' हर उस तरह का व्यवहार ' संवेदना ' है , जिसमें सबके प्रति सम्मान और सदाशयता का भाव व्यक्त होता है l ' संवेदनशील व्यक्ति जड़ वस्तुओं के प्रति भी इस तरह का व्यवहार करता है जैसे वे उसके अति आत्मीय स्वजन हों l
स्वामी विवेकानन्द से योग सीखने आई एक युवती ने पूछा ---- " मुझे सिद्धि प्राप्त करने में कितना समय लगेगा ? कितने महीनों में मैं साधना पूरी कर सकुंगी ? "
तब स्वामीजी ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था ----- " तुम्हे इस मार्ग पर गतिशील होने में कई जन्म लगेंगे l " इसका कारण भी उन्होंने तुरंत बताया कि , ' कक्ष में प्रवेश करने से पहले तुमने अपने जूते ऐसे उतारे जैसे उन्हें फेंक रही हो , कुर्सी की बांह लगभग मरोड़ते हुए अंदाज में खींची और उस पर धमक कर बैठ गईं l फिर बैठे - बैठे ही इसे मेज के पास घसीटते हुए से खींचा और व्यवस्थित किया l '
स्वामीजी ने कहा कि ,--- हम जिन वस्तुओं को काम में लाते हैं , जो हमारी जीवन - यात्रा और स्थिति में सहायक हैं और जो हमारे व्यक्तित्व का ही एक अंग हैं , उनके प्रति क्रूरता हमारी चेतना का स्तर दर्शाती है l दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं , व्यक्तियों और प्राणियों के प्रति भी मन में संवेदना नहीं है , तो विराट अस्तित्व से किसी व्यक्ति का तादात्म्य कैसे जुड़ सकता है ? अपने आसपास के जगत के प्रति जो संवेदनशील नहीं है , वह परमात्मा के प्रति कैसे खुल सकता है l '
संवेदना भाव ह्रदय का विषय है l यह संवेदना ही है जिसे हमारा ह्रदय दूसरों के दुःख - दर्द से विचलित होता है और उसके निवारण में तत्पर l
संवेदना के जाप से यह उत्पन्न नहीं होती l स्वामी विवेकानन्द की परम्परा में आचार्यों ने संवेदना जगाने के व्यवहारिक उपाय सुझाये --- जब क्रोध आये , किसी को कोसने का मन करे तो कम से कम इतना नियंत्रण कर लिया जाये कि सम्बंधित व्यक्ति के सामने कुछ न कहकर मन ही मन आकाश की और देखते हुए जो कहना हो कह दें l ऐसे अभ्यास से धीरे - धीरे कठोरता समाप्त होती है और संवेदना जगती है l
स्वामी विवेकानन्द से योग सीखने आई एक युवती ने पूछा ---- " मुझे सिद्धि प्राप्त करने में कितना समय लगेगा ? कितने महीनों में मैं साधना पूरी कर सकुंगी ? "
तब स्वामीजी ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था ----- " तुम्हे इस मार्ग पर गतिशील होने में कई जन्म लगेंगे l " इसका कारण भी उन्होंने तुरंत बताया कि , ' कक्ष में प्रवेश करने से पहले तुमने अपने जूते ऐसे उतारे जैसे उन्हें फेंक रही हो , कुर्सी की बांह लगभग मरोड़ते हुए अंदाज में खींची और उस पर धमक कर बैठ गईं l फिर बैठे - बैठे ही इसे मेज के पास घसीटते हुए से खींचा और व्यवस्थित किया l '
स्वामीजी ने कहा कि ,--- हम जिन वस्तुओं को काम में लाते हैं , जो हमारी जीवन - यात्रा और स्थिति में सहायक हैं और जो हमारे व्यक्तित्व का ही एक अंग हैं , उनके प्रति क्रूरता हमारी चेतना का स्तर दर्शाती है l दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं , व्यक्तियों और प्राणियों के प्रति भी मन में संवेदना नहीं है , तो विराट अस्तित्व से किसी व्यक्ति का तादात्म्य कैसे जुड़ सकता है ? अपने आसपास के जगत के प्रति जो संवेदनशील नहीं है , वह परमात्मा के प्रति कैसे खुल सकता है l '
संवेदना भाव ह्रदय का विषय है l यह संवेदना ही है जिसे हमारा ह्रदय दूसरों के दुःख - दर्द से विचलित होता है और उसके निवारण में तत्पर l
संवेदना के जाप से यह उत्पन्न नहीं होती l स्वामी विवेकानन्द की परम्परा में आचार्यों ने संवेदना जगाने के व्यवहारिक उपाय सुझाये --- जब क्रोध आये , किसी को कोसने का मन करे तो कम से कम इतना नियंत्रण कर लिया जाये कि सम्बंधित व्यक्ति के सामने कुछ न कहकर मन ही मन आकाश की और देखते हुए जो कहना हो कह दें l ऐसे अभ्यास से धीरे - धीरे कठोरता समाप्त होती है और संवेदना जगती है l
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