जाएगी   और वह  है --- गहरी मानवीय  संवेदना   l 
 विज्ञानं  और  तकनीकी  ज्ञान  रेलगाड़ी  और  विमान  की  गति  बढ़ा  सकते  हैं  ,  मारक  यंत्र  बना  सकते  हैं  ,  लेकिन  किसी  समाज  की   चेतना  को  जाग्रत  कर  के   आदर्श  के  बीज  नहीं  बो  सकते   l  संवेदनहीन  मनुष्य  पशुतुल्य  है  l  

23 December 2018

WISDOM ---- जीवन एक व्यवसाय है , इसमें परमात्मा के साथ साझेदारी में घाटे की संभावना नहीं है

   अहंकारी    स्वयं  को  कर्ता  मानता  है  --- जैसे  वही   ब्रह्मा , वही  विष्णु   और   वही    शिव  है   l   अहंकार  उसके  विवेक  का   हरण  कर  लेता  है   l  इस  अहंकार  के  कारण  इतना  बलशाली  होने  पर  भी  रावण  पराजित  हुआ  l   लेकिन  जो  ईश्वर  से  साझेदारी  करते  हैं  ,  जिनमे  कर्तापन  का  अभिमान  नहीं  होता  ,  स्वयं  को  ईश्वर  के  हाथों  का  यंत्र  मानते  हैं  ,  उनके  जीवन  में असफलता  की  कोई  संभावना  नहीं  होती  l                                महाभारत  का  युद्ध  आरम्भ  होने  से  पहले   अर्जुन  और  दुर्योधन  दोनों  ही  भगवान  श्रीकृष्ण  के  पास  मदद  हेतु  गए    l  एक  और   भगवान  श्रीकृष्ण  थे   जो  युद्ध  में  शस्त्र  नहीं  उठाएंगे  और  दूसरी  और   उनकी  विशाल  ,  सुसज्जित  सेना   l  अर्जुन   में  समर्पण  भाव  था  , उसने    सेना  की  और  नहीं  देखा   l भगवान  श्रीकृष्ण   के  हाथों  में  अपने  जीवन  डोर  सौंप दी  l  दुर्योधन  अहंकारी  था  ,  स्वयं  को  सब  कुछ  समझता  था  ,  श्रीकृष्ण  विशाल  सेना  पाकर  गर्व  से  फूला  नहीं  समाया  l
        कर्ण  ने  दुर्योधन  से मित्रता  निभाई  ,  इस  कारण  वह  भी   सेना  के  साथ  था  ,  ईश्वर  के  संरक्षण  से  वंचित  रह  गया  l
  महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हुआ   l  महर्षि  जरत्कारू  के  आश्रम  में    दो  शिष्यों  में  चर्चा  चल  रही  थी   कि---- ' कर्ण  युद्ध  विद्दा  में  अर्जुन  से  श्रेष्ठ  थे ,  दानियों  में  भी  अग्रगण्य  थे  ,  आत्मबल  के  धनी  थे  ,  फिर  भी  क्यों  अर्जुन  से  हार  गए  ?   गुरदेव  ने  स्पष्ट  किया ---- ' अर्जुन  को  नर  और  कृष्ण  को   नारायण  कहा  गया  है   l   नर - नारायण  का  जोड़ा  ही  असुरता  से  जीतता  है   l 
  कर्ण  अर्जुन  की  अपेक्षा  श्रेष्ठ  नर   भले  हो  ,  पर  उसने  अपने  आपको  ही  सब  कुछ  माना  ,  नारायण  को  पूरक  नहीं  बनाया  ,  इसलिए  पूरक  सत्ता  का लाभ  उसे  नहीं  मिल  सका   l  वही  उसकी  पराजय  का  मुख्य  कारण  रहा   l  '
                

22 December 2018

WISDOM ----- संसार की सभी समस्याओं का एकमात्र हल है ---- संवेदना ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

 आचार्य  जी का मत  है   कि  अहंकारी  व्यक्ति  संवेदनहीन  होता  है  ,  वह  किसी  की  पीड़ा  को  महसूस  नहीं  कर  सकता   l  अहंकार  आतंक  को  जन्म  देता  है  ,  आत्मीयता   को  नहीं   l    इसलिए    अहंकारी को लोग  ह्रदय से  नहीं  चाहते   l   
 समाज  में  सुख - शान्ति,  खुशहाली  तभी  होगी  जब  लोग  संवेदनशील  होगे   l   समर्थ  और  संपन्न  व्यक्ति  लोगों  के  कष्ट  और  पीड़ा निवारण  का  ह्रदय  से  प्रयास  करेंगे   l  भेदभाव ,  नफरत ,  हिंसा ,  आदि  नकारात्मक   भावनाओं  को  उपेक्षित  कर    संवेदना  और  सद्गुणों  को   महत्व    देने  से  ही  स्वस्थ  समाज  का  निर्माण  संभव  है   l  

21 December 2018

WISDOM ---- नशा ' नाश ' का कारण होता है '

  नशा   चाहे  धन  का  हो , पद  का  हो  या  शराब  का   हानिकारक  है   l  '  सत्ता  का  नशा  संसार  की  सौ  मदिराओं  से  भी   अधिक  होता  है  l  उसकी  बेहोशी  सँभालने  में  एकमात्र   आध्यात्मिक  द्रष्टिकोण  ही   समर्थ  हो  सकता  है   l  अन्यथा  भौतिक  भोग  का  द्रष्टिकोण  रखने  वाले   असंख्य  सत्ताधारी   संसार  में  पानी  के  बुलबुलों  की  तरह   उठते  और  मिटते  रहे  हैं   और  इसी  प्रकार   बनते  और  मिटते  रहेंगे   l  '
     पुराण  की  यह  कथा   बताती  है  कि  व्यक्ति     चाहे  धरती  पर  हो  अथवा  स्वर्ग  में   ,  यदि  उसमे  अहंकार  पैदा  हो  गया  है   तो  उसकी  बुद्धि ,  दुर्बुद्धि    बदल  जाती  है  l  दुर्बुद्धि ग्रस्त  व्यक्ति    स्वयं  ही  अपने   नाश  का  जिम्मेदार  होता  है  -------
       त्वष्टा     का  वध  करने  के  कारण  इंद्र  को  पाप  लगा   l  तपस्या     करने  का  आदेश  मिला    l  नहुष  को  इंद्र  बनाया  गया  l  इन्द्रासन  पाते  ही  उसमे  अहंकार  आ  गया   l  बोला --- "  अब  मैं  इंद्र  हूँ  ,  इसलिए  शची  को मेरी  सेवा  में  भेजो ,  वह  इन्द्राणी  है  l  " 
  शची  ने    युक्ति  से  काम  लिया  और  कहला  भेजा  कि---' यदि   नहुष   पालकी  में  बैठकर   जिसे  सप्त ऋषि  ढोयें,   उसके  महल  में  आयें   तो  वह   उनका  आदेश  स्वीकार  करेंगी  l  "
  एक  तो  सत्ता  का  नशा    और  कामांध ,  उसने  सप्त ऋषियों  को  पालकी  ढोने  का  आदेश  दिया   और  पालकी  में  बैठकर  शची  से  मिलने  चला   l  व्याकुलता  इतनी  कि  उसने  अगस्त्य  ऋषि  को  एक  लात   मारी  और  कहा  ---- सर्प - सर्प ,  तेज  चलो , तेज  l  "  ऋषियों  को  क्रोध  आ  गया  , उन्होंने  पालकी  पटक  दी   और  कहा --- " मूर्ख  राजा  !  जा  तू  सर्प  बनकर  धरती  पर  जन्म  ले   और  कोटर  में  निवास  कर  l  तेरी  यही  सजा  है  l  " 
  अहंकारी  व्यक्ति  अपना  ही  अहित  कर  लेता  है  l 

20 December 2018

WISDOM ------ आसुरी प्रवृति के लोगों की गतिविधियों के प्रति जागरूक रहकर ही परिवार और समाज की रक्षा संभव है

