इस धरती पर ही नहीं , देवलोक में भी इन्द्रासन के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ा रहता है l अहंकार , अति की महत्वाकांक्षा , स्वार्थ , लालच सुख -भोग की लालसा ---- ऐसे अनेक कारण इन युद्धों के लिए उत्तरदायी हैं l त्रेतायुग , द्वापर युग में असुरों की एक पहचान थी l अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध हुआ करते थे l उन युद्धों में कायरता नहीं थी , वे निर्दोष प्राणियों , महिलाओं , बच्चों , गर्भ में पल रहे बच्चों पर आक्रमण नहीं किया करते थे लेकिन अब असुरता लोगों के भीतर समा गई है , धर्म और अधर्म का भेद करना मुश्किल है l नैतिकता और मर्यादा अंधकार में खो गई है l अब पापकर्म कर के भी व्यक्ति ठप्पे से समाज में रहते हैं और सम्मान पाते हैं l अब देवत्व तो मुट्ठीभर हैं , असुरता सम्पूर्ण धरती पर व्याप्त है l इस युग में न्याय ' जिसकी लाठी उसकी भैंस ' है , ईश्वर के दरबार में भी अनेक कारणों से अपराधियों को दंड देने में बहुत देर लगती है , इस कारण असुरता को फलने -फूलने का पर्याप्त मौका मिल जाता है l धरती माँ , प्रकृति , सम्पूर्ण पर्यावरण इस असुरता से दुःखी है l
17 October 2024
WISDOM -------
एक गुरु के दो शिष्य थे l दोनों ही बड़े ईश्वर भक्त थे l ईश्वर उपासना के बाद वे आश्रम में रोगियों की चिकित्सा में गुरु की सहायता किया करते थे l एक दिन उपासना के समय ही कोई कष्ट से पीड़ित रोगी आ पहुंचा l गुरु ने पूजा कर रहे शिष्यों को बुलाने के लिए आदमी भेजा l शिष्यों ने कहलवा भेजा कि अभी थोड़ी पूजा बाकी है , पूजा समाप्त होते ही आ जाएंगे l ' गुरूजी ने दोबारा फिर आदमी भेजा l इस बार शिष्य आ गए , पर उन्होंने अकस्मात बुलाए जाने पर असंतोष ब्यक्त किया l गुरु ने कहा --- " मैंने तुम्हे इस व्यक्ति की सेवा के लिए बुलाया था l प्रार्थनाएं तो देवता भी कर सकते हैं , किन्तु कष्ट पीड़ितों की सहायता तो मनुष्य ही कर सकते हैं l सेवा , प्रार्थना से अधिक ऊँची है क्योंकि देवता सेवा नहीं कर सकते l " शिष्य अपने कृत्य पर बड़े लज्जित हुए और उस दिन से प्रार्थना की अपेक्षा सेवा को अधिक महत्त्व देने लगे l