एक राज्य में एक राजा अपनी न्याय प्रियता के लिए विख्यात था l एक बार उसके पास एक जटिल मामला आया l यह मामला एक भिखारी का था l भिखारी को एक बटुआ मार्ग पर पड़ा मिला , जिसमें सौ मोहरें थीं l वह उन्हें सरकारी विभाग में जमा कराने चल दिया , परन्तु रास्ते में उसे एक सौदागर मिला , जो उससे बोला ---- " यह बटुआ उसका है और वह उसकी ईमानदारी के लिए उसे आधी मोहरें देगा l " भिखारी ने बटुआ सौदागर को सौंप दिया , पर पैसे मिलते ही सौदागर के मन में बदनीयती आ गई l उसी भाव से वह भिखारी से बोला ---- " अरे , इसमें तो दो सौ मोहरें थीं , तुमने आधी रख लीं हैं l " भिखारी ईमानदार था , वह झूठा इल्जाम सहन न कर सका और न्याय मांगने राजदरबार पहुंचा l राजा बात सुनते ही समझ गया कि सौदागर बेईमान है l राजा ने कहा --- " सौदागर ! भिखारी यह बटुआ सरकारी कोष में जमा कर रहा था , इससे यह तय है कि वह पैसे नहीं रखना चाहता था l तुम कहते हो कि बटुए में दो सौ मोहरें थीं लेकिन इसमें सौ निकली l इसका अर्थ हुआ कि बटुआ तुम्हारा नहीं है , भिखारी को किसी और का बटुआ मिला है l भिखारी को मिले बटुए का आधा हिस्सा राजकोष में जमा कर लिया जाए और आधा उसे पुरस्कार स्वरुप दे दिया जाए l जहाँ तक तुम्हारे बटुए का प्रश्न है तो वह जब मिलेगा , तुम्हे वापस कर दिया जायेगा l " लालची सौदागर हाथ मलता रह गया क्योंकि बटुआ उसी का था , पर ज्यादा पाने के लालच में वह अपनी ही दौलत गँवा बैठा था l