मनुष्य धन-संपत्ति से नहीं , विभूतियों से ही सुखी और समुन्नत हो सकता है | गुण , कर्म और स्वभाव को उच्चस्तरीय बनाये बिना आत्मिक उत्कर्ष को प्राप्त कर सकना तो दूर रहा , प्रचुर संपत्ति प्राप्त कर लेने पर भी चैन से नहीं रहा जा सकता | व्यक्ति की अंत: चेतना यदि निकृष्ट स्तर की बनी रहे तो कुबेर जैसा धनी और इंद्र जैसा समर्थ होते हुए भी उसे निरंतर असंतोष की आग में जलते रहना होगा |
एक व्यक्ति की कामनाएँ समस्त देवता मिलकर भी पूरी नहीं कर सकते | संसार में जितनी सामग्री है वह एक व्यक्ति की इच्छाएँ पूरी कर सकने में भी स्वल्प हैं | उचित यही है कि अपने स्वार्थ पर अंकुश लगाया जाये , अपने गुण , कर्म और स्वभाव का परिष्कार कर , अपने आप को सुधारकर पुरुषार्थ के सहारे श्रेष्ठता पूर्वक जीवन व्यतीत किया जाये |
एक व्यक्ति की कामनाएँ समस्त देवता मिलकर भी पूरी नहीं कर सकते | संसार में जितनी सामग्री है वह एक व्यक्ति की इच्छाएँ पूरी कर सकने में भी स्वल्प हैं | उचित यही है कि अपने स्वार्थ पर अंकुश लगाया जाये , अपने गुण , कर्म और स्वभाव का परिष्कार कर , अपने आप को सुधारकर पुरुषार्थ के सहारे श्रेष्ठता पूर्वक जीवन व्यतीत किया जाये |