18 August 2024

WISDOM ----

   आचार्य  ज्योतिपाद  संध्या  के  बाद  उठे  ही  थे   कि  एक  व्यक्ति  जिसका  नाम  आत्मदेव  था , उसने  उनके  चरण  पकड़  लिए   और  बोला ---- " आप  सर्वसमर्थ  हैं  , एक  संतान  दे  दीजिए  , आपका  जीवन  भर  ऋणी  रहूँगा  l "   आचार्य  बोले ---- " संतान  से  सुख  पाने  की  कामना  व्यर्थ  है  l  तुम  व्यर्थ  इस  झंझट  में  मत  पड़ो  l  तुम्हारे  भाग्य  में  संतान  नहीं  है  l  जिसने  पिछले  जन्म  में  गुरु  का  वरण  नहीं  किया  ,  अपनी  संपत्ति  को  लोकहित  में  नहीं  लगाया  ,  वह  अगले  जन्म  में  संतानहीन  होता  है  l  जाओ ,  अब  तुम्हारी  उम्र  भी  अधिक  है    संतान  मिल  भी  गई  तो  कोई  औचित्य  नहीं  है  l "   आत्मदेव  ने  आचार्य  के  चरण  नहीं  छोड़े  , बोला ---"  या  तो  पुत्र  लेकर  लौटूंगा  या  आत्मदाह  कर  लूँगा  l  "   आचार्य  ने  कहा ---- " श्रेष्ठ  आत्माएं  ऐसे  ही   नहीं  आतीं  l  कोई  अपवित्र  आत्मा  ही  हाथ  लगती  है  l  चलो  विधाता  की  ऐसी  ही  इच्छा  है   तो  तुम  यह  फल  अपनी  पत्नी  को  खिलाना  l  धर्मपत्नी  से  कहना  कि  वह  एक  वर्ष  तक  नितांत  पवित्र  रहकर   कुछ   दान  करे  l  "   आत्मदेव  प्रसन्न  होकर  लौटा   और  फल  अपनी  पत्नी   धुन्धुली   को  देकर  आचार्य  का  सन्देश  भी  कहा  l   पत्नी  ने  सोचा  ---पवित्रता  का  आचरण  और  वह  भी  एक  साल  तक  ,  मैं  न  कर  सकूंगी  l  उसने  फल  गाय  को  खिला  दिया  l  समय  पर  बहन  का  पुत्र  गोद  ले  लिया  , उसका  नाम  रखा  ' धुंधकारी  ' l    बाल्यावस्था  से  ही  वह  दुराचारी , जुआरी  और  निम्न  वृत्तियों  में   लीन   रहता  था  l  माता -पिता   कुढ़कर , दुःख  से  मर  गए  l  धुन्धुली  ने  वह  फल  गाय  को  खिलाया  था  अत"   गोमाता  ने  ' गोकर्ण  ' नामक  पुत्र  को  जन्म  दिया  , वह  पशु  योनि  में  भी   परम  विद्वान  और  धर्मात्मा  था  l  धुंधकारी   की  अकाल  मृत्यु   हुई  , वह  प्रेत योनि  में  था  l  गोकर्ण  ने  भागवत  कथा  कहकर  उसे  प्रेत योनि  से  मुक्त  कराया  l