1 . राहगीर ने राह में गड़े मील के पत्थर की ओर देखा और ताना दिया ---- " भला तुम्हारा जीवन भी कोई जीवन है , जो एक ही जगह स्थिर है l मुझे देखो , मैं सारी दुनिया के भ्रमण का आनंद लेता हूँ और तुम हो कि एक जगह गड़ गए तो हिलने का नाम नहीं लेते हो l " मील का पत्थर हँसा और बोला ------ " मित्र ! पेंडुलम हिलता -डुलता तो बहुत है , पर पहुँचता कहीं नहीं , वैसे ही उदेश्यहीन भ्रमण किसी काम का नहीं l मैं एक उदेश्य के लिए समर्पित हूँ और इसलिए दूसरों को दिशा दे पाता हूँ , चाहे स्वयं कहीं न जाऊं l "
2 . महर्षि जावालि ने पर्वत पर ब्रह्म कमल खिला देखा l शोभा और सुगंध पर मुग्ध होकर ऋषि सोचने लगे कि उसे देवता के चरणों में चढ़ने का सौभाग्य प्रदान किया जाये l ऋषि को समीप आया देख पुष्प प्रसन्न तो हुआ , पर साथ ही आश्चर्य व्यक्त करते हुए आगमन का कारण भी पूछा l जावालि बोले --- " तुम्हे देव -सामीप्य का श्रेय देने की इच्छा हुई तो तोड़ने आ पहुंचा l " पुष्प की प्रसन्नता खिन्नता में बदल गई l महर्षि ने उदासी का कारण पूछा तो फूल ने कहा ---- " देव -सामीप्य का लोभ संवरण न कर सकने वाले कम नहीं है l फिर देवता को पुष्प जैसी तुच्छ वस्तु की न तो कमी है और न इच्छा l ऐसी दशा में यदि मैं तितलियों -मधुमक्खियों जैसे क्षुद्र कीटकों की कुछ सहायता - सेवा करता रहता , तो क्या बुरा था l आखिर इस क्षेत्र को भी तो खाद की आवश्यकता होती , जहाँ मैं उगा और बढ़ा l " ऋषि ने पुष्प की भाव -गरिमा को समझा और वे उसकी प्रशंसा करते हुए उसे यथा स्थान छोड़कर वापस लौट आए l