13 March 2023

WISDOM ------

  लघु  -कथा  ---- दो  मित्र  थे  l  साथ -साथ    व्यापार  करते  थे  l  दोनों  ने  ही  बहुत  धन  कमाया   और  दोनों  में  ही  समाज  सेवा  की  भावना  प्रबल  थी   लेकिन  दोनों  का  तरीका  भिन्न  था  l  पहला  मित्र  अन्न  दान  करता   था  , वस्त्र  दान  भी  करता  था   और  सोचता  कि  उसने  बहुत  पुण्य  कर  लिया   लेकिन  दूसरा  मित्र   केवल   अपंग , वृद्ध , अपाहिजों   और  बहुत  ही  गरीब , असमर्थ  लोगों  को  ही  भोजन  देता  था   l  जो  शरीर  से  काम  करने  योग्य  उसके  पास  मदद  को  आते   उन्हें  वह  अपने  खर्च  से  कोई  न  कोई  हुनर   सिखवा  देता   या  कोई  भी  ऐसी  व्यवस्था  करा  देता  जिससे  वह  धन  कमा  कर   अपने  और  अपने  परिवार  की  भोजन  की  व्यवस्था  स्वयं  कर  सकें  l  अपने  जीवन  में  उसने  हजारों  लोगों  को   स्वाभिमान  से  जीवन  जीने  का   अवसर  दिया  l   वह  जिस  रास्ते  से  निकलता  लोग  उसकी  जय जयकार   करते  l  यह  देखकर  पहले  मित्र  को  बड़ी  ईर्ष्या  होती  थी  l   एक  पहुंचे  हुए  संत  से  उसने  परामर्श  किया   तो  उन्होंने  कहा   ----तुम्हारा  वह  मित्र   लोगों  का  ह्रदय  जीतने  की  कला  जानता  है  , लोगों  को  जीवन  जीना  सिखाता  है   और  तुम  शरीर  से  काम  करने  योग्य  लोगों  को  भी   अपने  दान  से  आलसी  बना  रहे  हो  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  गीता  में  कर्मयोग  को  श्रेष्ठ  बताया  है  l  आलसी  को  भगवान  भी  पसंद  नहीं  करते  ,  लोगों  को  कर्मयोगी  बनाओ  l  

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