4 September 2024

WISDOM ----

 इस  संसार  में  असुरता  स्रष्टि  के  आरम्भ  से  ही  रही  है  l  ईश्वर  ने  इतने  अवतार  लिए   असुरों  के  नाश  के  लिए   लेकिन  असुर  समाप्त  नहीं  हुए  l  असुरता  के  संस्कार  ऐसे  हैं  कि  वे  पीढ़ी -दर -पीढ़ी   बढ़ते  ही  जा  रहे  हैं  l  अंतर  केवल  इतना  है  कि  पहले   संसार    में  असुर  स्पष्ट  दिखाई  देते  थे   जैसे  रावण  और  उसके  एक  लाख  पूत , सवा  लाख  नाती   और  विभिन्न  सहयोगी  , उन  सबकी  असुर  के  रूप  में  स्पष्ट  पहचान  थी   l   वे  ऋषियों  को  मारते , सताते  थे  , सत्कार्यों  में  बाधा  डालते  थे  l  द्वापर  युग  में  भी   दुर्योधन  आदि  कौरवों  का  अधर्मी  और  षड्यंत्रकारी  होना  सबके  सामने  स्पष्ट  था  l     ------ लेकिन  कलियुग  में  स्थिति  इतनी  खतरनाक  इसलिए  हो  गई  है   क्योंकि  अब  असुरता  लोगों  के  भीतर  , उनके  ह्रदय  में , उनके  अस्तित्व  में  समां  गई  है  l  अब  हम  उन्हें  देखकर ,  उनके  साथ   कार्य  कर  के ,  एक  थाली  में  खाना  खाकर  भी   हम  पहचान  नहीं  सकते  कि   वे  कितने  बड़े  असुर  हैं   l  चेहरे  पर  इतने  नकाब  हैं   कि  उनके  भीतर  के  दानव  को  समझ  पाना  असंभव  है  l    ईश्वर  की  कृपा  से  जिसका  विवेक  जाग्रत  हो  जाए  वही   उन्हें  पहचान  सकता  है  l  देवता  और  असुरों  में  केवल  सोच  का  फरक  है  l  देवता  अपनी  शक्तियों  का  सदुपयोग  करते  हैं  , संसार  के  कल्याण  के  लिए  कार्य  करते  हैं  और  असुर  अपनी  उन्ही  शक्तियों  का  प्रयोग  दूसरों  को  सताने , उत्पीड़ित  करने   और   प्रकृति  को  नष्ट  करने , मानवता  को  मिटाने  के  लिए  करते  हैं   l  सच  तो  यह  है  कि  ये  असुर  दया  के  पात्र  हैं ,  सबको  मिटाने  के  चक्कर  में  वे  स्वयं  मिट  जाएंगे  l   बड़ी  मुश्किल  से  मिला  ये  मानव शरीर  ,  युगों -युगों  तक  प्रेत  और  पिशाच  योनि  में  फिरेगा  l    असुर  बड़े  अहंकारी  होते  हैं ,   कभी  सुधरते  नहीं ,  लोगों  को  सताना , छल , कपट  षड्यंत्र  करना  नहीं  छोड़ते  नहीं    इसलिए   जो  भी  देवत्व  के  मार्ग  पर  हैं   और  आसुरी  तत्वों  से  पीड़ित  हैं   वे  स्वयं  बदले  की  भावना  न  रखें , न्याय  के  लिए  ईश्वर  हैं  l    ईश्वर  से  उनकी  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें  , असुरों  की  सोच  बदल  जाये  तो  धरती  पर  शांति  और  सुकून  हो  l ------ एक  संत  नाव  से  नदी  पर  कर  रहे  थे  l  नाव  में  बैठे  शरारती  तत्व  उन्हें  परेशान  करने  लगे  l  जब  वे  रात्रिकालीन  प्रार्थना  में  बैठे  , ध्यान  करने  लगे   तो  शरारती  तत्वों  ने  उनके  सिर  पर  जूते   मारना   शुरू  कर  दिया  l  तभी  आकाशवाणी  हुई --- " मेरे  प्यारे  !  तू  कहे  तो  मैं  नाव  उलट  दूँ  l "  संत  यह  सुनकर  हैरान  हुए  और  कहा ---- " हे  प्रभु  !  प्रार्थना  के  समय  यह  शैतान  की  वाणी  क्यों  सुनाई  पड़ने  लगी   l  यदि   कुछ  उलटने  की  आवश्यकता  है   तो  इनकी  बुद्धि  उलट  दे  l  "  बुद्धि  सन्मार्ग  पर  आ  जाए  तो  वे  ऐसी  हरकत  करेंगे  ही  नहीं  l  परमात्मा  ने  कहा --- "  मैं  बहुत  खुश  हूँ  कि  तुमने  शैतान  को  पहचान  लिया  l  मैं  तो  सर्वदा  प्रेम  में  विश्वास  करता  हूँ ,  बैर  और  विध्वंस   से  मेरा  कोई  संबंध  नहीं  है  l  "