12 September 2018

WISDOM ---- जो पूर्णतया निस्स्वार्थ है वही सच्चा प्रजापालक हो सकता है

   एक  प्रसंग  है ----  राजा  अश्विनी दत्त  को  अपने  महल ,  धन - सम्पति  व  रानी  से  अत्यंत  मोह  था  l  उसका  यह  मोह  शनै; - शनै:  बढ़ता  ही  जा  रहा  था   और  इस  कारण  उन्होंने  राज कार्य  पर  ध्यान  देना  बंद  कर  दिया  था  l  यह  देखकर  प्रधानमंत्री  बहुत  परेशान  हुए   और  वे  अपनी  चिंता  कुलगुरु  संत  नागानंद  के  समक्ष  रखने  पहुंचे   l  मंत्री  के  अनुरोध  पर   कुलगुरु  राजा  से  मिलने  राजमहल  आये   l    राजा  ने  उनका  भव्य  स्वागत   किया  l  उन्हें  अनेक  उपहार  भी  भेंट  किये  l 
             प्रत्युतर  में   कुलगुरु  ने   राजा  को  एक  कमल  का पुष्प  भेंट  किया   और  कहा  ---- "  राजन  !  तुम्हारा  उपहार  कमल  की  पंखुड़ियों  के  भीतर  है  l  "  राजा  ने  कमल  कि  पंखुड़ियाँ   हटाईं  तो  उन्हें  वहां  एक  भौंरा   मरा   दिखाई  पड़ा  l  राजा  कुलगुरु  के   इस  उपहार  का   अर्थ  समझ  नहीं  पाए  l  उनकी  उत्सुकता  को  भांपकर   कुलगुरु  बोले ---- "  राजन  !  यह  साधारण  भौंरा  नहीं  है  ,  यह  राजभौंरा   है   l   राजभौंरे  में  इतना  सामर्थ्य  होता  है   कि  वह  चाहे  तो  कठोर  लकड़ी  को  छेदकर   निकल  जाये  ,  परन्तु  वही  भौंरा   कमल   पर  आसक्त  हो  जाता  है   तो  उसकी  पंखड़ियों   के  मध्य  फंसकर   अपनी  जान  गँवा  बैठता  है   l  "    राजा  को  कुलगुरु  का  कथन  समझ  में  आ  गया   और  वह  मोह  छोड़कर  प्रजापालन - कर्तव्य   में  जुट  गए  l