26 August 2024

WISDOM ----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " इन्द्रिय  संयम  में  वाणी  का  संयम  प्रमुख  है  l  अनावश्यक  बोलने  में  जितनी  गलतफहमियां  और  समस्याएं   पैदा  होती  हैं  ,  उतनी  मौन  से  नहीं  होतीं  l  निरर्थक  बोलना  बहुत  थकाने  वाली  प्रक्रिया  है  l  सभी  को  अपने  जीवन  में  मौन  का  अभ्यास  करना  चाहिए  l  इससे  बहुत  सारे  फायदे  होंगे  l  सर्वप्रथम  वाद -विवाद  थमेंगे  l  अनावश्यक  बातें  नहीं  बिगड़ेंगी , कलह , क्लेश   नहीं  होंगे  l  मौन  रहने  से  शांति  का  साम्राज्य  फैलेगा  l  "      मौन  रहने  के  साथ  यह  भी  जरुरी  है  कि  मौन  की  अवधि  में  मन  शांत  रहे  ,  मन  में  सकारात्मक  विचार  रहें  और  शरीर  सकारात्मक  कार्यों  में  लगा  रहे  ,  आलसी  बनकर  न  बैठें  l   यदि  मौन  के  समय  मन  में  नकारात्मक  विचार  रहेंगे  , व्यक्ति  मौन  रहकर  छल -कपट , धोखा  देने , षड्यंत्र  करने  की  योजना  बनता  रहेगा   तो  यह  उस  व्यक्ति  और   उसके  स्वयं  के  लिए  बहुत  घातक  होंगे  l   शक्ति  का  सदुपयोग  बहुत  जरुरी  है  , फिर  चाहे  वह  मौन  की  हो ,  अपने  धन , पद  की  हो  और  अपनी  किसी  विशेष  योग्यता  की  हो  l  शक्ति  का  सदुपयोग  न  होने  से  ही  आज  संसार  में  तबाही  है  l  शक्ति  का  सदुपयोग  मनुष्य  को  देवत्व  की  श्रेणी  में  ले  आता  है  लेकिन  शक्ति  का  दुरूपयोग   मनुष्य  के  भीतर  के  असुर  को  जगाकर   उसे    नर    पिशाच   बना  देता  है  l  शक्ति  का  सदुपयोग  हो  , इसके  लिए  सद्बुद्धि  और  विवेक  की  जरुरत  है  l  सामान्य  जन  में  सद्बुद्धि  आ  भी  जाए  तो  उससे  समाज  और  संसार  में  कोई  परिवर्तन  नहीं  आ  पाता  l  जिनके  पास  धन , पद , प्रतिष्ठा , वैभव  , अति  संपदा , संगीत  , कला , खेल  . चिकित्सा , निर्माण  आदि  विभिन्न  क्षेत्रों  में  विशेष  योग्यता  हासिल  है  , सद्बुद्धि  की  सबसे  ज्यादा  जरुरत  उन्ही  को  है  ताकि  वे  उसका  सदुपयोग  कर      औरों  को  भी  सही  दिशा  में  कार्य  करने  की  प्रेरणा  दे  सकें , तभी  संसार  में  शांति  आ  सकती  है  अन्यथा  बारूद  के  ढेर  पर   आज  संसार  है  , दुर्बुद्धि  कब  , क्या  कहर  ला  दे  , कोई  नहीं  जानता  l