23 June 2013

THOUGHTFUL

'ईश्वर से पाना और उसे जरुरतमंदों में बांटना ,इसी में सच्ची संपन्नता ,समर्थता एवं जीवन की सार्थकता है ।'
       पक्षियों के समूह ने बादलों को उलाहना देते हुए कहा -"बंधुओ !तुम्हारी भी क्या जिंदगी है ?एक जगह से वजन उठाकर चलना और दूसरी जगह उंडेल देना | ये तो मजदूरों की सी जिंदंगी हुई | "
    बादल हँसे और बोले -"इन्ही पानी की बूँदों से तो वो जीवन जन्म लेता है ,जिसका आनंद हम और तुम उठाते हैं |   हम बरसते हैं तो सारी स्रष्टि तृप्त होती है | यदि परमात्मा की इस रचना के लिये थोड़ा भार उठाना भी पड़ा तो उसमे अपना जीवन धन्य ही माना जाना चाहिये | "
         जाग्रत आत्माएँ भी बादलों की तरह ही जीवन जीती हैं और सत्प्रेरणा को दिव्य सत्ता से लेकर उन अंत:करण पर बरसाती है ,जिनके ह्रदय में समाज के लिये कुछ करने की चाह होती है | 

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