  हमारे  महाकाव्य  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  ,  इस  कला की आज  सबसे  ज्यादा  जरुरत  है  ----  रामायण  में  बालि  - सुग्रीव का कथानक  हमें  बहुत  महत्वपूर्ण  शिक्षा  देता  है  कि  कैसे   आसुरी  प्रवृति  के  लोग  भाई - भाई  को   लड़ाकर   अपने  स्वार्थ  और  अहंकार  की  पूर्ति  करते  हैं  -----
 ' आसुरी शक्तियों  के  हाथों  में   पहुंचकर   उत्कृष्ट  ज्ञान  भी  निकृष्टतम  परिणाम  देने  लगता है   l  ' 
  रावण  बहुत  ज्ञानी  था   लेकिन  उसमे  छल - कपट  और  अहंकार  अपने  चरम  पर  था   l   इसी  तरह  वानरराज  बालि  में  अनेक  गुण  होने  के  बावजूद  उसका  अहंकार  उसे  जब - तब  गुमराह  करता  था   l  
        बालि  और  सुग्रीव  दोनों भाइयों  में  बहुत  प्रेम  था  ,   सुग्रीव  अपने   बड़े  भाई  बालि  को   पिता  की  तरह  मान - सम्मान  देता  था   l    लेकिन  बालि   को  उसके  चापलूस  पथ भ्रमित  करते  रहते  थे  ,  जिसने  भी  उसकी  प्रशंसा   की  वह  उसी  को  अपना  सगा  मान  लेता  था  l   बल  और  वरदान  का  अहंकार  उसे  सच  सुनने  और  समझने  नहीं  देता  था   l 
   रावण  की    चाटुकारिता  ने  उसे  सम्मोहित  कर  लिया  था  और  वह  रावण  को  अपना   मित्र  मान  बैठा  था   l  उसके  विरुद्ध  वह  कुछ  भी  सुनने - समझने  को  तैयार  न  था  l
   बालि  के  पास  जितना   अधिक   बल  था   रावण  के  पास  उतना  ही  अधिक  छल  था  l  वह  अपनी  कुटिल  चालों  में  लगा  हुआ  था  l  वह  चाहता  था  कि  अति प्रेम  करने  वाले   बालि  और  सुग्रीव  के  बीच  वैमनस्य  हो  जाये  l  वह  उनमे  फूट  डालना  चाहता  था  l    वह   जानता    था  कि  बालि  अपने  बल  के  मद  में  उन्मत  है  वह   जिससे  भी  शत्रुता  करता  है  ,  उसे  या  तो  झुका  देता  है  , या  मिटा  देता  है    l  रावण  का  अहंकार  दो  भाइयों   में  शत्रुता  करा  कर  अपना  आधिपत्य  चाहता  था   l  
  आखिर   बालि  और  सुग्रीव  में  शत्रुता  हो  गई   l  श्री हनुमानजी  के  माध्यम  से  सुग्रीव  को  भगवान  श्रीराम  की  कृपा  मिली ,  बालि  का  वध  हुआ  l 
उस युग  में   असुरता  को  मिटाने  भगवान  आ  गए  ,  लेकिन  अब  भगवान  भी  कब  तक  आयेंगे  ?  ईश्वर  की  यही  इच्छा  है  कि  मनुष्य  स्वयं  जागरूक  हो  ,  विवेक  से  काम  ले  l    स्वाभिमानी  बने  l  किसी  के हाथ  की  कठपुतली  न  बने    l   परिवार  हो , समाज हो  अथवा  राष्ट्र  हो  ,  आसुरी  शक्तियां  उनमे   फूट  डालकर  अपने  आधिपत्य  की  महत्वाकांक्षा  को  पूरा  करती  हैं   l  जागरूक  रहकर  ही  हम  सत्य  को  समझ  सकते  हैं   l  

18 December 2018

WISDOM---- शक्तियों का सदुपयोग जरुरी है -

 '   शक्तियों  का  उपयोग  विवेक सम्मत  तरीके  से  ही  किया  जाना   चाहिए , अन्यथा  दंड  का  भागी  बनना  पड़ता  है  l '
 श्रुतायुध   ने    भगवन  शिव  की  तपस्या   कर   उनसे  ऐसी  गदा  प्राप्त  की ,  जिसका  प्रहार  तीनो  लोक  में  किसी  के  लिए  सह  पाना  संभव  नहीं  था  l  गदा  देते  समय  भगवान  शिव  ने   श्रुतायुध  को  आगाह  किया  कि  गदा  का  उपयोग  मात्र  सत्कार्यों  ,  यदि  व्यक्तिगत  राग - द्वेष  की  पूर्ति  के  लिए   इसका  उपयोग  हुआ  तो   यह  गदा  उसकी  मृत्यु  का  कारण  बनेगी   l   महाभारत  के  युद्ध  में   श्रुतायुध  का  युद्ध  में  अर्जुन   से  सामना  हुआ   l
  भगवन कृष्ण  को   उसकी  गदा  के  विषय  में  ज्ञात  था   उर  वे  जानते  थे  कि  यदि  गदा  चली  तो  अत्जुन  उसका  प्रहार  झेल   न  सकेंगे   l   भगवान  श्रीकृष्ण  श्रुतायुध   को  देखकर  हँस  पड़े  l  श्रुतायुध  को  लगा  कि  सम्भवतया   भगवान  कृष्ण  उसे  कुरूप  समझकर   उस  पर  हँस  रहे  हैं   l  क्रोध  में  वह  अपना  संयम  खो  बैठा   और  भगवान  शिव  की  चेतावनी  भूल  गया   l  उसने  वह  गदा  भगवान  कृष्ण  को  लक्ष्य  कर  फेंकी  ,  किन्तु  गदा  ने  लौटकर  श्रुतायुध  का  ही   वध  कर  दिया   l
  यदि  व्यक्ति  अपनी  शक्ति  का  उपयोग  निर्दोष  को  सताने  के  लिए,  अपने  अहंकार  की  तुष्टि  के  लिए  करता  है   ,  तो  ऐसे  व्यक्ति  का    वह  चाहे  कितना  ही  शक्तिशाली  क्यों  न  हो ,  उसका  पतन  हो  जाता  है   l     

17 December 2018

WISDOM ----- जो स्वयं को सम्मान देते हैं , स्वयं से प्रेम करते हैं , वे दूसरों पर किसी भी चीज के लिए आश्रित नहीं होते

 जो  स्वयं  से  प्रेम  करते  हैं ,  जिनका  मन  मनोग्रंथियों   से  मुक्त  होता  है    वे  सही  मायने में  शांति  और  आनंद  का  जीवन  जीते  हैं   l  लेकिन  जो  स्वयं  से  प्रेम  नहीं  करते   वे  व्यक्ति  जीवन  भर  भिखारी  की  तरह   दीन - हीन  मन:स्थिति  का  जीवन  जीते  हैं  l  उनके  पास सब  कुछ  होता  है  , लेकिन  हीनता  की  ग्रंथि  के  कारण  वे  उसके महत्व  को  समझ  नहीं  पाते   l ---
  सिकंदर  एक  ऐसा  व्यक्ति  था  ,  जिसके  पास  किसी  चीज  की कमी  नहीं  थी   लेकिन  वह  हीनता  की  ग्रंथि  का  शिकार  था   और  इसी  मनोग्रंथि  के  कारण  पूरे  विश्व  को  जीतने  की  महत्वाकांक्षा  मन  में  संजोये  था   l   अपनी  इस  विश्व विजय  यात्रा  पर  निकलने  से  पहले   वह   डायोजिनीस  नामक   फ़कीर  से  मिलने  गया  ,  जो  हमेशा  परमानन्द  की  अवस्था  में  रहता  था   l  सिकंदर  को  देखते  ही  डायोजिनीस  ने  पूछा  --- " तुम  कहाँ  जा रहे  हो  ? "
सिकंदर  ने  कहा --- " मुझे  पूरा एशिया  महाद्वीप  जीतना  है  l "
डायोजिनीस  ने  पूछा ----"  उसके  बाद  क्या  करोगे  ? "
 सिकंदर ---- " उसके  बाद  भारत  को  जीतना  है  l "
डायोजिनीस ----- "उसके  बाद  ? '
सिकंदर ---- "  उसके  बाद  शेष दुनिया   को  जीतूँगा  l
डायोजिनीस ---- " और  उसके  बाद  ? "
सिकंदर  ने  खिसिआते   हुए  जवाब  दिया  ---- " उसके  बाद  मैं  आराम  करूँगा  l "
डायोजिनीस    हंसने  लगे  और  बोले --- " जो  आराम  तुम  इतने  दिनों  बाद  करोगे  ,  वह  तो  मैं  अभी  भी  कर  रहा  हूँ  l  यदि  तुम  आख़िरकार  आराम  ही  करना  चाहते  हो  तो   इतना  कष्ट  उठाने  की  क्या  आवश्यकता  है  l  तुम  भी   यहाँ    पर  आराम  कर  सकते  हो  l "
 डायोजिनीस  की  बात  सुनकर  सिकंदर  सोचने  लगा  उसके  पास  सब  कुछ  है  ,  पर  शांति  नहीं   परन्तु  डायोजिनीस   के  पास  कुछ  नहीं  है  , पर  उसका  मन  शांति  और  आनंद  से  भरा  हुआ  है  l
जिनका  मन  मनोग्रंथियों  से  घिरा  हुआ  होता  है   वे  बेचैन , अशांत  व  परेशान  रहते  हैं   l  ऐसे  व्यक्ति  चाहे  पूरा  विश्व - भ्रमण  कर  लें  ,  ढेर  सारी  सम्पदा  एकत्र  कर  लें  ,  लेकिन  फिर  भी  वे  अपने  मन  के  अँधेरे  को  दूर  नहीं  कर  पाते  l  उनका  मन  अशांत  ही  बना  रहता  है   l  

