एक अंधियारी रात में एक प्रौढ़ व्यक्ति नदी के तट से कूदकर आत्महत्या करने पर विचार कर रहा था l वह उस क्षेत्र का सबसे धनी व्यक्ति था , लेकिन अचानक घाटे में उसकी सारी संपदा चली गई , इसी वजह से वह आत्महत्या का निश्चय कर के वहां आया था , परन्तु वह नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के किनारे पहुँचने को हुआ कि उसे किन्ही दो मजबूत हाथों ने थाम लिया l उसने देखा कि आचार्य रामानुज उसे पकड़े हुए थे l उन्होंने उससे इस अवसाद का कारण पूछा तो वह बोला ----- " पहले मैं बहुत सुखी था l मेरे सौभाग्य का सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था लेकिन अब सिवाय अंधियारे के मेरे जीवन में और कुछ भी बाकी नहीं है l " यह सुनकर आचार्य रामानुज बोले ----- " दिन के बाद रात्रि और रात्रि के बाद दिन l जब दिन नहीं टिका तो रात्रि कैसे टिकेगी l परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है l जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे l जो इस शाश्वत नियम को जान लेता है , उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भांति हो जाता है , जो वर्षा व धूप में समान ही बनी रहती है l "