20 August 2022

WISDOM ------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " चिन्तन  और  चरित्र  यदि  निम्न  स्तर  का  है   तो  उसका  प्रतिफल  भी  दुःखद .  संकट ग्रस्त  एवं  विनाशकारी  होगा   l  उन  दुष्परिणामों  को  कर्ता      स्वयं  तो  भोगता  ही  है  ,  साथ  ही  अपने  सम्बद्ध  परिकर   को  भी  दलदल   में  घसीट  ले  जाता  है   l  नाव  की  तली  में  छेद  हो  जाने  पर   उसमे  बैठे  सभी  यात्री   मँझदार  में  डूबते  हैं   l  स्वार्थी , विलासी  और  कुकर्मी   स्वयं  तो   आत्म -प्रताड़ना , लोक -निंदा   और  दैवी  दंड विधान  की   आग  में  जलता  ही  है  ,  साथ  ही  अपने  परिवार  , संबंधी , मित्रों , स्वजनों  को  भी  अपने  जाल - जंजाल  में  फंसाकर   अपनी  ही  तरह  दुर्गति   भुगतने  के  लिए  बाधित  करता  है   l  इससे  समूचा  वातावरण   विकृत ,  दुर्गंधित   होता  है   l  प्रत्येक  व्यक्ति  समाज  पर  अपना  भला -बुरा  प्रभाव  छोड़ता  है  , किन्तु  सुगंध   की  अपेक्षा   दुर्गन्ध  का   विस्तार  अधिक  होता  है   l   एक  नशेवाला , जुआरी , कुकर्मी , व्यभिचारी   अनेकों  संगी -साथी  बना  सकने  में   सहज  सफल  हो  जाता  है   लेकिन  आदर्शों  का , श्रेष्ठता  का   अनुकरण  करने  की  क्षमता  हल्की  होती  है   l  पानी  नीचे  की  ओर  तेजी  से  बहता  है   लेकिन  ऊपर  चढ़ाने  के  लिए  प्रयास  करना  पड़ता  है   l  गीता  पढ़कर  उतने  आत्मज्ञानी   नहीं  बने   जितने  कि   दूषित  साहित्य , अश्लील  द्रश्य  और  अभिनय   से  प्रभावित  होकर   कामुक  अनाचार  अपनाने  में  प्रवृत  हुए   l    कुकुरमुत्तों  की  फसल  और  मक्खी -मच्छरों   का  परिवार  भी  तेजी  से  बढ़ता  है   पर  हाथी  की  वंश  वृद्धि   अत्यंत  धीमी  गति  से  होती  है   l  

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