'सामर्थ्य बढ़ने के साथ ही मनुष्य के दायित्व भी बढ़ते हैं | ज्ञानी पुरुष बढ़ती सामर्थ्य का उपयोग पीड़ितों के कष्ट हरने एवं भटकी मानवता को दिशा दिखाने में करते हैं और अज्ञानी उसी सामर्थ्य का उपयोग अहंकार के पोषण और दूसरों के अपमान के लिये करते हैं | '
जय और विजय भगवान विष्णु के द्वारपाल थे | उन्हेंअपने पद का अभिमान हो गया | एक दिन उसी अहंकार के कारण उन्होंने ऋषियों --सनक ,सनंदन ,सनातन और सनत्कुमार का अपमान कर दिया | परिणाम स्वरुप उन्हें असुर होने का शाप मिला और तीन कल्पों में --हिरण्याक्ष -हिरण्यकश्यप ,रावण -कुंभकरण ,और शिशुपाल -दुर्योधन के रूप में जन्म लेना पड़ा |
पद जितना बड़ा होता है ,सामर्थ्य उतनी ही ज्यादा और दायित्व उतने ही गंभीर |
ऐसा ही अपमान किसी साधारण द्वारपाल ने किया होता तो इतने परिणाम में दंड न चुकाना पड़ता |
सामर्थ्य का गरिमापूर्ण एवं न्यायसंगत निर्वाह ही श्रेष्ठ मार्ग है |
जय और विजय भगवान विष्णु के द्वारपाल थे | उन्हेंअपने पद का अभिमान हो गया | एक दिन उसी अहंकार के कारण उन्होंने ऋषियों --सनक ,सनंदन ,सनातन और सनत्कुमार का अपमान कर दिया | परिणाम स्वरुप उन्हें असुर होने का शाप मिला और तीन कल्पों में --हिरण्याक्ष -हिरण्यकश्यप ,रावण -कुंभकरण ,और शिशुपाल -दुर्योधन के रूप में जन्म लेना पड़ा |
पद जितना बड़ा होता है ,सामर्थ्य उतनी ही ज्यादा और दायित्व उतने ही गंभीर |
ऐसा ही अपमान किसी साधारण द्वारपाल ने किया होता तो इतने परिणाम में दंड न चुकाना पड़ता |
सामर्थ्य का गरिमापूर्ण एवं न्यायसंगत निर्वाह ही श्रेष्ठ मार्ग है |
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