आज संसार की सबसे बड़ी समस्या यह है कि मनुष्य की चेतना सुप्त हो गई है l प्रत्येक व्यक्ति केवल धन के पीछे दौड़ रहा है , कितना धन कमा ले , उससे कितना ऐश कर ले , कितना आगे की पीढ़ियों के लिए छोड़ दे l यह छोड़ना भी एक मज़बूरी है , व्यक्ति का वश चले तो वह भी बांधकर ले जाए l इस तृष्णा ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं l जो हथियार बनता है , वह चाहता है कितने युद्ध हों ताकि उसका धन का भंडार बढ़ता जाए l दवाई , इंजेक्शन बनाने वाले की इच्छा है कि कितने ज्यादा लोग बीमार हो , बीमारी , महामारी हो जिससे वह अपनी अमीरी की छाप छोड़ सके l बिल्डिंग आदि निर्माण से जुड़ा व्यक्ति सोचता है , जल्दी टूटने वाली हो जिससे आमदनी का स्रोत बना रहे l शिक्षक , कलाकार , व्यापारी हर व्यक्ति अपनी बुद्धि से अपने क्षेत्र में अतिरिक्त धन कमाने के उचित -अनुचित किसी भी तरीके से अमीर बनने के रास्ते खोज लेता है l केवल जीवन का यही उदेश्य रह गया है l धन जीवन के लिए बहुत जरुरी है , , सभी आवश्यकताएं धन से ही पूरी होती हैं लेकिन अपनी अनंत आवश्यकताओं के लिए व्यक्ति अनैतिक , अमानवीय तरीके इस्तेमाल करता है , वह गलत है l धन के बल पर व्यक्ति कानून से भी बच जाता है , गलत रास्ते पर चलकर भी सम्मानित जीवन जीता है l लेकिन ईश्वर का न्याय तो होता है l इस युग में मनुष्य की चेतना सुप्त इसलिए कही जाती है क्योंकि ऐसे लोगों के जीवन में कोई बड़ा दुःख आ जाये , भयंकर बीमारी आ जाये तब भी वे लोग सुधरते नहीं l उनके अहंकार के कारण यह बात उनके चिन्तन में ही नहीं आती कि उनके गलत कार्यों की वजह से ही प्रकृति उन्हें दंड दे रही है l l मरणासन्न स्थिति में पहुंचकर यदि पुन: थोड़े भी स्वस्थ हो जाएँ तो फिर से पाप कर्म में जुट जाते हैं l कलियुग की यही सबसे बुरी बात है कि व्यक्ति सुधरना ही नहीं चाहता l संसार में ऐसे लोगों की अधिकता है l सन्मार्ग पर चलने वाले बहुत कम हैं l यह युग का असर है कि सन्मार्ग पर चलने वालों को आसुरी शक्तियां अपने दलदल में घसीटने की जी -तोड़ कोशिश करती हैं l असत्य का बोलबाला है , सत्य उपेक्षित है l