11 January 2020

WISDOM ---- अहंकार से विवेक का नाश होता है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  ---- ' अहंकार  में  दोष  ही  दोष  हैं  l  '   अहंकारी   व्यक्ति  के   विवेक  का  नाश  होता  है  l   उस  पर  दुर्बुद्धि  हावी  हो  जाती  है  ----   जब  समूचा  हिंदुस्तान  रियासतों  में   बंटा   था  ,  इन्ही  में  से  एक  रियासत  थी --- विक्रमपुर   ,  यह  रियासत  छोटी  थी  किन्तु  यहाँ  का  राजा  चित्रसेन   स्वयं  को  बहुत  बड़ा  सम्राट  समझता  था  , उसका  अहंकार  बहुत  बढ़ा - चढ़ा  था  l   अच्छी  से  अच्छी  चीज  में  कमी  निकाल  देता  था  l   उसके  पास  पुरस्कार  की  आशा  लगाकर  आने  वाले  दंड  पाकर लौटते  थे  l
  एक  बार  किसी  अन्य  रियासत  से  एक  मूर्तिकार   विक्रमपुर  आया  , वह  राजा  चित्रसेन  से  मिलने  को  उत्सुक  था   l  लोगों  ने  उसे  बहुत  समझाया  कि   वह  राजा  से  न  मिले  , किन्तु   वह  नहीं  माना  l  उसने  राजदरबार  जाकर  राजा  को  अपनी  विद्दा  से  परिचित  कराया  ,  उसके  हाथ  में  सारस   की  एक  मूर्ति  थी  l   राजा  ने  कहा --- ' सारस  इतना  छोटा  होता  है ?  तुम्हे  क्या  दंड  दूँ  ? '   मूर्तिकार  ने  कहा ---- ' ऐसा  सारस  यहाँ  से  कुछ  हजार  मील   की   दूरी   पर  पाया  जाता  है ,   आप  आज्ञा  दें  तो  आपकी  नजरबंदी  में  जाकर  मैं  उसे  यहाँ  ला  सकता  हूँ   l   क्या  मजाल  जो  जरा  सा  भी  अंतर  पड़   जाये  l   मैं  सिर्फ  हाव - भाव  पर  ही  नहीं  वजन  पर  भी  ध्यान  देता  हूँ  l  '
  राजा  चिढ़   गया , बोला --- ' उसकी  जरुरत  नहीं ,  तुम  मेरी  मूर्ति  बनाओ  l जरा  सी  भी  कमी  निकलने  पर  तुम्हारा  सिर   कलम  कर  दिया  जायेगा   l  " 
चार  दिन  बाद  मूर्तिकार  दरबार  में  उपस्थित  हुआ  , मूर्ति  को  उसने  कपडे  से  ढँक  रखा  था  l  राजा  के  कहने  पर  उसने  मूर्ति  पर  से  कपड़ा   हटाया  , वह  सिर   से  कमर  तक  ही  थी  l  राजा  चीखा --- 'ये  पूरी  मूर्ति  है  ? '  कलाकार  ने  कहा --- '  महाराज , आपने  मूर्ति  बनाने  को  कहा  था , पूरी  या  आधी  का  आदेश  नहीं  दिया  था  l '  राजा  के  चेहरे  पर  क्रोध  तैर  रहा  था  l   मूर्तिकार  ने  आगे  कहा --- "  यह  हू - ब - हू  आपकी  मूर्ति  है  l   इसका  वजन  चालीस  सेर  है  l   पैरों  को  छोड़कर  आपका  वजन  भी  इतना  ही  है  l  आपका  वजन  भी  इतना  ही  है , यह  मैं  दावे  के  साथ  कह  सकता  हूँ  l  '
 क्रोध  से  बुद्धि  का  नाश  हो  जाता  है  l   राजा  ने   कहा --- ' यदि  तुम्हारा  दावा   गलत  निकला  तो  तुम्हारा  सिर   कलम  कर  दिया  जायेगा  l  ' राजा  ने  इसी  आवेग  से  मंत्री  को  आदेश  दिया --- ' परीक्षण   किया   जाये  ---- l  '  थोड़ा  विलम्ब  होते  देख  वह  और  क्रोधित  हुआ ,  तब  मंत्री  ने  समझाया  कि  परीक्षण   के  लिए  आपका  शरीर  काटना  पड़ेगा  सिर   से  कमर  तक  l  '  अब  राजा  कुछ  बोल  न  सका ,  उसकी  आँखें  झुक  गईं   l   उसने  मूर्तिकार  से  क्षमा  मांगी  और  कहा  ---तुम  जो  चाहो  पुरस्कार  मांग  लो  ll 
मूर्तिकार  ने  कहा --- '  देना  ही  है  तो  आप   अहंकार  की  वृत्ति  का  त्याग  कर  दें  ,  अहं   त्यागने  से  देवी  सरस्वती  सम्मानित  होंगी   l   भगवती  सरस्वती  के  सम्मान  से   उनके  वरद  पुत्रों  की  ख्याति  बढ़ती  रहेगी   l  '  राजा  ने  भी  अपने  अहं   के  त्याग  का  संकल्प  लिया  l