कहते हैं इस संसार में एक पत्ता भी हिलता है तो वह ईश्वर की मरजी से l जो भी घटनाएँ घटती हैं , वह सब ईश्वर का विधान है और यह विधान कर्म -फल पर आधारित है मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन में जो भी अच्छा -बुरा घटता है वह उसके अपने ही कर्म हैं , वे चाहे इस जन्म के हों या पिछले किसी जन्म के l मन को शांत रखने का , तनाव रहित रहने का प्रथम सूत्र यही है कि जीवन में कष्ट , दुःख , कठिनाइयाँ आएं तो हम यह स्वीकार करें कि ये हमारे ही जाने -अनजाने में किए गए कर्मों का परिणाम है l मनुष्य स्वयं कर्म कर के भूल जाता है और पिछले जन्मों का तो याद भी नहीं रहता लेकिन ईश्वर के पास एक -एक व्यक्ति का लेखा -जोखा है l अतीत में जो कर्म किए , अब उन पर हमारा कोई वश नहीं है उन्हों कर्मों के आधार पर हमारा वर्तमान जीवन है इसलिए आचार्य श्री कहते हैं ----- यदि जीवन में कष्ट का समय आता है तो निष्काम कर्म की गति बढ़ा दो , पुण्य का कोई भी मौका हाथ से न जाने दो l सत्कर्मों से ही प्रारब्ध के कष्टों का बोझ हल्का होता है और सुन्दर भविष्य का निर्माण होता है