पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' अहंकार मानव प्रकृति में धागे के समान गुँथा हुआ है l अहंकारी अपने अलावा किसी और को अपने से बड़ा और अच्छा देख नहीं सकता l यह भाव दूसरों को उठाने के बजाय गिराता है , सुधारने के बजाय बिगाड़ता है , मनाने की बजाय रुठाता - रुलाता है l ' अहंकार के ही कारण संसार में अशांति और तनाव है l l आचार्य श्री लिखते हैं ---- हमें अपने अहंकार के मद में अपने को झुठलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए l जो बुद्धिमान हैं , जिनमे गुणग्राहकता का गुण है , वे अहंकार के मद में स्वयं को झुठलाते नहीं है , किसी की महानता उनकी हीनतापूर्ण प्रतिक्रिया का कारण नहीं हो सकती l वे उसकी महानता को स्वीकार करते हैं , जिससे अहंकार की पीड़ा के स्थान पर गौरव - गरिमा का अनुभव होने लगता है l " ----- इन्दौर के महाराज मल्हारराव होल्कर में गुणग्राहकता थी , वे उदार गुणज्ञ थे l पूना जाते समय मार्ग में पथारी गांव के शिवालय के पास विश्राम हेतु उनका वैभवपूर्ण शिविर लगा था l इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई उस समय एक गरीब किसान की भोली - सी ग्रामीण कन्या थीं l वे नित्य उस शिव मंदिर में पूजा करने आती थीं l उस दिन भी वे निर्विकार भाव से आईं , यथावत पूजन किया और बिना किसी भय और संकोच के अलिप्त भाव से वापस चलीं गईं l यह देखकर महाराज मल्हारराव सोचने लगे कि क्या संसार में ऐसा संभव है कि महाराजा का वैभवपूर्ण शिविर लगा हो , चारों ओर ऐश्वर्य बिखरा हुआ हो और एक साधारण सी ग्रामीण लड़की आये और बिना किसी प्रभाव के तटस्थ भाव से चली जाये l अच्छे से अच्छे धैर्यवान भी विस्मय से राजवैभव को देखते हैं लेकिन यह कन्या तो ऐसे चली गई , मानों राजा तो क्या एक छोटा सा प्राणी भी न हो l अहिल्याबाई की सात्विकता और निर्भयता उनके हृदय में श्रद्धा बनकर बैठ गई l जिस राजवैभव का उन्होंने और उनके पूर्वजों ने बड़े प्रयत्न से संचय किया था , उसका अवमूल्यन हो गया l लेकिन महाराज मल्हारराव ने अहिल्याबाई की महानता , उनकी सात्विकता स्वीकार कर अपनी अशांति का चिरस्थायी हल निकाल लिया l और उन्होंने उनके पिता को बुलवाकर कहा --- ' मैं आपकी सुलक्षणा बेटी को अपनी पुत्रवधु बनाना चाहता हूँ l अहिल्या के पास और कोई वस्त्र थे नहीं , उसी सफ़ेद मोटे गाढ़े की धोती में बहुत आदर और सम्मान के साथ पालकी में बिठा दिया l इन्दौर की युवरानी बनने के बाद भी वे कभी अपने पूर्व जीवन को नहीं भूलीं l सादगी से रहीं और और जो धन , मान उन्हें मिला उसका उपयोग उन्होंने सदैव लोक कल्याण में किया l उनके गुणों और कर्तव्यनिष्ठा ने उन्हें महानता के पद पर प्रतिष्ठित किया l
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