22 June 2024

WISDOM -----

   स्वामी  विवेकानंद  अपने  शिष्यों  के  साथ  पैदल  भ्रमण  को  निकले  l   निर्माणाधीन  मंदिर  के  पास  उनकी  द्रष्टि   तीन  मजदूरों  पर  पड़ी  l  उन्होंने  उत्सुकतापूर्वक   पहले  मजदूर  से  पूछा ---- " क्यों  भाई , क्या  कर  रहे  हो  ? " उसने  उत्तर  दिया ---- "  गधे  की  तरह  जुटे  हुए  हैं  , देख  नहीं  रहे  हो  l  दिन  भर  काम  करने   पर  थोड़ा -बहुत  मिल  जाता  है  , पर  इतने  के  लिए  ठेकेदार  मानो  जान  निकाल  लेता  है  l "  यही  प्रश्न  दूसरे  से  करने  पर   वह  बोला  ---- "  मंदिर  बन  रहा  है  , हमारी  तो  किस्मत  में  यही  था  कि  मजदूरी  करें  , सो  कर  रहे  हैं  l "   तीसरे  ने  भाव  भरे  ह्रदय  से   उत्तर  दिया  ----- "  भगवान  का  घर  बन  रहा  है  l मुझे  तो  प्रसन्नता  है  कि   मेरी  पसीने  की  कुछ  बूंदे  भी   इसमें  लग  रही  हैं  l  जो  भी  मुझे  मिलता  है  , उसी  में  मुझे  ख़ुशी  है  l    गुजारा   भी  चल  जाता  है   और  प्रभु  का  काम  भी  हुआ  जा  रहा  है  l  "  स्वामी जी  ने  शिष्यों  से  कहा --- "  "  यह  अंतर  है  तीनों  के  काम  करने  के  ढंग  में  l  मंदिर  तीनों  बना बना  रहे  हैं  लेकिन  एक  गधे  की  तरह  मज़बूरी  में  , दूसरा  यंत्रवत   भाग्य  के  नाम  पर  दुहाई  देता  हुआ   और  तीसरा   समर्पण  भाव  से  काम  में  जुटा  हुआ  है  l  यही  अंतर  इनके  काम  की  गुणवत्ता  में  भी  देखा  जा  सकता  है  l  क्या  कार्य  किया  जा  रहा  है  , यह  महत्वपूर्ण  नहीं  है  ,  उसे  किस  उदेश्य  से  , किस  भावना   से  किया  जा  रहा  है  , यह  मायने  रखता  है  l  "   

WISDOM -------

   गोपियों  ने  एक  बार  बाँसुरी  से  पूछा  ---- " तुम्हे  कृष्ण  स्वयं  हर  समय   होठों  से  लगाए  रहते  हैं   और  हम   सब  उनकी  कृपा   पाने  के  लिए   बहुत  प्रयत्न  करते  हैं  , परन्तु  सफल  नहीं  होते  ,  जबकि  तुम  बिना  प्रयत्न  किए  ही   उनके  अधरों  पर   रहती  हो  l  "  बाँसुरी  बोली  ---- " बिना  प्रयत्न  किए   नहीं  गोपियों  l  मैंने  भी  प्रयत्न  किया  है  l  जानती  हो  मुझे   मुरली  बनने  के  लिए   अपना  मूल  अस्तित्व  ही  खो  देना  पड़ा  है  l  "  गोपियों  को  तब  समझ  में  आया  l  बाँसुरी  अपने  आप  में  खाली  थी  l  उसमे  स्वयं  का  कोई  स्वर  नहीं   गूँजता  था  , बजाने  वाले  के  ही  स्वर  बोलते  थे   l  बाँसुरी  को  देखकर  कोई  यह  नहीं  कह  सकता  कि   वह  कभी  बाँस  रह  चुकी  है   क्योंकि  न  तो  उसके  कोई  गाँठ  थी   और  न  कोई  अवरोध  l  गोपियों  को  भगवान  का  प्यार  पाने  का   अनूठा  सूत्र  मिल  गया  l