10 August 2022

WISDOM -----

    अनमोल  मोती  -----  रक्षाबंधन  का  पुनीत  पर्व  l  बीकानेर  नरेश  का  दरबार  लगा  हुआ  था  l  राजद्वार  पर  ब्राह्मणों  की  लम्बी  कतार  थी   l  उन्ही  ब्राह्मणों  के  मध्य  पं. मदनमोहन  मालवीय जी  भी  एक  नारियल  लिए  खड़े  थे   l  प्रत्येक  ब्राह्मण  नरेश  के  पास  जाकर  राखी  बाँधता   और  दक्षिणा    लेकर  ख़ुशी -ख़ुशी  घर  लौटता  जा  रहा  था   l  मालवीय  जी  का  नंबर  आया  तो   वे  नरेश  के  समक्ष  पहुंचे  ,  राखी  बाँधी  , नारियल  भेंट  किया   और  संस्कृत  में  स्वरचित  आशीर्वाद  दिया   l  नरेश  के  मन  में   इस  विद्वान्  ब्राह्मण  का  परिचय  जानने  की  जिज्ञासा  हुई   l  जब  उन्हें  मालूम  हुआ  कि   यह  तो  मालवीय जी  हैं   तो  वह  बहुत  प्रसन्न  हुए  और  मन  ही  मन   अपने  भाग्य  की  सराहना  करने  लगे   l   मालवीय  जी  ने  विश्वविद्यालय  की  रसीद  बही  उनके  सामने  रख दी  l  उन्होंने  भी  तत्काल  एक  सहस्त्र  मुद्रा  लिखकर  हस्ताक्षर  कर  दिए   l   नरेश  अच्छी  तरह  जानते  थे  कि  मालवीय  जी  द्वारा  संचित  किया  हुआ   सारा  द्रव्य   विश्वविद्यालय   के  निर्माण  में  ही  व्यय  होने  वाला  है   l  मालवीय जी  ने  विश्वविद्यालय  की  समूची  रुपरेखा  नरेश  के  सम्मुख  रखी   l  उस  पर  संभावित  व्यय   तथा  समाज  को  होने  वाला  लाभ  भी  बताया   तो  नरेश  मुग्ध  हो  गए   और  सोचने  लगे   इतने  बड़े  कार्य  में   एक  सहस्त्र  मुद्राओं   से  क्या   होने  वाला  है  ,  उन्होंने  पूर्व  लिखित  राशि  पर   दो  शून्य  और  बढ़ा  दिए  ,  साथ  ही  अपने  कोषाध्यक्ष  को   एक  लाख  मुद्राएँ  देने  का  आदेश  प्रदान  किया   l 

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