17 March 2022

WISDOM -------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " कामना  एक  ऐसी  धधकती  आग  है  , जो  कभी  बुझती  नहीं   l   नए - नए  रूपों  में   मन  में  सदा  प्रज्वलित   रहती  है   l   कामना  की  आग में  मिट  जाना  विनाश  है  और  इसको  नियंत्रित  कर  लेना   विवेक  है   तथा  उसे  बुझा  देने  का   अपार  दुस्साहस  करना  विजय  है   l  "              कामनाओं   की  बाधा  है  ---- क्रोध  l   क्रोध  की  अग्नि   में सब  कुछ  नष्ट  हो  जाता  है  l  क्रोध  से  ही  विनाश  और  संघर्ष  उत्पन्न  होता  है   l  कामना  के  संसार  में   कहीं  भी  तृप्ति  नहीं  है  l   जितना  है,  उससे   अधिक  की  चाहत  बनी    रहती  है  l   गांव  का  एक  सरपंच  चाहता  है   वो  विधायक  बन  जाये , विधायक  बनने  के  बाद   चाहेगा  कि   वह  मंत्री  बन  जाये ,  फिर  मनमाना  विभाग  मिल  जाये ,  यह  सब  मिल  गया  तो  भी  संतोष  नहीं ,   अब   चाहेंगे कि   राष्ट्र प्रमुख  बन  जाये ,--- फिर  अन्य  देश  भी  उसकी  हुकूमत    मान    लें   l  जब  यह  कामना  भी  पूरी  हो  जाती  है   तो  व्यक्ति  अपने  को  भगवान  समझने  लगता  है   l  बस  !  यही  उसकी  सबसे  बड़ी  भूल  है   l   भगवान  कृष्ण  अर्जुन  के  सारथि  बने , महाभारत  हुआ   तो  यहाँ  विनाश   के साथ  सृजन  था , अधर्म  और  अन्याय  का  अंत   और  धर्म  की  स्थापना   l   लेकिन  मनुष्य  की  कामना  तृप्ति  में  जब  बाधा   से  क्रोध  उत्पन्न  होता  है ,  इससे  उसका  विवेक  नष्ट  हो   जाता  है  , मतिभ्रम  हो  जाती  है   और  परिणाम --विनाश  ही  विनाश   l   परिवार , समाज  और  राष्ट्र   ऐसे  ही  क्रोध   और  मति भ्रम  के  कारण  आपस  में  ही  लड़ -लड़कर   टूट  जाते  हैं ,  नष्ट हो  जाते  हैं  l  कितनी  ही  सभ्यताएं   मनुष्य  की  विवेकहीनता  के  कारण  काल के  गाल  में  समां   गईं  l    आज  संसार  को  सद्बुद्धि  की  जरुरत  है   l  सद्बुद्धि  के  अभाव  में  ही  व्यक्ति   आपस  में  लड़  कर ,   दंगे - फसाद  , युद्ध  कर , प्रकृति , पर्यावरण  सबको  नष्ट  कर  के  ही    अपने   आप  पर  गर्व  महसूस  करता  करता  है  

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