21 April 2013

GOD HATES THOSE WHO PRAISE THEMSELVES

मान ,बड़ाई ,प्रतिष्ठा ,तथा कार्यों में अभिमान प्राप्त करने की इच्छा खाज की भांति बड़ा सुहावना रोग है | इसके वश में हो जाने पर मनुष्य सत्कर्मो तक को अभिमान की अग्नि से भस्म कर देता है ,प्रमादी बन जाता है और अपने भाग्य पर इतराता है तथा अपनी आत्मा का पतन करता है | अभिमान बड़ी संक्रामक बीमारी है ,जोमनुष्य को अधोगति में पहुँचा सकती है |
       जब मनुष्य अपनी ही महिमा का गुणगान अपने मुख से करने लगे ,तो समझना चाहिये कि वह उस महानता से दूर हटता जा रहा है ,जो उसे सहज में उपलब्ध हो सकती थी | क्षुद्र स्तर के लोग ऐसी ही चर्चा में संलग्न रहते हैं और अपना तथा दूसरों का समय बरबाद करते हैं | महानता यत्र -तत्र उल्लेख कर देने भर से व्यक्तित्व में नहीं आ जाती ,न ही यह विज्ञापन का विषय है | वस्तुत:यह एक ऐसी विभूति है ,जो बिना कहे हुए भी सामने वाले को बहुत कुछ कहती बताती रहती है | फूलों को अपनी सुगंध की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं होती ,यह काम तो उनकी अदभुत सुवास ही अनायास करती रहती है और अनेको भौरों को मदमस्त करती हुई खींच बुलाती है | महानता बताने की वस्तु नहीं ,वरन करने योग्य कार्य है | महानता बडप्पन प्रदर्शन में नहीं अपितु अनेको का हित साधन करने में है |
सिकन्दर जैसे सफलताओं के धनी भी मुट्ठी बांधे आये और हाथ पसारे चले गये | अहंकार प्रदर्शित करने के दर्प में ,संसार भर को चुनौती देने और ताल ठोकने वाले किसी समय के दुर्दान्त दैत्यों में से अब कोई कहीं दीख नहीं पड़ता !राजाओं के मणि -मुक्तकों से जड़े राजमुकुट और सिंहासन ,न जाने धराशायी होकर कहां धूल चाट रहे होंगे ?