11 December 2018

WISDOM ----- चरम पुरुषार्थ से नूतन भाग्य का निर्माण किया जा सकता है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  नियति  के कुछ  ऐसे   पाश  होते  हैं  ,  जिन्हें  अनिवार्य  रूप  से  भोगना  ही  पड़ता  है  l  पुरुषार्थी   नियति  के   ऐसे   पाशों  को   या  तो  उखाड़  फेंकता  है   या  फिर  इन्हें  झेलने  की   असीम सामर्थ्य  उत्पन्न  करता  है   l    सच्चा  पुरुषार्थी  अपनी  नियति  को  बदलता  है   और  दूसरों  की  नियति  को  भी  परिवर्तित  करने  की  क्षमता  रखता  है   l  उसके  पास  तपश्चर्या  की  असीम  और  अपरिमित शक्ति  होती  है   l  पुरुषार्थ  की चरम  अवस्था  ही  तपश्चर्या  है  l 
 पुरुषार्थी  के  पास  तप  की  शक्ति होती  है   l   आचार्य जी  का  स्पष्ट  मत  है  --- कर्मयोगी  बनो  l  संसार  में  रहकर   सुख - दुःख ,  मान - अपमान   को  समभाव  से  सहन  करना ,  कष्टों  को  असीम  धैर्य  से  सहन  करना   और  प्रतिशोध की  अग्नि  से  दूर  रहकर    अपने  लक्ष्य ,  अपनी मंजिल  की  ओर बढ़ना ही  तप  है  l  ऐसे  पुरुषार्थी  बनकर  ही  नवीन  भविष्य   का  निर्माण  किया  जा  सकता  है   l  

10 December 2018

WISDOM --- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

     इस  स्रष्टि  में  सबसे  महत्वपूर्ण    मनुष्य  के  कर्म  हैं   l  जीवन  में  पुण्य  कर्मों  के   उदय  होने  से   मनुष्य  सफलता , सम्मान , यश   प्राप्त  करता  है  ,  वहीँ  पाप  कर्मों  के  उदय  होने  से   अपयश ,  असफलता  ,  रोग  व  पीड़ा  का  भागी  बनता  है  l 
इस  संसार  में   ऐसा  कभी  नहीं  होता  कि  अच्छे  या  बुरे कर्म  किये  जाएँ   और  उनका  तुरंत  फल  मिल  जाये   l  व्यक्ति  कर्म  तो  करता  है  ,  लेकिन  उसका  फल  कब  मिलेगा   , यह  काल  ( समय )  निश्चित  करता है  l 
  एक  प्रसंग  है ----- राजा  के  यहाँ  चोरी  हुई  तो  ऋषि मांडव्य  के  आश्रम  में छिपे   डाकू  पकड़े  गए  l    राज्य  के  अधिकारी  डाकुओं  के  साथ  उन्हें  आश्रय  दिए  जाने  के  अपराध  में   ऋषि  को  भी  पकड़ कर   ले  गए  l  न्यायालय  में  वहां  के  नियम  के  अनुसार   सभी  को  सूली पर  चढ़ाने  का  दंड  मिला   l  अन्य  ऋषियों  ने  दरबार  में  आकर    ऋषि  मांडव्य  की  निर्दोषता  बताई  l  राजा ने  फांसी  तुरंत  रुकवा  दी    और  उन्हें  तख्ते  से   नीचे  उतार  लिया  गया  l   तब  नतक  उन्हें  काफी  शारीरिक ,  मानसिक  यातना  मिल  चुकी  थी   l  राजा  ने  क्षमा  मांगी  l  ऋषि  मांडव्य  ने  कहा  ---- " जब  मैं  सूली  पर  था  ,  तब  ध्यान  में  जाकर  देखा  ---- पूर्वजन्म  में  मैंने  अनेक  पशु - पक्षियों  को  सताया  था  l  उसी  के  कारण    भारी  यातनाओं  के   साथ  मरना   मेरे  विधान  में  लिखा  था  ,  पर  मेरी  इस  जन्म  की  तपस्या   और  सेवा  ने   उन  कष्टों  को  घटा  दिया  l  पूर्णत:  शमन   तो  किसी  पापकर्म  का  नहीं  हो  सकता  l  आप परेशान  न  हों  l  जितना  भुगतना  था ,  उतना  मैंने  भुगत  लिया   l  " 
            तप  से ,  सेवा  कार्य  से  कर्म बंधन  शिथिल  किए  जा  सकते  हैं  l  कर्मों  के  फल  से  कोई  बच  नहीं  सकता   l  

9 December 2018

WISDOM ---- अपने भक्त का योगक्षेम भगवान वहन करते हैं

  कहते  हैं  जो    ईश्वर के सच्चे  भक्त  हैं  ,  केवल  कर्मकांडी   नहीं  , निष्काम  कर्म  करते  हैं ,  ईश्वर  के बनाये  इस  संसार  को  सुन्दर  , श्रेष्ठ  बनाने  में  योगदान  देते  हैं  उनका  योगक्षेम  स्वयं  भगवान  वहन  करते  हैं   l  गीता  में    कहा   है ---  मिलेगा  वही,  जिसमे   भक्त  का  हित  होगा  l   ऐसी  इच्छा  ,  आकांक्षा   जिसका  कोई  आधार  नहीं  है  ,  भगवान  की   उपासना  से   पूरी  नहीं  होगी  l  भगवान  अपने  भक्त  का माँ  की  तरह  ध्यान  रखते  हैं   l  
  एक  उदाहरण  रामचरितमानस  में  है ----  जब  नारद जी  भगवान  राम  को  वन  में  सीता  को  ढूंढते  हुए  विरह  की  स्थिति  में  देखते  हैं   तो  उनके  पास  जाकर    पूछते  हैं    ---- "  एक  बार    आपने  मुझे  अपनी  माया  से  मोहित  कर  दिया  था ,  और  मैं  विवाह  को  आतुर  था  ,  तब  आपने   ऐसी  माया  रच  दी  कि   मेरा  विवाह  नहीं  हो  पाया  ,     तब  व्याकुलता की  स्थिति  में  मैंने  शाप  दे  दिया  था   कि   त्रेतायुग  में  जब  राम  के  रूप में  अवतार  होगा  तो  ऐसी  विरह  की  स्थिति  से  गुजरना  होगा ---- तब  आपने   ऐसा  क्यों  किया  ? 
     भगवान कहते  हैं ----- '  कुपथ्य  मांग  जिमि  व्याकुल  रोगी ,  वैद्य  न  देई  सुनो  मुनि  योगी   l '
  यदि  कोई  रोगी  वैद्य  से   कुपथ्य  मांगे  तो  वैद्य  उसे  वह  नहीं  देता   क्योंकि  वह  रोगी  का  हित  चाहता  है   l   काम  और  क्रोध   इनसान  के  सबसे  बड़े  शत्रु   हैं  ,  जो  मेरा  भक्त  है  उसके  पास  केवल  मेरा  ही  बल  होता  है   , इसलिए  अपने  भक्त  के  काम  व  क्रोध  रूपी  शत्रुओं  को  मारने  की  जिम्मेदारी  तो  मेरी  है  l   तुम  मेरे  प्रिय  भक्त  हो   l   इन  शत्रुओं  से  तुम्हारी  रक्षा  करना  मेरी  जिम्मेदारी  है   l  "
  हम  ईश्वर  के  सच्चे  भक्त - कर्मयोगी  बने   l  

7 December 2018

WISDOM ------ ईश्वर की उपासना केवल जप , तप व ध्यान से ही नहीं होती , बल्कि सत्कर्म से भी होती है

