26 June 2013

WISDOM

'अंदर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है | मनुष्य जीवन की बाह्य बनावट उसे कब तक साथ देगी ?जो कपड़े अथवा जो साधन यौवन में सुंदर लगते हैं ,यौवन ढलने पर वे ही उपहासास्पद दीखने लगते हैं |
मनुष्य को जीवन का श्रंगार ऐसे उपादानो से करना चाहिये ताकि आदि से अंत तक सुंदर और आकर्षक बने रहें  
         मनुष्य जीवन का अक्षय श्रंगार है --आंतरिक विकास | ह्रदय की पवित्रता एक ऐसा प्रसाधन है जो मनुष्य को बाहर -भीतर से एक ऐसी सुंदरता से ओत -प्रोत कर देता है जिसका आकर्षण न केवल जीवन पर्यन्त अपितु जन्म -जन्मांतरों तक सर्वदा एक सा बना रहता है |

 जीवन ही प्रत्यक्ष देवता है | उसकी साधना करने से हाथों हाथ सत्परिणाम की प्राप्ति होती है | 

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