एक कहावत है ---- ' खाली बैठे क्या करें , आओ पड़ोसन लड़ें l " एक सत्य घटना है --- लोगों को लड़ने का बहुत शौक होता है l झुग्गी झोंपड़ी में रहने वाली दो महिलायें बात कर रहीं थीं -- एक ने कहा --मैं बकरी खरीदूंगी l दूसरी ने कहा --- तेरी झुग्गी में जगह तो है नहीं कहाँ बांधेगी ? ' पहली स्त्री ने कहा --- ' तेरी झुग्गी में बांध दूंगी , क्या कर लेगी मेरा ! ' बस ! इसी बात पर दोनों में बहस छिड़ गई , घर के पुरुष भी इसमें सम्मिलित हो गए l अब झुग्गी में तो इतनी जगह नहीं थी , इसलिए उनकी लड़ाई सड़क पर आ गई l एक -एक कर के अन्य झुग्गी वाले भी इस लड़ाई में जुट गए , बवाल मच गया l इस बीच भयंकर आँधी चलने लगी , मूसलाधार पानी बरसने लगा , ओले भी गिरे l महिलाएं तो किसी तरह अपनी झुग्गी में चलीं गईं l लेकिन पुरुषों में तो अहंकार होता है , अपने पौरुष को सार्थक करने का कोई मौका चाहिए l वे अपने - अपने घर से छाता ले आए , जिसके पास छाता नहीं था , उसने सिर पर से बोरी ओढ़ ली और खूब लड़े l ' ------ यह हाल आजकल पूरी दुनिया का है l झुग्गी में रहने वाले , गरीब लोग , निम्न जाति के लोग , जो बदरंग हैं वे लोग और अनपढ़ आपस में लड़ें तो बात समझ में आती है लेकिन जब रंग - रूप , ज्ञान - विज्ञानं , धन - वैभव , सुख - सुविधाएँ , जाति - धर्म हर दृष्टि से स्वयं को श्रेष्ठ कहने वाले लोग ऐसी लड़ाई करें कि धरती शमशान बन जाये तो मन में एक प्रश्न उत्पन्न होता है कि श्रेष्ठ कौन ? सभ्य कौन ? यह दुर्बुद्धि ही है कि सकारात्मक कोई कार्य नजर नहीं आता तो घमासान युद्ध कर के , निर्दोष प्राणियों की हत्या कर के ही लोग समझते हैं कि उनका जीवन सार्थक हो गया l ऐसी बुद्धि !
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