  गेरुए  वस्त्र  धारण  करना , जप , कीर्तन आदि  बाहरी   आडम्बर  है  ,  इनकी  सार्थकता  तभी  है  जब  सेवा  और   सत्कार्यों  द्वारा   मानसिक  परिष्कार  किया  जाये   I
  महाभारत  के  युद्ध  के  दिनों में   रात्रि के समय   युधिष्ठिर  वेश  बदलकर   कहीं  जाया  करते  थे   l  एक  दिन  शेष  भाइयों  को  उत्सुकता  हुई   तो  वे  भी  उनके  पीछे  चल  दिए   l  उन्होंने  देखा  कि   युधिष्ठिर   युद्ध भूमि  में  घायल  सैनिकों  के  बीच  घूम - घूमकर   देख  रहे  हैं  कि  कहीं  कोई  भूखा - प्यासा  तो नहीं  है  l वे  चाहे  शत्रु  पक्ष  के  थे   या  स्वयं  के  पक्ष  के  थे  , उन्होंने  सभी  घायलों  की समुचित  सेवा  की   l  उनके  लौटने  पर  अर्जुन  ने  उनसे  पूछा  --- " आपको  वेश  बदलकर   यहाँ  आने की  क्या  आवश्यकता  थी  ? "
     युधिष्ठिर  बोले ---- " अर्जुन  ! इनमें  से  अनेक  कौरवों  के  पक्ष  के  हैं   l  यदि  ये  मुझे  पहचान  जाते   तो  अपनी  व्यथा  मुझसे  नहीं  कह  पाते  l "
  भीम  ने  पूछा ---- "  युद्ध  के  समय  शत्रु  की  सहायता  करना  क्या  उचित  है   ?  " 
 युधिष्ठिर  बोले ----  " भीम  !  मनुष्य  का  शत्रु  , मनुष्य  नहीं ,  बल्कि  उसके  स्वकृत  पाप  होते  हैं   l "
नकुल - सहदेव  ने  पूछा ---- " आपने  यह  समय  उपासना  के  लिए  घोषित  कर  रखा  था   l  क्या  आपको  झूठ  बोलने  का  पाप  नहीं  लगेगा  ? "
 युधिष्ठिर  बोले  ---- " नहीं  l   भगवान  की  उपासना  केवल  जप , तप , ध्यान  से  ही  नहीं  होती  ,  बल्कि  कर्म  से  भी  होती  है   l  l  "  चारों  भाई  युधिष्ठिर  की   धर्म परायणता  पर  नत - मस्तक  हो  गए   l  

6 December 2018

WISDOM ---- सफलता के साथ विवेक जरुरी है

 सफलता  के  शिखर  पर  पहुंचना  और  प्रतिष्ठित  होना  हर  कोई  चाहता  है  ,  लेकिन  विवेक  के  अभाव  में   अपार  सफलता  अहंकार  को  जन्म  देती  है   और  अहंकार  पतन  और  विनाश  की  ओर  धकेलता  है  l 
  इतिहास  गवाह  है   कि  सफलता  के  चरम  पर  पहुंचकर   घमंड  ने  कितनों  को  पतन  के  कगार  पर  धकेला  है   l
  रावण  की  महासभा  में  पहुंचकर  हनुमानजी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ   कि वैभव  के  शिखर  पर  बैठा  रावण   चाहता  तो  न  जाने  कितनों  का   कल्याण  कर  सकता  था  लेकिन  सफलता  के  मद  में  चूर   होकर  वह  अन्याय  व  अत्याचार  करने लगा   l  विपुल  वैभव  और  ऐश्वर्य   के  बव्ज्य्द   उसका  पतन  हुआ   l 

5 December 2018

WISDOM ---- प्राणियों में वैर प्राकृतिक होता है किन्तु मनुष्य अपने विकारों से ग्रस्त होकर वैर करता है l

    विभिन्न  प्राणियों  में  जैसे  सांप  और  नेवले  में   वैर  प्राकृतिक  होता  है   किन्तु   ऐसे  प्राणी  भी  कभी  अपना   वैर    त्याग  देते हैं  ----  महर्षि  रमण  आदि  अनेक  महान  योगी  हैं  जिनके  आश्रम  में   परस्पर  वैर  रखने  वाले  प्राणी  भी  प्रेम  से  रहते  थे  , कभी  किसी  का  अहित  नहीं  करते  थे  l 
  किन्तु  मनुष्य  एक  ऐसा  प्राणी  है   जो  काम , क्रोध , लोभ , मोह ,  अहंकार ,  ईर्ष्या - द्वेष  आदि  विकारों  से  ग्रस्त  है   और  इन्ही  विकारों  के  कारण  वह  दूसरों  का  अहित  करता  है ,  उन्हें  कष्ट  देता  है  l 
भगवान  बुद्ध  का  एक  चचेरा  भाई  था  देवदत्त ,  वह  भगवान  बुद्ध  से  गहरी  ईर्ष्या  रखता  था   l  उसकी  हमेशा  यही  कोशिश  रही  कि  कब  उसे  मौका  मिले  और  वह  कब  तथागत  की  हत्या  कर  दे  l  कहा  जाता  है  जब  बुद्ध  पहाड़ी  के  निकट   वृक्ष  के  नीचे  ध्यान  कर  रहे  थे   तो  देवदत्त  ने  उन  पर  एक  बड़ी  सी  चट्टान   लुढ़का  दी   l  पूरी  संभावना  थी  कि  बुद्ध  कुचल  जाते  ,  लेकिन  आश्चर्य  ! न  जाने  कैसे  चट्टान  ने  अपनी  राह  बदल  दी  और  तथागत  साफ  बच    गए   l  किसी  ने  पूछा  ---- " भगवन  !  यह  आश्चर्य  कैसे  घटित  हुआ  ? "  तब  उत्तर  में  बुद्ध  ने  कहा ---- " एक  चट्टान  ज्यादा  संवेदनशील  है   देवदत्त  से  ,  चट्टान  ने  अपना  मार्ग  बदल  दिया  l   " 
  आज  के  समय  में   स्थिति और  भी  खतरनाक  हो  गई  है   क्योंकि  क्योंकि  इन मानसिक    विकारों  के  साथ  गरीबी ,  बेरोजगारी  और  अज्ञानता  भी   जुड़  गए  हैं   l   और  दूसरी  ओर   समाज  का  एक  वर्ग  ऐसा  है   जिसके  पास  सब  सुख - वैभव  है   लेकिन   अपनी  असीमित  कामना , वासना  और  तृष्णा  को  पूरा  करने  के  लिए   वह  अपने  चेहरे  पर  शराफत  का  नकाब  डाल  लेता  है   और  अपनी  अपराधिक  गतिविधियों   को  पूरा  करने  के  लिए   लोगों  को  किराये  पर  लेता  है  l 
अब  जंगल  तो  कट  गए ,  जंगली  जानवरों  का  भय  नहीं  है  l  अब  मनुष्य  ही  सबसे  खतरनाक  प्राणी  है    जो  बिना  किसी  वजह  के  अपनी  ही  विकृतियों  के  कारण   न  केवल  मनुष्यों   को   अपितु   प्रकृति , पर्यावरण  ,  प्रकृति  के  प्रत्येक  घटक  को  नुकसान  पहुंचाता  है   l   

4 December 2018

WISDOM ----- अनीति का अंत होता है

  '  जब - जब  होता  नाश  धर्म  का ,  और पाप बढ़  जाता है ,
     तब  लेते  अवतार  प्रभु  , यह  विश्व  शांति  पाता  है   l
  दसों  दिशाओं  में  रावण  का  आतंक  फैला  था  l  कोई  यह  सोच  भी  नहीं  सकता  था  कि  उसका  विरोध - प्रतिरोध  किया  जा  सकता  है   l  अनीति  जब  चरम  पर  पहुंची   तब  राम - जन्म  हुआ  l  तब  भगवान की  सहायता  के  लिए  रीछ , वानर ,  गिद्ध  आदि  के  रूप  में  वरिष्ठ  आत्माओं  ने  जन्म  लिया  l  सबके  सहयोग  से  आतंक  का अंत  हुआ  और  राम - राज्य  की  स्थापना  हुई  l
     इसी  तरह  दुर्योधन  आदि  कौरवों  का  अहंकार  व  अन्याय  जब  चरम  पर  पहुँच  गया  तब  भगवान  श्रीकृष्ण    स्वयं  अर्जुन  के    सारथि  बने  और  अनीति का  अंत  हुआ   l
  युगों - युगों  से  यही  होता  आ  रहा  है  l  युग  के  साथ  अनीति  का  अंत करने  के  तरीके  बदल  जाते  हैं  l
  कलियुग  में   जब  लोगों  में  कायरता  बढ़  जाती  है  ,  रावण की  तरह   बलवान   और  बलराम  के  शिष्य  दुर्योधन   की  तरह  बहादुर   लोग  नहीं  होते  l  पीठ  पर  वार  करने  वालों  की  संख्या  अधिकतम  होती  है  l
  वास्तव  में  अपराधी  कौन  है  , यह  मालूम  करना  बहुत  कठिन  होता  है    l   तब  भगवान  विभिन्न  जाग्रत  आत्माओं  के  रूप  में ,  विभिन्न  अंशों  में  अवतरित  होते  हैं    और  तब  अनीति  का  अंत  आमने - सामने  की लड़ाई   से  नहीं ,  बुद्धि  और  विवेक से  होता  है  l    

3 December 2018

WISDOM ------ अपना दोष खोजना साहस का काम है

 अपने  दोष  खोजना  साहस  का  काम  है   और  दूसरों  से  अपनी  कमियों  को  सुनना  भी  सहज  नहीं  है  l  अपनी  गलतियों  को    सुधारने    का  प्रयास  बहुत  धैर्य  और  साहस पूर्वक  करना  चहिये  l 
  दोष  उर्वर   भूमि  में  उगी  फसलों  के  बीच  खरपतवार  के  समान  होते  हैं  l  समय  रहते  यदि   इन्हें  उखाड़ा - पछाड़ा  नहीं  गया   तो  ये  सारे  फसल  के  स्थान  पर  छा  जाते  हैं   और  इनकी  जड़ें  गहरी  होती  चली  जाती  हैं   l  फिर  भी   अगर  ध्यान  नहीं  दिया  गया  तो   जीवन  में  केवल   खरपतवार  रूपी  दोष  ही  दोष   नजर  आते हैं     l  दोषों  का  परिमार्जन  जरुरी  है   l  

