5 March 2022

WISDOM -----

    इतिहास  में   पढ़ते  हैं  कि   जब  भारत  ज्ञान और  वैभव  में  अपने  चरम  शिखर  पर  था ,  तब  यूरोप  में  असभ्य  जातियों  का  निवास  था  l   इसके  बाद    उन  अनेक  देशों  ने  जिन्हे  हम  विकसित  कहते  हैं   भौतिक प्रगति  तो  बहुत  की  ,  किन्तु  अध्यात्म  में  रूचि  न  होने  के  कारण  उनका  यह  विकास  एकांगी  रहा  l   मनुष्य  के  भीतर  देवता  और  असुर  दोनों  होते  हैं  l   अध्यात्म  का  अर्थ  है --- व्यक्तित्व  का  परिष्कार ,  चिंतन  और  चेतना   का  परिष्कार    l   यह  अध्यात्म  ही  है  जो  मनुष्य  के  भीतर  के  असुर  को   मार    कर  उसके  देवत्व  को  जगाता  है   l    विकसित  कहे  जाने  वाले  देशों  ने   विज्ञान   के  साथ  अध्यात्म  को  नहीं  जोड़ा  ,  इसलिए  उनके  भीतर  की  असुरता  समाप्त  नहीं  हुई   और  ज्ञान  और  बुद्धि  के  दुरूपयोग  से   यह  असुरता   एक  विशालकाय  असुर  में  तब्दील  हो  गई  l  कहावत  है -' हाथ  कंगन  को  आरसी  क्या  '    वे  स्वयं  ही  संसार  को  अपनी  असुरता  का  सबूत   दे  रहे  हैं   l   असुरता  में  स्वयं  ही  उसके  विनाश  के  बीज  विद्यमान  हैं  l   उन्हें  तो  अंधकार  ही  पसंद  है  l   इसलिए  प्रकृति  उन्हें  वापस  वहीँ  पहुंचा  देगी  l    पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " ऊँट   को  नकेल  से ,  बैल  को   डंडे  से ,   घोड़े  को  लगाम  से   और  हाथी  को  अंकुश  के  सहारे  वश  में  किया   जाता  है  l   सरकस   के  जानवरों  को  उनका  शिक्षक  चाबुक  से  डराकर   इच्छित  कृत्य  सिखाता  है   और  कराता  है   l   ईश्वर  विश्वास  और  आस्तिकता  की  भावना   मनुष्य  की  उच्श्रृंखलता   पर  अंकुश  लगाती  है  l   व्यक्ति  के  जीवन क्रम   और  चरित्र  को  बनाने  के  लिए    अध्यात्म  की ,  ईश्वर  भक्ति  की   आवश्यकता  है  ताकि  मनुष्य  जाति   का  जीवन  श्रेष्ठ  व  समुन्नत  बना  रहे   l "

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