23 June 2013

SELF-IMPROVEMENT

'पाप एवं दुष्कर्म ही एकमात्र दुःख का कारण नहीं होते | अयोग्यता ,मूर्खता ,निर्बलता ,निराशा ,फूट, निष्ठुरता आलस्य भी ऐसे दोष हैं ,जिनका परिणाम पाप के समान और कई बार उससे भी अधिक दुखदायी होता है | '
      आप कठिनाइयों से बचना या छुटकारा प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने भीतरी दोषों को ढूंढ डालिये और उन्हें निकाल बाहर करने में जुट जाइये | दुर्गुणों को हटाकर उनके स्थान पर आप सद्गुणों को अपने अंदर जितना स्थान देते जायेंगे ,उसी अनुपात के अनुसार आपका जीवन विपत्ति से छूटता जायेगा |

         पंडित चिदंबर दीक्षित की ख्याति कर्नाटक के चमत्कारी संत के रूप में थी | एक दिन एक महिला उनसे 'माँ 'बनने का आशीर्वाद लेने पहुँची | दीक्षित जी ने उसे दो -तीन मुट्ठी चने देकर एक कोने में बैठने को कहा | कुछ देर पश्चात् दीक्षित जी ने देखा कि सड़क पर खेलते हुए कुछ बच्चों ने उस महिला से चने मांगे ,पर महिला ने उनकी याचना का उत्तर देने के बजाय दूसरी ओर मुँह कर लिया | बेचारे बच्चे कातर भाव से उसकी ओर ताकते रहे | यह द्रश्य देखकर दीक्षित जी महिला से बोले -"तुम मुफ्त में मिले चनों को बाँटने में इतनी निष्ठुरता दिखाती हो तो भगवान से यह कैसे आशा करती हो कि वो अपनी एक प्यारी आत्मा को तुम्हारे घर भेज देंगे | पहले ममत्व और करुणा का विस्तार करो ,जब सही पात्रता तुम्हारे अंदर विकसित हो जायेगी तो परमात्मा का अनुदान भी तुम्हे मिलेगा | "उस महिला की आँखे खुल गईं और उसने अपना जीवन परिमार्जित करने का वचन दीक्षित जी को दिया | 

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