2 December 2018

WISDOM ----- मानव - समाज सामूहिक आत्महत्या की ओर बढ़ रहा है

 आज  युद्ध  के  लिए  वैज्ञानिक  अस्त्रों  की  विशिष्टता  और  अभिवृद्धि  को   बड़ी  वैज्ञानिक  उपलब्धि  गिना  जाता  है   l  ऐसे  किसी  अस्त्र  के  प्रयोग  से  कितने  निर्दोष  लोगों  को  मारा  जा  सकता  है --- अब  यह  गर्व  का  विषय  हो  गया  है   l 
  प्रत्येक  देश   युद्ध  के  लिए   कितनी  भयंकर   तैयारी  करता  है  कि   उससे  प्रकृति  में  भी  यही  सन्देश  जाता  है  कि  मनुष्य  को  मरना - मारना  बहुत  पसंद  है  ,  प्राकृतिक   विपदाएं  आने  लगती  हैं  l  दुष्ट  शक्तियां    गतिशील  हो  कर     मनुष्य  पर  इस  तरह  हावी  हो  जाती  हैं    कि  मनुष्य  स्वयं  ही   छोटी - छोटी  बातों  पर  बहस  करते - करते  उन्हें  एक  बड़े   दंगे  में  परिवर्तित  कर  देता  है   l   लड़ाई - झगड़े   करना ,  कराना ,  मरना ,  मारना  भी   रोजगार  हो  गया  है  व्यक्ति  इतना  दोषी  नहीं  है  जितना  कि  वातावरण   l   भयभीत  होकर  हथियारों  का  संग्रह  करना ,  उनकी   संगत    में  रहना  l  यह  सब  व्यक्ति  को  संवेदनहीन  बना  देता  है   l 
  आज  जरुरत   सामान्य  व्यक्ति  को  जागने    की    है  ,  उसे  जागरूक  होना  है  ,  प्राथमिकता  तय  करनी  है  कि  स्वाभिमान  से  मेहनत - मजदूरी  करके   अपने  परिवार  को , बच्चों  को  सुरक्षित  रखना  है  या   किसी  की  कठपुतली  बनकर     हमेशा  असुरक्षित  और  भय  का  जीवन  जीना  है  l   

1 December 2018

WISDOM ---- व्यक्तित्व का परिष्कार ही अध्यात्म है

 कर्मकांड  पर इतना  अधिक  जोर  दिया  गया  है  कि  लोग  अध्यात्म  का  सच्चा  स्वरुप  भूल  गए  हैं  l   कहीं  अखंड  कीर्तन , कहीं  अखंड  जप ,  कहीं  अखंड  रामायण --- इन  सबके  साथ यदि  अपने  व्यक्तित्व  का परिष्कार  भी  किया  जाये   तो  चारों  ओर  सुख - शांति  का  साम्राज्य  हो  जाये  l   अपने  स्वार्थ , लालच  , अहंकार ,  ईर्ष्या   और  कभी  न  मिटने  वाली  तृष्णा   के  वशीभूत  हो  कर  छल - फरेब,  षड्यंत्र   आदि   दुष्कर्मों  में  ऐसा  संलग्न  है  कि  इन  कर्मकांडों  का ऐसे  व्यक्ति  को  और  समाज  को  कोई  लाभ  नहीं  मिल  पाता  l 
  सभी  धर्मों  में  ह्रदय  की  पवित्रता  पर  जोर  दिया  गया  है  ----
   ईसामसीह  अपने  शिष्यों  के  साथ  यरुशलम  पहुंचे   l  वहां  के  गिरजाघर     की  शान - शौकत  को  देखकर  बोले --- " इसकी  सारी  भव्यता  बेकार  है  l  एक  दिन  यह  गिरकर  तबाह  हो  जायेगा  l  "   उनकी  बात  सुनकर  शिष्य  दुखी  हो  गए   और  कहने  लगे ---- "  आप  प्रभु  के  घर  के  बारे  में   ऐसा  क्यों  सोचते  हैं  ? " 
ईसामसीह  बोले  --- " मैं  तुम्हे  अपना  ध्यान  भगवान  के  उस  मंदिर  में  लगाने  को  कहता  हूँ  ,  जो  कभी  नष्ट  नहीं  हो  सकता  l  तुम्हारी  अंतरात्मा  प्रभु  का  शाश्वत  निवास  स्थान  है  l  सारी  दुनिया  खत्म  भी  हो  जाये   तो  भी  तुम  अपने  प्रभु  का  दर्शन  वहां  हमेशा  कर  सकते  हो   l "
  शिष्यों  ने उनके  इस  कथन  का  मर्म  समझा   l   

30 November 2018

WISDOM ---- मनुष्य अपने पाप कर्मों से उस स्थान विशेष को भी प्रदूषित करता है

`जिन  स्थानों पर  हत्या , लूट,  एक्सीडेंट ,  लोगों  को  सताना ,  पशु  हत्या   आदि  अमानवीय  कार्य  होते  हैं  ,  उस  स्थान  पर  नकारात्मकता  बढ़  जाती  है  l  ऐसे  स्थानों  पर  रहने  से   या  वहां  से  गुजरने  से  ही  मन  में  बुरे  ख्याल  आते  हैं , तनाव व  नकारात्मकता  बढ़  जाती  है   l  जब     महाभारत  होना  निश्चित  हो  गया   तो  भगवन  श्री कृष्ण  ने   अपने  दूतों  को  भेजा  और  किसी  ऐसे स्थान  का  पता  लगाने  कि  बात  कही  जिसका  इतिहास  कुख्यात  हो   l  एक  स्थान  पर   एक  भाई  ने  अपने  ही  भाई  की  हत्या  कर  दी  थी    ``l अत:  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  सोचा  कि  महाभारत  के  लिए    यही    स्थान  उपयुक्त  रहेगा   l  वे  चाहते  थे  अधर्म  पर  धर्म  की  विजय   हो ,  अन्याय  के  अंत  के  लिए  युद्ध  अनिवार्य  था   l  अत:  कुरुक्षेत्र  का  चयन  किया  गया  l 
  इसके  विपरीत  जिन  स्थानों  पर  मन्त्र जप  होते  हैं ,  ऋषियों  की  तप  स्थली  होती  है   वहां  जा  कर  मन  को  अनोखी  शांति  मिलती  है    l  

29 November 2018

WISDOM -----

       कभी  एक  अवगुण  इतना  भारी  होता  है  कि  वह  सारे  गुणों  को  ढक  देता  है   l  रावण  ने  सीताजी  का अपहरण  किया ,  यह उसका  इतना  बड़ा  दोष  था  जिसने  उसके  सारे  गुणों  को  ढक  दिया  l
 रावण  चारों  वेद   व  शास्त्र  का  ज्ञाता , बलशाली  और   महा तपस्वी  था   l  वह  महान  अर्थशास्त्री  था , तभी  तो  उसकी  सोने  की  लंका  थी   l  राजनीति  व  कूटनीति  में  कुशल  था  l रावण  एक  कुशल  संगठनकर्ता    था   l   उसने  बड़े  ही  असाधारण  ढंग  से  राक्षस , असुर  ,  दानव  आदि  प्रजातियों  को  संगठित  किया  l  इस  संगठन  संरचना  को  उसने    रक्षसंस्कृति  का  नाम  दिया  l  अपने  इस  संगठन  को  उसने  एक  महामंत्र  दिया --- ' वयं  रक्षाम: '  l  -- इसका  अर्थ  है  --- हम  रक्षा  करेंगे '  इसमें  संगठन  के  सभी  सदस्यों  की  सभी  आवश्यकताओं  की  पूर्ति  का  आश्वासन  है   l  सदस्यों   को    रावण  के  व्यक्तित्व   और  विचारों  में  आस्था  थी  l  दशानन  उनके  लिए   केवल  सेनापति  या  राजा  नहीं   था  , बल्कि  वह  उनके  लिए   गुरु  एवं  भगवान  था  l   उसका  यह  संगठन  भावनाओं  के  अटूट  बंधन  से  बंधा  था ,  इसलिए  अति  सुद्रढ़  था   l 
  रावण  के  व्यक्तित्व  के  अध्ययन  से  यही   शिक्षा  है   कि    केवल  एक  ही  अवगुण   मनुष्य  को  पतन  के  गर्त  में  धकेल  देता  है   इसलिए  जीवन  को  बहुत  सावधानी  से  जीना  चाहिए   l  

