मनुष्य के जीवन के विभिन्न पक्ष हैं ,इनमें सबसे महत्वपूर्ण है आर्थिक पक्ष l आर्थिक क्षेत्र में विकार आ जाने से ही जीवन का प्रत्येक पक्ष गड़बड़ा जाता है l संसार में जो बड़ी -बड़ी क्रांतियाँ हुई हैं उनके मूल में जो कारण था वह --आर्थिक था l एक समय था जब केवल व्यापार -व्यवसाय में हानि -लाभ देखा जाता था l आज संसार में इतनी अधिक समस्याएं इसलिए हैं कि जीवन का प्रत्येक क्षेत्र व्यवसाय बन गया है , इस कारण उस क्षेत्र की पवित्रता समाप्त हो गई है l ईमानदारी ,सच्चाई से काम करने वाले बहुत हैं लेकिन उनकी तुलना में दीमक की प्रकृति की संख्या बहुत अधिक है l अमीर और गरीब को देखने का नजरिया भी भिन्न है l एक वृद्ध व्यक्ति मजदूरी करे , ठेला चलाए , बहुत मेहनत कर के परिवार का पालन पोषण करे तो वह दया का पात्र है लेकिन वह व्यक्ति जिसने जीवन में नौकरी कर के पर्याप्त धन कमा लिया , उसके पास जमा -पूंजी आदि सब कुछ है लेकिन फिर भी वह और धन कमाने के लिए , समाज में अपनी पहचान बनाये रखने के लिए या समय व्यतीत करने के लिए कहीं न कहीं जुड़ा है , अब क्योंकि वह समर्थ है इसलिए उसके प्रति कोई भाव नहीं है जबकि सत्य ये है कि ऐसे व्यक्ति कहीं काम कर के युवा पीढ़ी का हक छीन रहे हैं l धन को ही स्टेटस सिम्बल माना जाने के कारण अब ऐसे व्यक्ति समाज को अपने ज्ञान का लाभ नहीं देते बल्कि सारे गुर , सभी बारीकियां समझ आ जाने के कारण भ्रष्टाचार में बड़ा योगदान देते हैं l इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारण है ---दुर्बुद्धि l दुर्बुद्धि के कारण ही संसार में सारी समस्याएं हैं l
18 September 2022
WISDOM ----
तुलसीदास जी ने कहा है ---- 'कर्मप्रधान विश्व करि राखा l जो जस करहि सो तस फल चाखा l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---' यह कर्मफल कभी -कभी तुरंत ही इसी जन्म में मिल जाता है , परन्तु कभी -कभी ऐसा भी होता है कि दुष्ट कर्म करने वाले तो सुखी और संपन्न दिखाई देते हैं तथा त्यागी , तपस्वी दुखी होते हैं तो विश्वास डगमगा जाता है l मनुष्य सोचता है कि जब दुष्ट व्यक्ति आराम का जीवन जीते हैं और सज्जन कष्ट पा रहे हैं तो फिर त्याग -तपस्या का जीवन क्यों जिएं ? यह भावना मनुष्य को उद्दंड और नास्तिक बना देती है l विधाता ने मनुष्य को कर्म करने की छुट दी है , परन्तु फल को अपने हाथ में रखा है l यदि झूठ बोलते ही मनुष्य की जीभ काटकर गिर जाती , चोरी करते ही हाथ कट जाते तो व्यक्ति दुष्कर्म करने से डरता , किन्तु कर्म का फल विधि के विधान के अनुसार मिलता है तो पापी व्यक्ति को फलता -फूलता देखकर मनुष्य आस्थाहीन हो जाता है l आचार्य श्री लिखते हैं --यह बात निश्चित है कि ईश्वर के यहाँ देर है , अंधेर नहीं l '' कर्म का फल कब और कैसे मिलेगा , यह काल निश्चित करता है l एक कथा है ------ एक स्त्री नि:संतान थी l किसी तांत्रिक ने उसे बताया कि किसी बच्चे को मरवाकर गड़वा दे तो उसके संतान होगी l उसने दूर गाँव के किसी गरीब बच्चे के साथं ऐसी ही निर्दयता की l ईश्वर की लीला देखिए उसके दो पुत्र हुए l दोनों ही बहुत सुन्दर और होनहार l उस स्त्री के कर्म का जिन्हें पता था , वे सब यहो कहते थे कि देखो इस औरत ने कितना नीच कर्म किया और भगवान ने इसको सजा देने के बदले दो -दो बेटे दे दिए l ईश्वर के यहाँ कितना अंधेर है ? बच्चे बड़े हुए , पढ़ने -लिखने में बहुत होशियार , देखने में सुंदर लेकिन एक दिन दोनों नदी में नहा रहे थे , अचानक एक का पैर फिसला l दूसरा उसे बचाने के लिए आगे बढ़ा तो वह भी संभल नहीं सका और दोनों नदी में डूब गए l तब वह रो -रोकर सब से यही कह रही थी थी कि भगवान में मेरे पाप की सजा मुझे दे दी l ईश्वर के घर देर है , अंधेर नहीं l ' कर्मफल का नियम स्वयं ईश्वर पर भी लागू होता है l भगवान राम ने बालि को छिपकर बाण मारा था , अगले जन्म में वे कृष्ण बने और बालि बहेलिया और उसने उसी प्रकार उसी बाण को उन्हें मारा और उनकी जीवन लीला समाप्त हुई l राजा दशरथ ने श्रवण कुमार को तीर मारा था , उसके माता -पिता की मृत्यु पुत्र -शोक में हो गई l उनके शाप के कारण राजा दशरथ की मृत्यु भी पुत्र -शोक में हुई l गीता में भगवान ने कहा है --- 'गहना कर्मणोगति l '