30 May 2018

WISDOM ---- व्यक्ति के लिए अपनी प्रशंसा से बच पाना मुश्किल है

     प्रशंसा  झूठी  हो  तब  भी  अच्छी  लगती  है   क्योंकि  प्रशंसा  अहंकार  को  फुसलाती  है , प्रसन्न  करती  है  l  मूढ़ - से - मूढ़  आदमी  को  बुद्धिमान  कहो  तो  उसकी  प्रसन्नता  का  ठिकाना  नहीं  रहता  l   प्रशंसा  जितनी  झूठ  के  करीब  होती  है  उतना  ही  सुख  देती  है , इसलिए  जो  व्यक्ति  अहंकारी  होते  हैं  वे  हमेशा  चिंतित  रहते  हैं  ,  उन्हें  हमेशा  यही  परेशानी  बनी  रहती  है  कि  कौन  क्या  कह  रहा  है  ?  कौन  सम्मान  कर  रहा  है  ?  कौन  अपमान  कर  रहा  है  ?  कौन  उनकी  बात  को  आँखें  मूँद  कर  मान  रहा  है  ?  कौन  सही - गलत  के  आधार  पर  तर्क  प्रस्तुत  कर  रहा  है  ?   अहंकारी  का  व्यक्तित्व  हमेशा  दूसरों  पर  निर्भर  रहता  है   l   अहंकार  औरों  पर  निर्भर  होता  है  l
  लेकिन  जो  ईश्वर  का  भक्त  है  , भगवान  की  शरण  में  श्रद्धा भाव  से  रहता  है   उसे  इस  बात  की  चिंता  या  परवाह  नहीं  होती  कि  लोग  क्या  कहते  है   l 
 लोग  कुछ  भी  कहें , कहते  रहें   वह  निंदा  और  प्रशंसा  के  प्रति  तटस्थ  रहता  है  l  ईश्वर   के   विश्वास  और  उनकी  शरण  में  रहता  है  l
 अहंकारी  के  लिए  भी  यही  उचित  है  कि  वह  अपना  अहंकार  छोड़कर   वास्तविकता  के  धरातल  पर  रहे  l  यद्दपि  यह  कार्य  बहुत  कठिन  है  लेकिन  जरुरी  है  l   अहंकारी  व्यक्ति  समाज  के  लिए  तो  कष्टकारक  है  ही  ,   इसके  साथ  वह  स्वयं  अपने  लिए   भी  हानिकारक  है    क्योंकि    यह  संसार  बहुत  स्वार्थी  है  ,  लोग  अहंकारी  की  इस   कमजोरी  का  फायदा  उठाकर  ,  उसकी  झूठी  तारीफ  कर  के , चापलूसी  कर  के  अपना  मतलब  सिद्ध  करते  हैं  l  समाज  में  ऐसे  अनेकों  महामानव  हैं  , जिन्हें  कल  पूजा  जा  रहा  था ,  आज  वे  जेल  में  बंद  हैं  ,  लोग  उन्हें  गाली  देते  हैं  ,  उनके  ऊपर  जूते  फेंकते  हैं   l
  मनुष्य  का  सच्चा  हित  निष्काम  कर्म  में  है ,  अहंकार    में    नहीं   l 

No comments:

Post a Comment