संत की महिमा

  गुरु  नानक  साहब  मुलतान  पहुंचे  l वहां  के  पीर - फकीरों  ने  उनकी  परीक्षा  ली  कि  यह  व्यक्ति  वास्तव  में  कौन  है  ?   उन  लोगों  ने  एक  दूध  से  लबालब  कटोरा  उनके  पास  भेजा  l  सन्देश  यह  था  कि   इसमें  एक  भी  अतिरिक्त बूंद  की  गुंजाइश  नहीं  है  l मुलतान  शहर  में   कई  पहुंचे  हुए  पीर - फकीर - संत  हैं  ,  उनके  लिए वहां  कोई  जगह  नहीं  है  l 
  गुरु  नानक देव   सब  जानते  थे  l  उनने  दूध  के  कटोरे  में  दो  बताशे  डाल  दिए  और  एक  गुलाब  की पंखुड़ी  डाल  दी   l   आशय  यह  था  कि   बताशा  अपनी  मिठास  से  जिस  तरह  दूध  को  मीठा  कर  देता  है   तथा  फूल  के  रहते   कभी  दूध  बिगड़  नहीं  सकता  ,  उसकी  सुगंध  ही  फैलती  है  ,  उसी  तरह  उनके  यहाँ  आने  से   किसी  को हानि  नहीं  पहुंचेगी  , उलटे  सत्संग  का   और  ज्ञान का  लाभ  ही  होगा  l सन्देश मिला  l  सभी  पीरों  ने जाना  कि   सचमुच  एक  औलिया`  सिद्ध  पुरुष  आया  है  l  सभी  उनसे  मिलने  आये  और  सभी  ने  मिलकर  सत्संग  का  आयोजन  किया   l  

27 November 2018

WISDOM ----- अध्यात्म का प्रथम सोपान ---- कर्मयोग अर्थात निरंतर प्रयास और पुरुषार्थ अनिवार्य है

  स्वामी  विवेकानन्द जब  अमेरिका  गए  तो  वहां   एक   ने  उनसे  सवाल  किया  ----- " क्या  आपने  हिंदुस्तान में  ब्रह्म विद्दा  सिखा ली  ?  हिंदुस्तान  में  ज्ञान  और  धर्म  का  प्रचार  हो  गया  ,  जो  इतना  लम्बा    सफर   कर के  यहाँ  आये   ? " स्वामी  ने  गम्भीरता  से  उत्तर  दिया ------ " हमारा  भारतवर्ष    तमोगुण  में  डूबा  हुआ  है    आप   एक  क्लास  आगे  बढ़  गए  हैं  ,  आप  रजोगुण  में  हैं   इसलिए  आपको  उसके  आगे  -- सतोगुण  का  पाठ  सिखाने  आये  हैं  l  हम  आपको  न  तो  भजन    की   शिक्षा  देने  आये  हैं   और  न  ही   संयम  और  सेवा   की  l  आप  सामर्थ्यवान  हैं    और  सामर्थ्यवान  को   त्याग    की    शिक्षा  दी  जा  सकती  है, ज्ञान , ध्यान  और  प्रेम  की शिक्षा  दी  जा  सकती  है   लेकिन  जहाँ  गरीबी  है  , बेरोजगारी  है  वहां  ध्यान  और  त्याग  की  शिक्षा  कैसे   दे  सकते   हैं   l  "  
  हजारों   वर्षों  की  गुलामी  के  कारण    भारत  अभी  भी  तमोगुण  अर्थात  जड़ता   की  स्थिति  में  है   यहाँ  कर्मयोग  के   शिक्षण  की  जरुरत  है  l
   तुलसीदासजी  ने  भी  लिखा  है ---- ' सकल  पदारथ  हैं  जग  मांहीं,  करमहीन  नए  पावत नाहीं  l 
  कर्मकांड  और  आडम्बर  छोड़कर  आज  लोगों  को  कर्मयोगी  बनने  की  जरुरत  है  l  

26 November 2018

WISDOM ----- वर्तमान अध्यात्म

  पं. श्रीराम शर्मा  आचार्य जी  ने    अपनी  क्रांतिधर्मी पुस्तिका  ' परिवर्तन  के  महान  क्षण  ' में  लिखा  है --- " जो  लोग  धर्म  और अध्यात्म   को   चर्चा - प्रसंगों   में  मान्यता  देते  हैं  ,  वे भी निजी  जीवन   में  प्राय:  वैसे  ही  आचरण    करते  देखे  जाते  हैं  ,  जैसे कि  अधर्मी  और  नास्तिक  करते  देखे  जाते  हैं  l   धर्मोपदेशकों  से  लेकर  धर्म ध्वजियों   के  निजी  जीवन  का   निरीक्षण - परीक्षण     करने   पर   प्रतीत  होता  है   कि  अधिकांश  लोग   उस   स्वार्थपरता   को  ही  अपनाये  रहते  हैं  ,  जो  अधार्मिकता  की  परिधि  में  आती  है   l  आडम्बर , पाखण्ड   और  प्रपंच  एक  प्रकार  से  नास्तिकता  ही  है  , अन्यथा  जो   आस्तिकता   और  धार्मिकता  की  महत्ता  भी  बखानते  हैं   ,  उन्हें  स्वयं  तो  बाहर - भीतर  से  एकरस  होना  चाहिए  था   l  जब  उनकी  स्थिति    आडम्बर  भरी  होती  दीखती  है    तो  प्रतीत  होता  है   कि  लोगों  की  आँखों  में    धूल  झोंकने   या  उनसे  अनुचित  लाभ   उठाने  के लिए  ही   धर्म  का  ढकोसला   गले  से  बाँधा   जा  रहा  है  l ----------  यह  स्थिति भयानक  है   l        ( पृष्ठ  6 एवं 7 )  
  आचार्यजी  का  कहना  है   कि   विज्ञान  की  पराकाष्ठा   के  इस  युग  में   जितनी  तेजी  से  पाखंड  और  आडम्बर  बढ़ा  है  ,  वह  आश्चर्यजनक  ही  नहीं ,  समाज  विज्ञानियों  के  लिए  एक  शोध  का  विषय  भी  हो  गया  है   l   

25 November 2018

WISDOM ----- संसार में सबसे बड़ा कर्तव्य क्या है ?

  एक  राजा  पंडितों , विद्वानों  से प्रश्न   पूछता  था  कि  संसार  में  सबसे  बड़ा  कर्तव्य   क्या  है  ?  विद्वानों  के  उत्तर  से   राजा  संतुष्ट  नहीं  हो सका  l  एक  दिन  राजा  शिकार  के  लिए  जंगल  गया  और  शिकार  का  पीछा  करते  - करते  रास्ता  भटक  गया  l  खोज  करने  पर  एक  आश्रम  दिखाई  दिया  , जहाँ  एक  संत  ध्यानस्थ  थे  l  राजा  प्यास  से  बेहाल  था  ,  संत  को  पुकारते हुए  बेहोश  हो  गया  l  होश  आने  पर  राजा  ने  देखा  कि   संत  उसके  मुंह  पर  पानी  के  छींटे मार रहे  थे  l  राजा  ने  विनम्रता  से  कहा --- " भगवन  !  आप  तो  समाधि  में  लीन  थे  l  आपने  मेरे  लिए  समाधि  क्यों  भंग  की  l  "  संत  ने  राजा  से  कहा ---- " राजन !  आपके  प्राण  संकट  में  थे  l  ऐसे  समय  मेरे  लिए   ध्यान  की  अपेक्षा  आपकी  सहायता  के  लिए  तत्पर  होना  ज्यादा  महत्वपूर्ण  कार्य  था  l  समय  और  परिस्थिति  को  देखते  हुए  ही  कर्तव्य  का  निर्धारण  करना  चाहिए  l  "  संत  के  इस  कथन  से   राजा  को  अपने  प्रश्न  का  उत्तर  भी  मिल  गया  कि    सर्वोपरि  कर्तव्य  का   निर्णय   परिस्थिति  को  देखकर  ही  किया  जा  सकता  है   l  

24 November 2018

WISDOM ---- ईश्वर की शरण में जाने से ही भय से मुक्ति संभव है

 लाओत्से  ने  कहा  है --- अगर  मजे  से  रहना   हो  तो  आखिरी  में  रहना   l  जो  अंतिम  में  खड़ा है  उसे  कोई  धक्का  देने  नहीं  आएगा  l  अगर  प्रथम  होने  की  कोशिश  होगी   तो  फिर  अनेकों  आ  जायेंगे  ,  पीछे  खींचने  के  लिए   l  इसलिए  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  को   हमेशा   बड़ी  बेचैनी  बनी  रहती  है   l  वे  सबसे  अधिक भयभीत  रहते  हैं  l  कोई  भी  तप  से  ऊपर  उठने  की  कोशिश  करे   तो  उन्हें बड़ी  घबराहट होने  लगती  है  l  

