16 March 2024

WISDOM ---

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  यह  ज्ञान  ही  है   जो   सत्य  को  असत्य  में  गिरने  से ,  धर्म  को  अधर्म  में  परिणत  होने  से  ,  दान  को  कृपणता  में   बदलने  से ,   तप  को  भोगवादी  होने  से   और  तीर्थों  को   अपवित्रता  में  परिवर्तित  होने  से    बचाता  है   l  लेकिन  यदि  ज्ञान  ही   अपने  मार्ग  से  भ्रष्ट  हो  जाता  है   और  अविवेक  का  मार्ग  अपनाता  है   तो  - सत्य , धर्म , ज्ञान  आदि  विभूतियों  का  क्या  होगा  ?   "  आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- ' ज्ञानी  जब  अहंकारी  हो  जाता  है   तब  उसके  अंत: करण   से   करुणा   नष्ट  हो   जाती  है   l  उस  स्थिति  में   वह  औरों  का  मार्गदर्शन  नहीं  कर  सकता   l  ऐसी  सर्वज्ञता  का  क्या  लाभ  ?  " -------- दक्षिण  भारत  के  एक  बड़े  ही  ज्ञानी , तपस्वी  साधु  थे ---सदाशिव  ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  l  ये  अपने  गुरु  के  आश्रम  में  वेदांत  का  अध्ययन  कर  रहे  थे  l  एक  दिन  उस आश्रम  में  एक  विद्वान्  पंडित जी  पधारे  l  आश्रम  में  प्रवेश  करते  ही  किसी  बात  पर  उनका  सदाशिव  स्वामी  से  विवाद  हो  गया  l  सदाशिव  स्वामी  ने  अपने  तर्कों  से  उन  पंडित जी  के  तर्कों  को  तहस -नहस  कर  दिया  l    वे  आगंतुक   पंडित ,     सदाशिव  स्वामी  की  विद्वता    के  सामने  पराजित  हो  गए   और  स्थिति  ऐसी  हो  गई  कि  उन  पंडित जी  को  ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  से  क्षमा -याचना  करनी  पड़ी  l   ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  बड़े  प्रसन्न  थे  कि  उनकी  इस  विजय  पर  गुरु  उनकी  पीठ  थपथपायेंगे  ,  लेकिन  ऐसा  हुआ  नहीं  ,  बल्कि  इसके  ठीक  विपरीत  हुआ  l   उनके  गुरु  ने  सदाशिव  ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  को  कड़ी  फटकार  लगाईं   और  बोले ----- " सदाशिव  !  श्रेष्ठ  चिंतन  की  सार्थकता  तभी  है  ,  जब  उससे  श्रेष्ठ  चरित्र  बने   और  श्रेष्ठ  चरित्र  तभी  सार्थक  है  ,  जब  वह  श्रेष्ठ   व्यवहार  बनकर  प्रकट  हो  l  तुमने  वेदांत  का  चिन्तन  तो  किया  ,  पर  ज्ञाननिष्ठ  साधक  का  चरित्र  नहीं  गढ़  सके   और  न  ही  तुम  ज्ञाननिष्ठ  साधक  का  व्यवहार  करने  में  समर्थ  हो  पाए  ,  इसलिए  तुम्हारे   अब  तक  के  सारे  अध्ययन -चिन्तन  को  बस  धिक्कार  योग्य  ही  माना  जा  सकता  है  l "  गुरु  के  इन  वचनों  को  सुनकर  सदाशिव  स्वामी  का  अहंकार  चूर -चूर  हो  गया  l  उन्होंने  बड़े  ही  विनम्र  भाव  से  पूछा  --- " हे  गुरुदेव  !  हम  अपना  व्यक्तित्व  किस  भांति  गढ़ें  ? "  उत्तर  में  गुरुदेव  ने  कहा ----  "  तर्क -कुतर्क  से   बचो  और  मौन  रहकर   सकारात्मक  चिन्तन  , मनन  , ध्यान  से  श्रेष्ठ  चरित्र  का  निर्माण   करो  l  "