4 June 2013

GENEROUS

'भक्ति भावना सही अर्थों में दीन -दुखियों के लिये अंत:से उत्पन्न परमार्थ भावना ही है | ईश्वर इसे ही मान्यता देते हैं |
           हज यात्रा पूरी करके एक दिन अब्दुल्ला बिन मुबारक कावा में सोए हुए थे | सपने में उन्होंने दो फरिश्तों को आपस में बातें करते देखा | एक ने दूसरे से पूछा -"इस वर्ष हज के लिये कितने आदमी आये और उनमे से कितनों की दुआ कबूल हुई ?'जवाब में दूसरे फरिश्ते ने कहा -"यों हज करने को 40 लाख आये थे ,पर इनमे से किसी की दुआ कबूल नहीं हुई है | इस वर्ष दुआ सिर्फ एक की कबूल हुई है और वह भी ऐसा है ,जो यहां नहीं आया | " पहले फरिश्ते को बहुत अचंभा हुआ ,उसने पूछा -"भला वह कौन खुशनसीब है ,जो यहां आया भी नहीं और उसकी हज कबूल हो गई ?"
     दूसरे फरिश्ते ने बताया -"वह है दमिश्क का मोची -अली बिन मूफिक | "
उस पाक हस्ती को देखने के लिये अब्दुल्ला बिन मुबारक अगले ही दिन दमिश्क के लिये चल पड़े और वहां उन्होंने मोची मूफिक का घर ढूंढ निकाला | और उनसे पूछा -"क्या तुम हज को गये थे ?"
मूफिक की आँखों में आँसू भर आये और सिर हिलाते हुए कहा -"मेरा भाग्य ऐसा कहाँ ,जो हज को जा पाता | जिंदगी भर की मेहनत से 700 दिरम उस यात्रा के लिये जमा किये थे ,पर एक दिन मैंने देखा कि पड़ोस के गरीब लोग पेट की ज्वाला बुझाने के लिये उन चीजों को खा रहे थे ,जिन्हें खाया नहीं जा सकता | उनकी बेबसी ने मेरा दिल हिला दिया और हज के लिये जो रकम जमा की थी ,सो उन गरीबों को बाँट दी | "
  दीन -दुखियों की सहायता ही सच्ची तीर्थ यात्रा है |

'मानव ह्रदय से बढ़ कर कोई तीर्थ नहीं | भगवान इसी में बसते हैं और वहां तक पहुँचने वाले को दर्शन दिये बिना नहीं लौटने देते | '     

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