23 November 2018

WISDOM ---- नेकी और परोपकार की राह पर चलना ही सच्चा धर्म है ----- गुरु नानक

 गुरु  नानक  ने  कहा  कि    तरह - तरह  के  कर्मकांडों  में  लगे  रहना ,  पूजा - पाठ  का  ढोंग  करना   और  इन  बातों  के  नाम  पर   आपस में  झगड़े,  द्वेष भाव ,  कलह  फैलाना   किसी  प्रकार  का  धर्म  नहीं  कहा   जा   सकता   l  वे  आंतरिक  पवित्रता  को  आवश्यक  मानते  थे   l  उनकी  अधिकतर  शिक्षाएं  ' जप जी ' नामक  गीत  में  बड़े  सुन्दर  ढंग  से  प्रस्तुत  की  गईं  हैं   l मुसलमानों  में  कुरान  को   और  ईसाइयों  में  बाइबिल  को  जो  गौरव  प्राप्त  है   वह  सिख  समाज  में  ' जप जी '  को  है  l 
         ' गुरु  नानक  शाह  फकीर  l
            हिन्दू  का  गुरु  मुसलमान  का  पीर   l  

22 November 2018

WISDOM ---- उपदेश के साथ सेवा अनिवार्य रूप से जुड़ी हो तभी वह सच्ची लोकसेवा है

    भगवन  बुद्ध  ने   कहा  है ---- " प्रवचन - उपदेश  के  साथ  सेवा  अनिवार्य  रूप  से  जुड़ी  होनी  चाहिए  क्योंकि   सेवा  में  मिलने  वाले  कष्टों  से  ,  अपमानजनक  पीड़ाओं  से  व्यक्ति  का  जीवन  परिशोधित  होता  है  ,  इससे  अहंकार  का  विनाश  होता  है   और  सेवा  से  ही  संवेदना  विकसित  होती  है   l  "
  पं . श्रीराम शर्मा  आचार्य जी  ने  भी   अपने  परिजनों  को  यही  समझाया  कि   ---"  भविष्य  में  कोरे  प्रवचन  काम न  देंगे ,  सच्ची  लोकसेवा  को  ही  प्रतिष्ठा  मिलेगी   l  जो  आज  केवल  धार्मिक  आडम्बरों  में   रत  हैं  ,  कल  का  भविष्य  उन्हें  अस्वीकृत   व  तिरस्कृत  कर  देगा   l  बदलते  हुए  समय  में  युग  की  यही  मांग  है  कि  परिजनों  को  आसपास  के  क्षेत्रों  में  सेवा  कार्यों  में  जुट  जाना  चाहिए  l  सेवा  से  ही  संवेदना  विकसित  होती  है  और  आज  की  सभी  समस्याओं  का  एकमात्र  हल --- संवेदना    है  l 

21 November 2018

WISDOM ----- मनोविकारों से मुक्त होकर ही राम राज्य की स्थापना संभव है

 काम , क्रोध , लोभ , मोह  , ईर्ष्या - द्वेष   --- ये  मनोविकार  ही  परिवार और   समाज  में  अशांति  उत्पन्न  करते  हैं   और  इन  मनोविकारों  से  ग्रस्त  व्यक्ति  स्वयं  कष्ट  उठाता  है  l  युग  चाहे  कोई  भी  हो  ,  जिसमे   भी  ये  मनोविकार     होते  हैं   , प्रकृति  उन्हें  अपने  तरीके  से  दण्डित  करती   है  l 
   रामचरितमानस  में  हम  देखें  तो   राजा  दशरथ  महारानी  कैकेयी  के  सौन्दर्य  पर  मुग्ध  थे  , महारानी  को  अपने  सौन्दर्य  का  बहुत  अभिमान  व  अहंकार  था  l  इससे  भी  अधिक  घातक  था  मंथरा  जैसी  दासी  का  कुसंग   l   इस  कुसंग  ने  महारानी  कैकेयी   के  अहंकार  और  क्रोध  को  इतना  उभार  दिया  कि   राम पर  अपने  पुत्र  से  भी ज्यदा   वात्सल्य  लुटाने  वाली  कैकेयी  ने   राम   के   राजतिलक  को  रुकवाकर   अपने  पुत्र भरत    के  लिए  राज सिंहासन   और  राम  के  लिए   चौदह  वर्ष  का    वनवास  माँगा   l  मंथरा   भी बहुत  ईर्ष्यालु  थी  वह  राम  से ईर्ष्या   करती  थी  और   भरत  को  अधिक   महत्व   देती  थी  l    
  राजा  दशरथ   अपने  पुत्र  राम  से  अतिशय  मोहग्रस्त  थे  l 
  इसी   तरह    द्वापर युग  में  धृतराष्ट्र  पुत्रमोह  में  अंधे  थे ,  दुर्योधन  अति  अहंकारी  था  l   हर  युग  में  मनुष्य  इन  मनोविकारों  से  ग्रस्त  रहा  है   लेकिन  वर्तमान  में   इन  मनोविकारों  का   रूप   अत्यंत  भयावह  और  विकृत  हो   चुका    है   l  कर्मकांड  और   आडम्बर  को  ही  सब  कुछ  मानने  के  कारण  मनुष्य  की  चेतना  सुप्त हो  गई  है  , मनुष्य  संवेदनहीन  हो  गया  है   l  महाकाव्यों  से  शिक्षा  लेने  की  जरुरत  है  l  

20 November 2018

WISDOM ---- सुख से जीवन जीना है तो तृष्णा को कम करना होगा

 वस्तुओं के  प्रति  आकर्षण ,  अतृप्त  इच्छाओं  का  नाम  ही  तृष्णा  है   l
  'बढ़त  बढ़त  सम्पति  सलिल   मन  सरोज  बढ़  जाये  l
  घटत -घटत  फिर  न  घटे   बस  समूल  कुम्हलाय   l l
  भाव  यह  है  कि  कमल  का  फूल  पानी  में  डूबता  नहीं  l  पानी  बढ़ने   से  कमलनाल  बढ़ती  जाती  है   पर  पानी घटने  से  घटती  नहीं ,  समूल  कुम्हला  जाती  है   l  सम्पतिवानों  की  इच्छाएं  असीम  बढ़ती  जाती  हैं  , पर  जैसे  ही सम्पति  गई   इच्छाएं  घटती  नहीं  ,  भाव ( आदत )  बनी  रहती  है  l 
  यह  तृष्णा  ही  मनुष्य  की  अशांति  और  तनाव  का कारण  है   l   . ' रामचरितमानस '  में  सुरसा  के  प्रसंग  के  माध्यम  से  इसका  समाधान  सुझाया  है -----   श्री हनुमानजी  जब  सीताजी  का  पता  लगाने  के  लिए  लंका  में  अन्दर  जाने  लगे   तो  सुरसा नामक  राक्षसी  ने  उन्हें  पकड़  लिया   और  मुंह  में  रखकर  चबाने  लगी   l  हनुमानजी  ने  अपना  बदन  बढ़ाना  शुरू  किया   तो  सुरसा  ने  भी  अपना  मुंह  फाड़  दिया ----
   " जस - जस  सुरसा  बदनु  बढ़ावा  l
      तासु  दूंगा  कपि  रूप  देखावा  l l "
 बढ़ते - बढ़ते  जब  उन्होंने  देखा  कि  सुरसा  का  मुंह   सोलह  योजन  का  हो  गया   तो  हनुमानजी बत्तीस  योजन  के   हो  गए  l  अब  हनुमानजी  समझ  गए   कि  यह  सुरसा  कम  होने  वाली  नहीं  है  ,  यह  अपना  मुंह  कई  योजन  और  चौड़ा  कर  लेगी  l   अत:  हनुमानजी  ने        ' अति  लघु  रूप  पवनसुत  लीन्हा   l  '
  बहुत  छोटा  सा  रूप  बना  लिया  l
  ' मसक  समान  रूप  कपि  धरी  l '   --- छोटा  सा  रूप  बनाकर   सुरसा  की  दाढ  से    निकल  गए  l
                     मनोकामनाओं   की  कोई  सीमा  नहीं  है   l  रावण , सिकंदर , हिरण्यकशिपु  किसी  की  कामनाएं  पूरी  नहीं  हुईं   फिर  हमारी  और  आपकी  कैसे  पूरी  हो  सकती  हैं   ?  

