22 January 2020

WISDOM --- महानता बड़प्पन प्रदर्शन में नहीं , अपितु अपनी तुलना में अनेकों का अनेक गुना हित - साधन में है --- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

    कीट्स   ने  अपनी  कविता  ' महिमा  से  महानता  की  ओर  '  में  ठीक  ही  कहा  है ---- ' जब  मनुष्य  अपनी  ही  महिमा  का  गुणानुवाद  अपने  मुख  से  करने  लगे ,  तो  समझना  चाहिए  कि   वह    उस  महानता  से  दूर  हटता   जा  रहा  है ,    जो  उसे  सहज  में  उपलब्ध  हो  सकती  थी  l   क्षुद्र  स्तर  के  लोग  ऐसी  ही  चर्चा  में  संलग्न  रहते  हैं  और  अपना  एवं   दूसरों  का  समय  बरबाद   करते  हैं  l   महानता  यत्र - तत्र  उल्लेख  कर  लेने  भर  से  व्यक्तित्व  में  नहीं  आ  जाती  ,  न  ही  यह  विज्ञापन  का  विषय  है  l  यह  एक  ऐसी  विभूति  है  ,  जो  बिना  कहे  हुए  भी  सामने  वाले  को  बहुत  कुछ  कहती  बताती  रहती  है  l   फूलों  को   अपनी   सुगंध  की  चर्चा  करने  की  कहाँ  आवश्यकता  पड़ती  है  l   वह  काम  तो  उनकी  अद्भुत  सुवास  ही  अनायास  करती  रहती  है   और  अनेकानेक  भौरों  को  मदमस्त  करती  हुई  खींच   बुलाती  है  l   जिस  दिन  हिमालय  अपने  गुणों  का  बखान  करने  लगे  ,  उसी  दिन  उसकी  आध्यात्मिकता  की  दिव्यता  समाप्त  हो  जाएगी   और  लोग  उसका   सान्निध्य  लाभ  लेने  से  कतराएंगे  l
  एक  अन्य  विद्वान्  ने  लिखा  है  --- महानता  बताने  की  वस्तु  नहीं  है  , वरन  करने  योग्य  कार्य  है  l   वे  कहते  हैं  कि   यदि  कोई  व्यक्ति    दिन - रात  चीखता  रहे  कि   वह  महान  है  ,  लोगों  को  उसका  सम्मान  करना  चाहिए  ,  तो  उलटे  वह  अपमान  और  उपहास  का  पात्र  साबित  होगा  l   इसके  विपरीत  यदि  लोगों  की    भलाई  के  लिए   छोटा  सा  भी  कार्य  कर  दे   तो  जान - श्रद्धा  उसके  प्रति  सहज  ही  उमड़  पड़ेगी  l
श्रद्धा   से    सम्मान   और  सम्मान  से  महान  बनने  की   ओर   उसका  मार्ग  प्रशस्त  हो  जायेगा   l 

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