एक दिन देवलोक से विशेष विज्ञप्ति निकाली गई ---- " अमुक दिन सभी चित्रगुप्त से अपनी असुंदर वस्तुओं के बदले सुंदर वस्तुएं प्राप्त कर सकते हैं l शर्त यही है कि वह विधाता की सत्ता में विश्वास रखता हो l " निश्चित तिथि पर तीनों लोकों के निवासी अपनी -अपनी असुंदर वस्तुएं लेकर देवलोक पहुँच गए l विधाता ने दिव्य द्रष्टि से देखा कि सब आए या नहीं l उनने देखा कि सब तो आ गए , केवल पृथ्वी लोक पर एक मनुष्य अपने आनंद में है l विधाता ने पूछा ---- " भाई ! तुम चित्रगुप्त के पास अपनी असुंदर वस्तुएं परिवर्तित करने क्यों नहीं गए ? " वह व्यक्ति बोला ---- " भगवान की बनाई इस स्रष्टि के कण -कण में वही तो व्याप्त है , फिर जबकि प्रत्येक कण में वही है , तो कहीं भी असुन्दरता कैसे हो सकती है ? मुझे तो इस स्रष्टि का कण -कण सुंदर दिखाई पड़ता है l " विधाता मुस्कराए और चित्रगुप्त से बोले ---- " वस्तुतः यही वह व्यक्ति जो विधाता की सत्ता में विश्वास रखता है l जो स्रष्टि को इसके समग्र रूप में स्वीकार करता है , उसके लिए सौन्दर्य और कुरूपता का भेद नहीं रह जाता l " विधाता की कृपा भी उसी मनुष्य को प्राप्त हुई है l