स्वामी विवेकानन्द ने यौवन में प्रवेश करते ही अपनी समस्त शक्ति , विद्दा , प्रतिभा देशवासियों ने कल्याणार्थ और मातृभूमि के उद्धार के लिए समर्पित कर दी थी । विवेकानंद के आदर्श को सुभाषचंद्र बोस ने कार्य रूप में चरितार्थ कर दिखाया ।
उनको उच्च विद्दा , बुद्धि , पदवी , पारिवारिक सुख , सार्वजनिक सम्मान सब कुछ प्राप्त था । आई. सी.एस. की परीक्षा उनने उत्तीर्ण की थी और राजा - महाराजाओं जैसा जीवन व्यतीत करना उनके लिए संभव था , पर इन सबका त्याग कर उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा जीवन मार्ग ग्रहण किया जिसमे पग - पग पर कांटे थे ।
उनका त्याग और साहस इतना उच्च कोटि का था कि इसे देखकर हजारों व्यक्ति उनके सामने ही अपने देशवासियों को मनुष्योचित अधिकार दिलाने के लिए तन - मन - धन सर्वस्व अर्पण करने को तैयार हो गए ।
किसी ने सच कहा है ----- " वास्तविक प्रचार भाषणों , लेखों , वक्तव्यों से नहीं होता , वरन जो कुछ कहा जाये उसे स्वयं कार्यरूप में कर दिखाने का ही लोगों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है और साधारण व्यक्ति भी असाधारण कार्य करने को तैयार हो जाते हैं । "
गीता का अध्ययन उनका नित्य का कार्य था । उनका जीवन और पूरी दिनचर्या ईश्वर के प्रति अडिग निष्ठा तथा कर्मयोग के अनुसार संचालित हुआ करती थी ।
उनको उच्च विद्दा , बुद्धि , पदवी , पारिवारिक सुख , सार्वजनिक सम्मान सब कुछ प्राप्त था । आई. सी.एस. की परीक्षा उनने उत्तीर्ण की थी और राजा - महाराजाओं जैसा जीवन व्यतीत करना उनके लिए संभव था , पर इन सबका त्याग कर उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा जीवन मार्ग ग्रहण किया जिसमे पग - पग पर कांटे थे ।
उनका त्याग और साहस इतना उच्च कोटि का था कि इसे देखकर हजारों व्यक्ति उनके सामने ही अपने देशवासियों को मनुष्योचित अधिकार दिलाने के लिए तन - मन - धन सर्वस्व अर्पण करने को तैयार हो गए ।
किसी ने सच कहा है ----- " वास्तविक प्रचार भाषणों , लेखों , वक्तव्यों से नहीं होता , वरन जो कुछ कहा जाये उसे स्वयं कार्यरूप में कर दिखाने का ही लोगों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है और साधारण व्यक्ति भी असाधारण कार्य करने को तैयार हो जाते हैं । "
गीता का अध्ययन उनका नित्य का कार्य था । उनका जीवन और पूरी दिनचर्या ईश्वर के प्रति अडिग निष्ठा तथा कर्मयोग के अनुसार संचालित हुआ करती थी ।