23 October 2021

WISDOM -----

    सत्संग  से  कैसे  रूपांतरण  होता  है  ,  इस  सन्दर्भ  में  कथा  है  ----  जब   महर्षि  वाल्मीकि  दस्यु  रत्नाकर   हुआ  करते  थे   l  इस  अपकर्म  को  करते   हुए  जीवन  के  कितने  ही  वर्ष  बीत  गए  थे   l   ईश्वर  की    कृपा  से   एक  दिन  उन्हें  देवर्षि  नारद  मिले   l   नारद जी  ने  उनसे  पूछा  -- ' तुम  यह  सब   क्यों  करते  हो  ,  क्या  तुम्हारे  परिवार  के  स्वजन   तुम्हारे   इस  कर्मफल   के  भी  भागीदार  होंगे   ? "  उन्होंने  कहा  --- ' अवश्य  '  l  तब  देवर्षि  ने  कहा  --- " ऐसे  नहीं ,  तुम  उन  लोगों  से  पूछकर   मुझे  अपना  उत्तर  दो   l "   तब  वे    देवर्षि  को  एक  पेड़  से  बांधकर    उत्तर  पूछने  अपने  परिवार  के  पास  गए   l    सभी  लोगों  ने  एक  स्वर   से  मना  करते  हुए  कहा  --- " अपने  कर्मफल  का  भोग  तुम्हे  स्वयं   भोगना  पड़ेगा   l  तुम्हारे  कर्म  को  हम  क्यों  भोगेंगे   l  "  यह  सुनकर  उन्हें  बहुत  निराशा  हुई  और  वे   भागकर  देवर्षि  की  शरण  में  आये  l  तब  देवर्षि  ने  उन्हें  ' राम  नाम  जपने  को  कहा   l दस्यु  कर्म  के  कारण  ' राम '   जपना  बहुत  कठिन लगा  ,  तब  देवर्षि  ने  कहा --- ' कोई  बात  नहीं  तुम ' मरा - मरा  '  जपो   l   भगवान  का  यह  उल्टा  नाम  उनका  अमोघ  मन्त्र  बन  गया  ,  साधना  शुरू  हुई   l  ' मरा - मरा  '  कब  ' राम - राम '  में  बदल  गया    पता  ही  नहीं  चला   l    अनेकों  बाधाएं   आईं  ,  देवर्षि  धीरज  बंधाते   रहे    कि   तुम  प्रभु  को  पुकारते  रहो  सब  बाधाएं  दूर  होंगी   l   समय  बीतता  गया    , अंधकार  दूर  हुआ  ,  रूपांतरण  हुआ  और  संसार  को  महर्षि  वाल्मीकि   मिले   l    उनके  जीवन  ने  सिखाया  कि   महापुरुषों  का  पल  भर  का  सत्संग  भी   दुर्लभ  और  अमोघ  होता  है   l