29 February 2024

WISDOM ----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  अपनी  पुस्तक 'संस्कृति -संजीवनी  श्रीमद् भागवत  एवं  गीता  '  में  लिखते  हैं ---- "भगवान  चाहते  हैं  कि  हम  ' जियो  और  जीने  दो  ' के  सिद्धांत  के  अनुसार   स्वयं  भी  सुख पूर्वक  जीवन  यापन  करें  और   दूसरों  को  भी  जीने  दें  l   किन्तु  जब  हम  मोहवश     इस  व्यवस्था  को   भंग   कर  अपने  और  दूसरों  के   लिए  पतन  और  पीड़ा  का  सृजन  करते  हैं   तब  अपनी  स्रष्टि  व्यवस्था  में  संतुलन  स्थापित  करने  के  लिए   प्रभु  अवतरित  होते  हैं  l  भगवान  के  अवतार  कार्यों  में  दुष्टों  को  दंड  देना   एक  प्रधान  कार्य  होता  है  l  भगवान  की  द्रष्टि  में  शत्रु  और  पुत्र  का  कोई  भेदभाव  नहीं  है  l  भगवान  जो  किसी  को  दंड  देते  हैं  , वह  उसके  पापों  का  प्रायश्चित  कराने   और  उसका  परम  कल्याण  करने  के  लिए  ही  होता  है  l "                          जब  महाभारत  समाप्त  हो  गया  तब   पांडव  तो  भगवान  के  निर्देश  के  अनुसार  मर्यादित  जीवन  जीने  लगे   किन्तु  भगवान  कृष्ण  का  ही  वंश  ' यदुवंशियों  '  में  अहंकार  तथा  स्वच्छंदता  पनपने  लगी  l  श्रीकृष्ण  ने  सोचा  कि  मेरे  रहते  तो  ये  नियंत्रित  हैं   किन्तु  बाद  में  ये  सब   स्वच्छंद  होकर  अनर्थ  पैदा  करेंगे  l  भगवान  सोच  रहे  थे  कि  ये  यदुवंशी  मेरे  आश्रित  हैं  और  धनबल , जनबल   आदि  विशाल  वैभव  के  कारण   स्वच्छंद  हो  रहे  हैं  l  अन्य  किसी  से  इनकी  पराजय  नहीं  हो  सकती  l  जैसे  बांस  के  वन   परस्पर  रगड़  से  उत्पन्न  अग्नि   से  ही  जलकर  समाप्त  होते  हैं  , इसी  तरह  परस्पर  संघर्ष   से  ही  इन्हें  समाप्त  कर  के  ही  शांति  संभव  है  l  श्रीमद्  भागवत  में  लिखा  है  कि  भगवान  अपने  कर्तव्यों  का  पालन  बड़ी  कठोरता  से  करते  हैं  l  उनके  अपने  कहलाने  वाले  भी   उनके  आदर्शों  की  उपेक्षा  करने  का  उचित  दंड  पाते  हैं  l   भगवान  श्रीकृष्ण  के  कृष्णावतार  की  अंतिम  लीला  शेष  थी  --- उन्होंने  द्वारिकावासी  स्त्री , बच्चों  व   बूढ़ों  को  शंखोद्वार   क्षेत्र    भेज  दिया   तथा  अन्य  सब  को  लेकर  प्रभास  क्षेत्र  समुद्र  तट  पर  गए  l  वहां  उन्होंने  सबको  मंगल  कृत्य   एवं  स्नान  करने  के  लिए  कहा  l   सबने  उनकी  आज्ञानुसार  स्नान  व  पूजन  किया  l  इसके  बाद  मैरेयक  नामक  मदिरा  का   पान  करने  लगे  l  यह  पीने  में  तो  मीठी  होती  है   परन्तु  इसके  नशे   से  बुद्धि  भ्रष्ट   और  सर्वनाश  करने  वाली  हो  जाती  है  l   शराब  के  नशे  में  वे  यदुवंशी  एक  दूसरे  से  लड़ने  लगे  l  रथ  और  अस्त्र -शस्त्र  का  प्रयोग  करने  लगे   l  श्रीकृष्ण  और  बलराम  के  रोकने  पर  भी  नहीं  रुके   और  उन्हें  भी  अपना  शत्रु  मानने  लगे   l  गांधारी  के  शाप  का  फलित  होने  का  समय  आ  गया  था  ,  वे  सब  समुद्र  तट  पर  परस्पर  लड़-कटकर  मर  गए  l  जब  भगवान  ने  देखा  कि  समस्त  यदुवंशियों  का  संहार  हो  चुका  ,  तब  उन्होंने  यह  सोचकर  संतोष  की   साँस  ली  कि    पृथ्वी   का  बचा -खुचा  भार  भी  उतर  गया  l  

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