16 February 2024

WISDOM -----

   श्रीमद भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं  ---  जो  मान -अपमान  , निंदा -प्रशंसा  में सम  रहता  हैं  , इनसे  विचलित  नहीं  होता  , ऐसा  भक्त  मुझे  प्रिय  है  l  '  ऐसी  स्थिति  तभी  संभव  है  जब  व्यक्ति  में  अहंकार  न  हो  l  यदि  अहंकार  होगा  तो  मान -सम्मान  मिलने  पर  व्यक्ति  के  अहंकार  को  पोषण  मिलेगा  , वह  और  अहंकारी  हो  जायेगा   l  इसके  विपरीत   यदि  निंदा  और  अपमान  मिलता  है   तो  अहंकार  पर  चोट  पहुँचती  है   और  पोषण  न  मिलने  पर  यही  अहंकार  घाव  की  भांति  रिसने  लगता  है   l  इसलिए   भगवान  हमें  समझाते  हैं  कि  यदि  हम  अपने  अहंकार  को  छोड़  दें  तो  मान -अपमान  स्वत:  ही  समाप्त  हो  जाएंगे   अर्थात   लोग  अपना  काम  करते  रहेंगे  , हमें  अपमानित  करें  या  प्रशंसा  करे  , हमारा  मन  विचलित  नहीं  होगा  l  अहंकार  समाप्त  होते  ही  हम  में  न  तो  मान  पाने  की  लालसा  रहेगी   और  न  ही  अपमानित  होने  का  भय  सताएगा  l  -------- ----------------स्वामी  रामतीर्थ   अमेरिका  प्रव्रज्या  हेतु  गये  थे  l  उनका  उद्बोधन  प्रसिद्द  चिंतकों  व  विचारकों  के  मध्य  हुआ  तो  सभी  ने  एक  स्वर  से   उनके  अद्भुत  व्यक्तित्व  और  प्रकांड  पांडित्य  की  प्रशंसा  की  l  उद्बोधन  के  पश्चात्   वे  जिस  महिला  के  घर  रुके  हुए  थे  , उनके  घर  पहुंचे  और  उस  महिला  से  बोले  ---- "  बहन  !  आज  ईश्वर  ने  इस  नाचीज  को  अन्यथा  ही  बहुत  प्रशंसा  दिलवाई  l "  कुछ  दिनों  उपरांत  वे  न्यूयार्क   के  ब्रौंक्स  क्षेत्र  से  गुजर  रहे  थे  कि  उनकी  वेशभूषा  को  देखकर  कुछ  अराजक  तत्वों  ने  उनके  साथ  दुर्व्यवहार  किया  ,  उन  पर  छींटाकशी  करने  लगे  l  घटना  की  खबर  जब  उस  महिला  को  लगी   तो  वो  कुछ  साथियों  को  लेकर   स्वामीजी  को  लेने  पहुंची  l  स्वामी  रामतीर्थ  उसी  निर्विकार  भाव  से  बोले  ---- "  बहन  !  आप  हस्तक्षेप  न  करो  l  आज  ईश्वर  का  अपने  इस  भक्त  को   अपमान  से  भेंट  कराने  का  मन  है  l  भगवान  के  भक्त  के  लिए  मान  क्या  और  अपमान  क्या  ? "  श्रीमद् भगवद्गीता  में  जिस  स्थितप्रज्ञ   का  वर्णन  है  , उस  स्वरुप  का  दर्शन  उनमें  सबको  उन  क्षणों  में  हुआ  l  

No comments:

Post a Comment