महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया था l दोनों पक्ष अपने - अपने सहायकों को एकत्र करने में लग गए थे l इसी क्रम में एक दिन दुर्योधन भगवान श्रीकृष्ण के पास युद्ध में सहायता मांगने हेतु पहुंचे l श्रीकृष्ण उस समय विश्राम कर रहे थे l दुर्योधन उनकी शैया के सिरहाने बैठ गए l तभी अर्जुन भी इसी उद्देश्य से श्रीकृष्ण के पास पहुंचे l और उन्हें सोया हुआ देखकर उनके चरणों के पास खड़े हो गए l जागने पर श्रीकृष्ण ने अपने सम्मुख अर्जुन को देखा और उनके आने का उद्देश्य पूछा l दुर्योधन तुरंत बोले ---- " वासुदेव ! पहले मैं आया हूँ l " तब भगवान ने पीछे देखकर दुर्योधन के आने का कारण पूछा l तब दुर्योधन और अर्जुन दोनों ने अपने आने का उद्देश्य बताया l
इस पर श्रीकृष्ण बोले ---- " मैं इस युद्ध में दीजिए शस्त्र नहीं उठाऊंगा l एक ओर मैं शस्त्रविहीन रहूँगा और दूसरी ओर मेरी सेना रहेगी l ' अर्जुन ने नि:शस्त्र श्रीकृष्ण को चुना और दुर्योधन ने सेना को चुना l दुर्योधन प्रसन्न होकर चले गए l तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पूछा --- " तुमने नि:शस्त्र मुझे क्यों चुना , सेना क्यों नहीं ली ? "
तब अर्जुन बोले --- " हमारी जय हो या न हो , हम आपको छोड़कर नहीं रह सकते l "
वासुदेव ने हँसकर पूछा ---- " मुझसे क्या कराओगे ? " अर्जुन हँसकर बोले ---- " आपको बनाऊंगा सारथी l मेरे रथ की डोर हाथ में लीजिए और मुझे निश्चिन्त कर दीजिए l "
जो अपने जीवन - रूपी रथ की डोर भगवान के हाथों में सौंप देते हैं , उन की लौकिक तथा पारमार्थिक विजय निश्चित है l
इस पर श्रीकृष्ण बोले ---- " मैं इस युद्ध में दीजिए शस्त्र नहीं उठाऊंगा l एक ओर मैं शस्त्रविहीन रहूँगा और दूसरी ओर मेरी सेना रहेगी l ' अर्जुन ने नि:शस्त्र श्रीकृष्ण को चुना और दुर्योधन ने सेना को चुना l दुर्योधन प्रसन्न होकर चले गए l तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पूछा --- " तुमने नि:शस्त्र मुझे क्यों चुना , सेना क्यों नहीं ली ? "
तब अर्जुन बोले --- " हमारी जय हो या न हो , हम आपको छोड़कर नहीं रह सकते l "
वासुदेव ने हँसकर पूछा ---- " मुझसे क्या कराओगे ? " अर्जुन हँसकर बोले ---- " आपको बनाऊंगा सारथी l मेरे रथ की डोर हाथ में लीजिए और मुझे निश्चिन्त कर दीजिए l "
जो अपने जीवन - रूपी रथ की डोर भगवान के हाथों में सौंप देते हैं , उन की लौकिक तथा पारमार्थिक विजय निश्चित है l
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