उपनिषद में प्रसंग आता है कि जब परमात्मा ने पंचभूतों से पुरुष आकृति का निर्माण कर तैयार कर दिया ,तब देवों ने पूछा कि हमारे योग्य स्थान बताएँ ,जहाँ हम इस पावन काया में निवास कर सकें | मानव शरीर के विभिन्न स्थलों का दिव्य रूप दिखाकर देवों से जब परमात्मा ने कहा -"अपने योग्य आश्रय स्थानों में तुम प्रवेश कर लो | "तब सभी देव प्रसन्न होकर मानवीय काया में स्थान -स्थान पर प्रतिष्ठित हो गये ---
अग्नि वाणी होकर मुख में , वायु प्राण होकर नासिका छिद्र में
सूर्य प्रकाश बनकर नेत्रों में ,दिशाएँ श्रोत्रेंद्रिय बनकर कानों में ,
औषधियाँ और वनस्पति रोमों के रूप में त्वचा पर , चंद्रमा मन के रूप में ,
मृत्यु अपान होकर नाभि में तथा जल देवता वीर्य बनकर जननेंद्रिय में प्रतिष्ठित हुए |-- ऐतरेय उपनिषद
यह कथानक बताता है की मानव शरीर एक देवालय है | हमें उसे प्रदूषित नहीं करना चाहिए |
अग्नि वाणी होकर मुख में , वायु प्राण होकर नासिका छिद्र में
सूर्य प्रकाश बनकर नेत्रों में ,दिशाएँ श्रोत्रेंद्रिय बनकर कानों में ,
औषधियाँ और वनस्पति रोमों के रूप में त्वचा पर , चंद्रमा मन के रूप में ,
मृत्यु अपान होकर नाभि में तथा जल देवता वीर्य बनकर जननेंद्रिय में प्रतिष्ठित हुए |-- ऐतरेय उपनिषद
यह कथानक बताता है की मानव शरीर एक देवालय है | हमें उसे प्रदूषित नहीं करना चाहिए |
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