पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " यदि ईश्वर निष्ठा अटूट एवं प्रगाढ़ हो तो किसी भी तरह का सांसारिक कष्ट सच्चे भक्त की भक्ति को विचलित नहीं कर पाता l भक्त को मन में सतत एक विश्वास होता है कि जब प्रभु साथ हैं तो कुछ भी अन्यथा नहीं होगा l हाँ , कठिन परीक्षाएं हो सकती हैं , कठिनाइयाँ आ सकती हैं , पर उन्हें धैर्यपूर्वक सहन कर जाना है क्योंकि प्रभु ने कहा है ---- मेरे भक्त का कभी नाश नहीं होता , किसी भी स्थिति में उसका कोई अहित नहीं होता , मैं सदा उसके साथ रहता हूँ l " ----------- आचार्य श्वेताक्ष की युवा पत्नी अपने नवजात शिशु को छोड़कर परलोक सिधार गईं l उन्होंने उसके सभी अंतिम संस्कार पूर्ण किए और आनंद पूर्वक अपने शिशु का पालन -पोषण करते हुए अपने नित्य , नियमित कर्तव्यों में लग गए l उनके मुख की प्रसन्नता और कांति यथावत बनी रही परन्तु काल का प्रकोप अभी थमा नहीं था l उनकी संपत्ति , वैभव का धीरे -धीरे क्षय होने लगा और वे कंगाल हो गए , रोज का भोजन मिलना भी कठिन हो गया l एक दिन अनायास ही उनकी इकलौती संतान भी मृत्यु को प्राप्त हो गई , रोग उन्हें घेरने लगे l इन दारुण यातनाओं में भी वे अविचलित थे , उनका मन शांत था l उनके एक घनिष्ठ मित्र ने उनसे प्रश्न किया ---- " हे विप्र ! आप इन विपन्नताओं और विषमताओं के बीच किस तरह प्रसन्न रहते हैं l " अपने उत्तर में वे कहने लगे --- " मित्र ! इस सब का रहस्य मेरी प्रभु में भक्ति है l मैं अपने आराध्य से -- उन सर्वेश्वर से इतना प्रगाढ़ प्रेम करता हूँ कि किसी तरह की घटनाएँ मुझे विचलित कर ही नहीं पातीं l " यह सत्य है , इस संसार में एक पत्ता भी हिलता है तो वह ईश्वर की इच्छा से , हमें ईश्वरीय विधान पर विश्वास रखना चाहिए l हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है l हमारे कर्मों के हिसाब से रात लम्बी अवश्य हो सकती है लेकिन सूर्योदय अवश्य होगा l ईश्वर अपनी प्रत्येक संतान से प्रेम करते हैं , लेकिन कर्म के विधान से वे स्वयं बंधे हैं l