26 August 2022

WISDOM-------

  स्वामी  दयानंद  के  जीवन  का  प्रसंग  है  --- घटना  उन  दिनों  की  है  जब  स्वामीजी   उपस्थित  जन समुदाय  के  समक्ष   भक्तियोग  का  , भगवान  के  नाम स्मरण  की  महिमा  का  उपदेश  दे  रहे  थे   l  तभी  एक  शंकालु , तार्किक  और  अहंकारी  युवक   उनके  प्रवचन  के  बीच  में  ही  उनके  पास  पहुंचा  और  उनका  प्रतिवाद  करते  हुए  बोला --- " स्वामी जी  भक्ति  और  भगवान  क्या  होते  हैं  ?  नाम स्मरण  से  क्या  फायदा  है  ?  यह  तो  शब्दों  का  जाल -जंजाल  मात्र  है  l  इससे  किसी  को  कुछ  मिलने  वाला  नहीं  l  "  स्वामी जी  चाहते  तो  उस  युवक  की  बात  पर  ध्यान  न  देकर  अपना  प्रवचन  जारी  रख  सकते  थे  ,  लेकिन  उन्हें  उसकी  शंका  का  समाधान  करना  था  l  अत:  स्वामी जी  बड़े  जोश  के  साथ  बोले --- " पागल  कहीं  का ,  जाने  क्या  बक  रहा  है ? कुछ  जानता  भी  नहीं  और  मानता  भी  नहीं  l  अहंकार  इतना  बढ़ा  है  जैसे  कोई  प्रकांड  पंडित  हो  l "  स्वामी जी  के  इन  अपशब्दों  को  सुनकर   वह  युवक  तिलमिला  उठा  और  बोला  "  आप  एक  संन्यासी  हैं  , फिर  भी  आपको  बोलने -चालने  का  ढंग  नहीं  आया  है  l "  अब  स्वामी जी  सहज  स्वभाव  में  शांत  स्वर  में  बोले --- " अरे  भाई  ! आपको  क्या  हो  गया  ?  मैंने  दो -चार  शब्द  ही  तो  बोले  ---- यह  कोरे  शब्द  ही  तो  हैं  ,  पत्थर  तो  नहीं  ,  जिनसे  आपको  चोट  लगती , हड्डी  टूट  जाती  l  आप  स्वयं  भी  तो  कह  रहे  थे  कई  भक्ति  और  भगवान   शब्दों  का  जाल -जंजाल  मात्र  है  l  जब  शब्दों  से  कुछ  बनता  बिगड़ता  ही  नहीं  तो  फिर  आप  इतना  आगबबूला   क्यों  हो  रहे  हैं  ? स्वामी जी  ने  उसे  समझाया  कि  तनिक  गहराई  से  सोच -विचार  करो  तो  पता  चलेगा  कि  जिस  प्रकार  बुरे  शब्दों  की  चोट  ने  आपके  ह्रदय  को  घायल  कर  दिया  ,  यह  शब्द  की  शक्ति  है  l  यदि  भगवान  का  पवित्र  नाम   स्मरण  किया  जाये    तो  उससे  व्यक्ति  के  सद्गुण  विकसित  होते  हैं  ,  दुःख -दर्द  के  घाव  शीघ्र  भर  जाते  हैं   और  मन  शीतल  व  शांत  होता  है  l ----- परिशोधित  -परिष्कृत  होने  पर   शब्द  अमृत  बन  सकते  हैं   और  विकृत  होने  पर  विष  का  काम  कर  डालते  हैं  l  " स्वामी  दयानंद  के  उपदेश  का  उस  युवक  पर  इतना  प्रभाव  पड़ा  कि  वह  श्रद्धा  से  उनके  पैरों  में  गिर  पड़ा  और  बोला --- " गुरुदेव  !  आपके   कथन  से  मेरी  शंका  मिट  गई   और  मुझे  समझ  में  आ  गया  कि   मन्त्र जप , स्रोत पाठ,  नाम स्मरण  आदि   में  व्यक्ति  के  अन्तराल   की  भाव  संवेदनाओं  को  जगाने  की  अलौकिक  शक्ति  है   जिसके  फलस्वरूप  अहंकार  और  अन्य  विकारों  को  विसर्जित  होने  में  जरा  भी  देर  नहीं  लगती  l  "

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