19 November 2018

WISDOM ---- अध्यात्म हमारे सोचने के तरीके को ठीक करता है

 विचार   करने  की  दो  श्रेणियां  हैं ----   सोचने  का  एक  तरीका  यह  है  कि  हमारी  इच्छानुकूल  वस्तुएं  मिलें  तभी  हम   दुनिया  में  सुखी  रहेंगे  l  यह  है  भौतिकवादी  द्रष्टिकोण   l   दूसरा  द्रष्टिकोण  है  अध्यात्मवादी  द्रष्टिकोण  --- यह  हमारे  सोचने  के  तरीके  को  ठीक  करता  है  l  यदि हमारा  सोचने  का  तरीका  सही  है   तो  हम  साधारण  सुख - सुविधाओं  में  , अपने  एक  कमरे  में  रहकर  भी  सुख - शांति  से रह  सकते  हैं   लेकिन  चिंतन  सही   न   होने  से  हम  सारा  संसार  भी  घूम  आयेंगे  तब  भी  मन  अशांत  रहेगा ,  समस्याएं  बनी  रहेंगी  l   बाहरी   चीजों  से  आज  तक  किसी  को  भी  सुख - शांति  नहीं  मिली  है  l  शान्ति  हमारी  मन:स्थिति   है  जो  सही  ढंग  से  जीवन  जीने  से  हमें  मिलती  है   और  अध्यात्म  हमें   सही  ढंग  से  जीवन  जीना  सिखाता  है  l     

18 November 2018

WISDOM ----- अकेलेपन का सार्थक उपयोग करें

  दुनिया में  जो  भी  उपलब्धियाँ हैं ,  सिद्धियाँ  हैं , वे  भले  ही  संसार  के  सम्मुख  हों  , लोगों  से  घिरी  हों  , लोग  उनका  उपभोग  करते  हों  , लेकिन  उनकी  उत्पति  एकांत  के  माहौल  में  ही  होती  है  l 
 हमारे  अन्दर  की  प्रतिभा , क्षमता , रचनात्मकता  का  विकास   हमारे  स्वयं  के  पुरुषार्थ  से  होता  है   और  इसके  लिए  हमें  एकांत  की  आवश्यकता  होती  है  l  शोर - गुल  में  हम  पूरी  तरह  एकाग्र  नही  हो  पाते,  एकांत  में  ही  मन  शांत  और  स्थिर  होता  है   जिससे  साधना  के  मार्ग  पर  आगे  बढ़ने में  मदद  मिलती  है  l      एक    चीनी  साहित्यकार   हैं ---- मो  यान  l  वे  चीन  के  पहले  ऐसे  लेखक  हैं  जिन्हें  साहित्य  के  लिए  नोबेल  पुरस्कार   प्राप्त  हुआ  है  l   वे  कहा  करते  थे  एकांत  मेरे लेखन  का  अभिन्न  एंग  है   l   आर्थिक  तंगी  के   कारण  उन्हें   वीद्दालय  छोड़कर  मवेशी  चराना पड़ा   l  मवेशियों  के  बीच  वे  अकेले  होते  थे  l  यह  एकांत  उन्हें  इतना   पसंद  आया   कि  उन्होंने  अपना  नाम   ' ग्वान  मोए '  से  बदलकर   ' मो  यान  रख  लिया  , चीनी  भाषा  में  इसका  अर्थ  होता  है  मत  बोलो   l 
  एकांत   में  हम  अपनी  उर्जा  का  सकारात्मक  उपयोग कर  उसे  सार्थक  करें   l  

16 November 2018

WISDOM ------ प्रत्येक श्रेष्ठ और महान कार्य की सफलता में गंभीर मौन सहायक रहा है l

  सार्थक  मौन  उसे  कहते  हैं  जब   मन  में  श्रेष्ठ  चिंतन  और  ईश्वर  स्मरण  चलता  रहे   l
 जब  व्यक्ति  बोलता  है   तो  जिह्वा  हावी  रहती  है   लेकिन  मौन    की    अवस्था में  अंतर  बोलता  है  ,  हमें  अपने  अंतर  को  बोलने  का  मौका  देना  चाहिए  क्योंकि  इसी  में  जीवन  का  सारा  मर्म    छुपा   है   l 
   गांधीजी  के  मौन  का   प्रभाव   ऐसा  विलक्षण  और  अद्भुत  था   जिसने  कभी  न  अस्त  होने  साम्राज्य  को  पराजय  का कडुआ  घूंट  पिला  ही  दिया   l 
 अरुणाचलम  के  महर्षि  रमण  सदैव  मौन  रहते  थे  l  परन्तु  उनका  मौन  उपदेश  आत्मा  की  गहराई   में  उतर   जाता  था  l  हर  कोई उनसे  अपनी  गंभीर  समस्या  का  समाधान   अनायास  ही  पा  जाता  था  l   अंग्रेजी  साहित्य  के  महान  कवि   वर्ड्सवर्थ    अपने  काव्य  को   मौन  और  नीरवता  का  वरदान   कहा  करते  थे  l 
  जीवन  में  श्रेष्ठ  एवं  सार्थक  कार्य   के  लिए   मौन  को  एक  व्रत  मानकर  अपनाना  चाहिए   l  

15 November 2018

WISDOM ------

 एक  मिटटी के  ढेले  से  सुगंध  आ  रही  थी  तथा  दूसरे  से  दुर्गन्ध   l  दोनों  जब  मिले  तो  आपस  में  विचार  करने  लगे   कि  हम   दोनों  एक  ही  मिटटी  के  बने  हैं  ,  फिर  इतना  अंतर  क्यों   ?  सुगन्धित  ढेले  ने  कहा ---- ' यह  संगति  का प्रतिफल  है   l  मुझे  गुलाब  के  नीचे  पड़े  रहने  का  अवसर  मिला   और  तुम  गोबर  के  नीचे  दबे  रहे  l  '  यह  संगत  का  असर  है   l  

14 November 2018

WISDOM ------ सच्चा अध्यात्म

  पं.  श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  ने  अपने  प्रवचनों  में  यह  स्पष्ट  रूप  से  कहा  कि --"  अध्यात्म  किसी  जादूगरी  का  नाम  नहीं  ,  बल्कि  श्रेष्ठ  विचारों ,  ऊँचे  विचारों ,  आदर्श  विचारों  और  सही  विचारों  को  जीवन  में  उतारने  का  नाम  है  l  "  उनका  कहना  है  कि   मनुष्य  सारी  संपदाओं  का  स्वामी  होते  हुए  भी  विपन्नताओं  से  इसलिए  घिरता  है  ,  क्योंकि  उसने  अपने  जीवन  में  असंयम  को  स्थान  दे  दिया  l  वे  जीवन  में  संयम  और  अनुशासन  लाने  को  अध्यात्म  घोषित  करते  हैं  और  कहते  हैं  कि   सच्चा  अध्यात्म  आने  पर  मनुष्य  का  आहार  और  विहार  दोनों  परिष्कृत  होते  हैं  और  उसके  व्यक्तित्व  के   प्रत्येक  आयाम  में  उत्कृष्टता  की  छाप  दिखाई  पड़ती  है  l 
    जब  अध्यात्म  का  जीवन  में  प्रवेश  होता  है   तो  जीवन  कैसे  रूपांतरित  हो  जाता  है  ,  एक   उदाहरण  है --------    कर्नाटक  के  एक  छोटे  से  गाँव  में   एक  साधारण  गृहस्थ  के  घर  एक  कन्या  जन्म  लिया , जो  बड़ी  सुंदर  युवती  बनी ,  नाम  था ---- अक्का  महादेवी  l  इस  साधारण  ग्राम बाला  ने  प्रतिज्ञा   की   कि  वह  आजीवन  ब्रह्म्चारिणी  रहकर   ईश्वर - उपासना   और  राष्ट्र सेवा  करेगी ,  कभी  भी  विधर्मियों  को  अपने  देश  में  घुसने  नहीं  देगी  l  संयम   की   तेजस्विता  ने   उसकी  कांति  में  और  वृद्धि  कर  दी  l  तत्कालीन  मैसूर  के  राजा  कौशिक  ने   अद्वितीय  सौन्दर्य  की  धनी   अक्का महादेवी  से  विवाह  का  प्रस्ताव  रखा  l  वे  अपनी  अति  कामुकता  और  ढेरों  उप पत्नियों  के  लिए  प्रसिद्ध  थे  l अक्का महादेवी  ने  मना  कर  दिया  l  कौशिक  ने  उसे  अपमान  मानकर  अक्का  के  माता - पिता  को  बंदी  बनाकर  पुन:  प्रस्ताव  भेजा  l  अक्का   ने  माता - पिता  की  खातिर   प्रस्ताव  मान लिया  , लेकिन  एक  शर्त  पर  कि  वे  समाज  सेवा , संयम - साधना  का  परित्याग  नहीं  करेंगी  l   राजा  कौशिक  ने  यह  बात  मान  ली  l
      विवाह  के  बाद   अपनी   निष्ठा  से   उन्होंने  कामुक  पति  को  संत  बनाकर  सहचर  बना  लिया   l  अक्का  और  कौशिक  दोनों  ने   कन्नड़  संस्कृति  की  रक्षा  के  ढेरों  प्रयास  किए  ,  जिनकी  विरुदावली  आज  भी   गाई  जाती  है   l