22 July 2024

WISDOM -------

   सम्राट  अशोक  मृत्युशय्या  पर  थे   l  अपनी  समस्त  संपदा  दान  देने  के  बाद  भी   उनके  मन  में  असंतोष  का  भाव  बना  हुआ  था  l  करोड़ों  मुद्राएँ  दान  देने  के  बाद  भी  वे   बीमार  व  असंतुष्ट  थे  l  एक  दिन  उनके  पास   संघ  से  एक  भिक्षु  आया  l  उस  दिन  सम्राट  के  पास  दान  देने  हेतु  कोई  निज  की  वस्तु  भी  नहीं  थी  , वे  सब  पहले  ही  दान  कर  चुके  थे  l  क्षुब्ध  ह्रदय  से  उन्होंने  पास  रखा  आंवला  उठाया   और  उसे  भिक्षु  को  दे  दिया   और  उससे  बोले  --- " बंधु  !  अब  मेरे  पास  दान  देने  को  ज्यादा  कुछ  नहीं  है  ,  आप  इसी  फल  को  स्वीकार  करें  l "  भिक्षु  ने  आंवले  का  चूर्ण  बनाकर   प्रसाद  में  मिलाया   और  वह  प्रसाद   संघ  के  समस्त  भिक्षुओं   को  बँट  गया  l  हजारों  भिक्षुओं  की  तृप्ति  का  समाचार   सम्राट  अशोक  को  मिला  l   उसे  सुनकर  उनके  अंतर्मन  में  तृप्ति  का  वह  भाव  जागा  ,  जो  सहस्त्रों  स्वर्ण  मुद्राएँ  दान  देकर  भी  नहीं  प्राप्त  हुआ  था   l  उन्हें  अनुभव  हुआ  कि  दिए  गए  दान  का  संतोष   उसमें  निहित  परिस्थितियों  के   आधार  पर  मिलता  है  ,  न  कि  उसकी  विशालता  के  आधार  पर   l