9 October 2023

WISDOM ----

   महाभारत  के  लिए  कहा  जाता  है  -- न  भूतो  न  भविष्यति '   ऐसा  युद्ध  न  कभी  हुआ   न  होगा  l  वह  युद्ध  था  अधर्म , अनीति  और  अत्याचार    का  अंत  कर   धर्म  और  शांति  की  स्थापना  के  लिए  l  युद्ध  में  दोनों  ही  पक्ष  के  योद्धा  ने    वीरता  से   युद्ध  किया  ,  युद्ध  के  नाम  पर  महिलाओं  और  बच्चों  पर  कोई  अत्याचार  नहीं  हुआ  l  युद्ध  में  जो  वीरगति  प्राप्त  हुए  उन्हें  स्वर्ग  मिला  l  लेकिन  इस  कलियुगी  दिमाग  के  युद्ध  लोगों   की    पिशाचवृत्ति  को  जगा  देते  हैं  l  युद्ध  और  दंगों  के  नाम  पर   जो  कृत्य  करते  हैं  , ऐसे  नर पिशाचों  को  देखकर  तो  सही  का  पिशाच  भी    शरमा    जाए  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- क्रोध   से  मनुष्य  की  भावनाएं  विकृत  हो  जाती  हैं  l  वैर  से  वैर  कभी  शांत  नहीं  होता  l  अवैर  से  ही  वैर  शांत  होता  है  l  '   मैल  से  मैल  साफ़  नहीं  होता  उसके  लिए  स्वच्छ  जल  की  आवश्यकता  होती  है  l    एक  कथा  है   जो  इस  सत्य  को  स्पष्ट  करती  है   कि  यदि  विवेक  नहीं  जागता   तो  क्रोध  और   बदला  लेने   का  दुर्गुण  जन्म -जन्मान्तर  तक  चलता  रहता  है  ,  किसी  भी  योनि  में  जन्म  हो   बदला  शांत  नहीं  होता  ------कौशाम्बी  के  राजा  शूरसेन  वन विहार  को  निकले  l  वन  में  एक  पक्षी  वृक्ष  पर  अत्यंत  कर्कश  स्वर  में   बोलने  लगा  , राजा  ने  इसे  अपशकुन  माना   और  उसे  एक  बाण  मारा , पक्षी  नीचे  गिर  गया  l  घायल  पक्षी  को  तड़फता  देख राजा  का  ह्रदय  पश्चाताप  करने  लगा  , अहंकार  के  कारण  यह  गलती  हो  गई  l  कुछ  आगे  बड़े  तो  एक  मुनि   ध्यान  कर  रहे  थे  उन्होंने  राजा  को  दया -धर्म  का  उपदेश  दिया   l  पक्षी  को  मारने  का   पश्चाताप   और  इस  उपदेश   का     राजा  पर  इतना  असर  हुआ  कि  राज्य  का  परित्याग  कर   प्रव्रज्या  ग्रहण  कर  ली   l  कौशाम्बी  नरेश  शूरसेन  अब  महामुनि  कौशल्य  बन  गए  l  तीव्र  तपस्या  के  कारण  उन्हें  ' तेजोलेश्या ' ( क्रोध  से  जिसे  देखें  वह  जलकर राख  बन  जाये ) की  प्राप्ति  हो  गई   l  वह  पक्षी  मरकर  भील  बना  l  एक  बार  महामुनि  कौशल्य  किसी  वन  से  जा  रहे  थे  , मार्ग  में  वह  भील  मिला  l  मुनि  को  देखते  ही  उसे  पूर्व  जन्म  की  याद  आ  गई  और  वह  मुनि  को  लाठी  से  पीटने  लगा  l  मुनि  बहुत  देर  तक  तो  सहते  रहे  l वे  सोच  रहे  थे  कि  मैंने  तो  इसका  कोई  नुकसान  नहीं  किया  फिर  भी  यह  मार  रहा  है  , वे  मुनि  धर्म  भूल  गए  और  क्रोध  में  आकर  तेजोलेश्या  उस  पर  छोड़  दी  l  उसी  क्षण  वह  भील  जल  गया  और  फिर  उसी  वन  में  सिंह  के  रूप  में  पैदा  हुआ  l  महामुनि  कौशल्य  फिर  उस  वन  से  गुजरे  तो  उन्हें  देखते  ही  सिंह   उन  पर  टूट  पड़ा  l  अपने  बचाव  के  लिए  मुनि  ने  उस  पर  तेजोलेश्या  छोड़  दी  , वह  भी  झुलसकर  राख  हो  गया  l   उस  पक्षी  की  आत्मा  ने  क्रमशः   भील , सिंह ,  हाथी  , सांड  , और  सर्प  योनि  में  जन्म  लिया  और  हर  बार  उसने   पूर्व  जन्म   के  वैर  के  कारण  मुनि  पर  आक्रमण  किया  और  मुनि  ने  उसे  तेजोलेश्या  से  भस्म  कर  दिया  l  सर्प  के  बाद  वह  ब्राह्मण  के  घर  जन्मा  , पढ़ -लिख  कर  विद्वान्  बन  गया  l  मुनि  उस  गाँव  में  प्रवचन  देने  आए   तो  वह  उनसे  बहुत  चिढ़ता  था , उनको  अपमानित  करता  , भरी  सभा  में  निंदा  करता , कटु  वचन  कहता   l  मुनि  की  सहनशीलता  समाप्त  हो  गई  , उन्होंने  तेजोलेश्या  छोड़कर  उसे  भी  भरी  सभा  में  भस्म  कर  दिया  l  मरते  समय  उसने  ईश्वर  को  याद  किया   तो  अगले  जन्म  में  वह  वाराणसी  नगरी  में   '  महाबाहु  नामक  राजा  बना  l  एक  दिन  राजा  महाबाहु  झरोखे  से  नगर  का  निरीक्षण  कर  रहे  थे  कि  उन्होंने  राजपथ  से  मुनि  को  जाते  हुए  देखा  l  मुनि  को  देखते  ही  उन्हें  पूर्व  जन्म  की  याद  आ  गई  कि  कैसे  उसने  पिछले  छह  जन्मों  में   बदला  लेने  के  लिए   मुनि  पर  आक्रमण  किया   और  मुनि  ने  उसे  तेजोलेश्य  से  भस्म  कर  दिया  l  राजा  महाबाहु  का  विवेक  जाग्रत  हो  गया , वे  समझ  गए  कि  यह  सब  उसके  क्रोध  और  मुनि  के  ज्ञान  के  अहंकार  के  कारण  हुआ  l  राजा  ने  मुनि  को  बुलवाया   , उनकी  वंदना  की  और  सब  बताया  कि  उसे  इस  तरह  बदले  की  भावना  रखने  का  पश्चाताप  है  l  मुनि  को  भी  अपने   दुष्कृत्य   का  पश्चाताप  हो  रहा  था  l  दोनों  ने  मिलकर  संकल्प   लेकर  अपने  ह्रदय  को  निर्मल  बनाया  और  जन्म -जन्म  की  वैर  परंपरा  को  समाप्त  किया  l  

No comments:

Post a Comment