एक विद्वान् अपने कुत्ते के साथ भ्रमण कर रहे थे l सामने से एक व्यक्ति आ रहा था , उसने उन विद्वान् से प्रश्न किया --- ' कृपया बताएं , कुत्ते और मनुष्य में श्रेष्ठ कौन है l ' विद्वान् ने गंभीरता से कहा ---- " जब कोई मनुष्य इस सुर दुर्लभ मानवीय काया का सदुपयोग करते हुए श्रेष्ठ कर्म करता है तो वह मनुष्य श्रेष्ठ हुआ l मनुष्य ईश्वर की संतान है , जब वह अपने सच्चे स्वरुप का ध्यान न रखते हुए जानवरों जैसे कर्म करता है , दूसरों को सताता है तो ऐसे नर पशुओं से कुत्ता श्रेष्ठ है l " आध्यात्मिक मनोविज्ञानी कार्ल जुंग की यह दृढ मान्यता थी कि मनुष्य की धर्म , न्याय और नीति में अभिरुचि होनी चाहिए l उसके लिए वह सहज वृत्ति है l यदि इस दिशा में प्रगति न हो तो अंतत: मनुष्य टूट जाता है और उसका जीवन निस्सार हो जाता है l
11 March 2022
WISDOM -----
इस संसार में देवता और असुर दोनों हैं l हम मनुष्यों में ही कौन देवता है , कौन असुर है यह उसके आचरण से पता चलता है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' आसुरी वृति वाले मनुष्य की जो चेतना है , वो विध्वंसक है l वो ईश्वर को नहीं मानता , प्रकृति के कर्म विधान को भी नहीं मानता l स्वयं को सर्वसमर्थ , सिद्ध , बलवान तथा सुखी मानता है l उन्हें अपने धनबल , जनबल का अहंकार होता है l उनकी चेतना मात्र कपट करना , आडम्बर करना जानती है इसलिए वे सुखी नहीं होते हैं , परन्तु सुखी होने का आडम्बर करते हैं l अपनी दीनता , अपनी हीनता को छिपाकर स्वयं को ऐश्वर्यवान , शक्तिशाली समझते हैं l ' आसुरी प्रवृति के लोगों की एक बड़ी विशेषता यह है कि ये बड़ी मजबूती से संगठित होते हैं l ये एक दूसरे की कमियों को अच्छी तरह जानते हैं , इसलिए एक ही नाव में सवार होते हैं l गीता में कहा गया है --- आसुरी प्रवृति के व्यक्तियों की कामनाएं अपरिमित होती हैं और जो भी उनकी कामना के पथ में बाधक बन कर खड़ा होता है , वह उन्हें अपना विरोधी नजर आता है l ऐसे लोगों को नष्ट करने की उनमे बड़ी तीव्र लालसा होती है l ' असुरों की इसी प्रवृति के कारण संसार में अशांति होती है l चाहे छोटी सी संस्था हो या बड़े स्तर की बात हो अपने अहंकार के कारण ही वे दूसरे को अपना गुलाम बनाना चाहते हैं , उनकी हुकूमत मानों , अन्यथा वे मिटाने में कोई कोर - कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे l और फिर एक समय ऐसा भी आता है कि उनकी यह प्रवृति ही उनके अंत का कारण बनती है क्योंकि उनके क्षेत्र में भी हर छोटा असुर अपने से बड़े की हुकूमत स्वीकार करता है ---- फिर वो अपने से बड़े की ----- फिर ---- फिर ----- उनमे आत्मिक बल नहीं होता l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' जिस प्रकार सूखे बाँस आपस की रगड़ से ही जलकर भस्म हो जाते हैं , उसी प्रकार अहंकारी व्यक्ति आपस में टकराते हैं और कलह की अग्नि में जल कर मरते हैं l "