6 February 2024

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- 'जीवन  उमंग , उत्साह  एवं  उदेश्य  से  परिभाषित  होता  है  ,  उम्र  से  नहीं  l   जीवन  में  उत्साह  बनाये  रखने  के  लिए  यह  आवश्यक  है   कि  मनुष्य  सकारात्मक   चिंतन   बनाए  रखे   और  निराशा  को  हावी  न  होने दे  l  व्यक्ति  जितना  कार्य  अपने  शरीर  से  करता  है  ,  उससे  कई  गुना  कार्य  वह  अपने  मन  से  करता  है  l  यदि  मन  की  शक्तियां  ही  कमजोर  पड़  गईं  हैं ,  तो  फिर  जरूरत  है  उन्हें  जगाने  की  l  " ------- एक  कथा  है ------  एक  राजा  के  पास  कई  हाथी  थे  , लेकिन  एक  हाथी  बहुत  शक्तिशाली   था  , बहुत  आज्ञाकारी , समझदार  एवं  युद्ध  कौशल  में  निपुण  था  l  बहुत  से  युद्धों  में  वह  भेजा  गया  था   और  वह  राजा  को  विजय श्री  दिलाकर  वापस  लौटा  था  l  इसलिए  वह  महाराज  का  सबसे  प्रिय  हाथी  था  l    उसकी  भी  जब  वृद्धावस्था  आ  गई  तो  वह  पहले  की  तरह  कार्य  नहीं  कर  सकता  था  इसलिए   अब  राजा  उसे  युद्ध  क्षेत्र  में  नहीं  भेजते  थे  l  एक  दिन  वह  सरोवर  में  जल  पीने  गया   तो  वहां  कीचड़  में  उसका  पैर  धंस  गया  l  उस  हाथी  ने  बहुत  कोशिश  की  स्वयं  को  बाहर  निकालने  की  , लेकिन  वह  धंसता  ही  जा  रहा  था  l   उसके  चिंघाड़ने  की  आवाज  सुनकर  बहुत  लोग  वहां  आ  गए  ,  अनेक    पहलवान  और  सैनिक   उसे  निकालने  का  प्रयत्न  करने  लगे   लेकिन  कोई  सफलता  नहीं  मिली  l  राजा  ने   हाथी  के  वृद्ध  महावत  को  बुलाया  l  महावत  ने  घटनास्थल  का  निरीक्षण  किया   और  राजा  से  कहा  ---' सरोवर  के  चारों  ओर  युद्ध  के  नगाड़े   बजाएं  जाएँ  l  सुनने  वालों  को  बड़ा  विचित्र  लगा  कि   जब  व्यक्तियों  के  शारीरिक  प्रयत्न  से  फँसा  हुआ  हाथी  बाहर  नहीं  निकला  तो  भला  नगाड़े  की  आवाज  से  कैसे  बाहर  निकलेगा  l  लेकिन  आश्चर्य  ! जैसे  ही  युद्ध  के  नगाड़े  बजने   प्रारम्भ  हुए  ,  मृतप्राय   हाथी  के  हाव -भाव  में  परिवर्तन  आने  लगा   और  धीरे -धीरे  कोशिश  कर  के  वह  स्वयं  ही  कीचड़  से  बाहर  आ  गया  l  महावत  ने  बताया  कि  वह  हाथी  युद्ध  में   अनेकों  बार  गया  है   और  नगाड़े  की  आवाज  से  परिचित  है  ,  इस  आवाज  को  सुनकर  उसकी  चेतना  जाग  गई  ,  वह  उत्साह -उमंग  से  भर  गया  कि  राजा  को  युद्ध  के  लिए  उसकी  जरुरत  है   और  यह  विचार  आते  ही  वह  जोश  के  साथ  बाहर  आ  गया  l    आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- यदि  हमारे  मन  में   एक  बार  उत्साह -उमंग  जाग  जाए   तो  फिर  हमें  कार्य  करने  की   ऊर्जा   स्वत:  ही  मिलने  लगती  है   और  कार्य  के  प्रति  उत्साह  का  मनुष्य  की  उम्र  से  कोई  संबंध  नहीं  है  l  

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