पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " असुरों का मायावी होना प्रसिद्ध है l माया , छल , प्रपंच , चालाकी , कूटनीति , षड्यंत्र रचना की उनकी नीति प्रमुख है l उसी के आधार पर वे अपने से असंख्य गुने बलवान देवताओं को परास्त कर देते हैं l " युग चाहे कोई भी हो , असुर अपने इन्ही दुष्प्रवृतियों से समाज में अशांति , तनाव उत्पन्न करते हैं , ऐसे कार्यों को करते हैं जिससे लोग अस्वस्थ हों , शारीरिक और मानसिक दृष्टि से कमजोर होकर उनसे पराजित हो जाएँ l भ्रष्टाचार , मिलावट , कृषि में रासायनिक तत्वों को मिलाकर प्रदूषित करना , लोगों का माइंड वाश कर देना , दंगे - फसाद कराना , परिवार में फूट डलवाना , झगड़े कराना यह सब असुरता के ही लक्षण है l यह सब आदिकाल से हो रहा है l ताण्डव ब्राह्मण की कथा है --- एक बार असुर अन्न में घुस गए ताकि उन्हें देवता खा लें और वे उनके शरीर व मन में प्रवेश कर अपना आधिपत्य जमा लें l देवराज इंद्र ने उनकी इस चाल को पकड़ा और असुरों को मार भगाया l राजा परीक्षित के मुकुट में चढ़कर ( माइंड वाश ) उनसे लोमश ऋषि के गले में सांप डलवाना , केकयी और मंथरा की बुद्धि भ्रष्ट करना l जागरूक होकर , संगठित होकर , विवेक बुद्धि से ही असुरता को पराजित किया जा सकता है l